महिला और पुरुष के विवाहेत्तर संबंध अपराध नहीं, जानिए SC के फैसले की मुख्य बातें
By भाषा | Published: September 27, 2018 11:41 PM2018-09-27T23:41:10+5:302018-09-28T00:14:39+5:30
व्यभिचार को अपराध की श्रेणी से बाहर करते हुए उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को इससे संबंधित भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को ‘पुरातन’ और ‘असंवैधानिक’ करार देते हुए निरस्त कर दिया।
नई दिल्ली, 27 सितंबर: व्यभिचार को अपराध की श्रेणी से बाहर करते हुए उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को इससे संबंधित भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को ‘पुरातन’ और ‘असंवैधानिक’ करार देते हुए निरस्त कर दिया। उच्चतम न्यायालय द्वारा गुरुवार को व्याभिचार के दंडात्मक प्रावधान को असंवैधानिक घोषित करने के फैसले की मुख्य बातें इस प्रकार हैं:
1. व्याभिचार अपराध नहीं है।
2. ब्रिटिश काल का व्याभिचार रोधी कानून, भादंसं की धारा 497 को असंवैधानिक होने के नाते निरस्त किया जाता है।
3. कानून महिलाओं की व्यैक्तिकता को नुकसान पहुंचाता है और उनके साथ पतियों की ‘‘संपत्ति’’ और ‘‘गुलाम’’ जैसा व्यवहार करता है।
4. 158 साल पुरानी भादंसं की धारा 497 पूरी तरह से एकतरफा, पुरातनपंथी और महिलाओं के साथ समानता तथा समान अवसर के अधिकारों का उल्लंघन है।
5. गरिमापूर्ण मानवीय अस्तित्व में स्वायत्तता आंतरिक हिस्सा है और धारा 497 महिलाओं को उनकी ‘‘यौन संबंधी स्वायत्तता’’ से वंचित करती है।
6. महिलाओं के साथ असमान व्यवहार संविधान के प्रतिकूल है।
7. व्याभिचार अतीत का अवशेष है।
8. हालांकि व्याभिचार को दीवानी गलती मानना जारी रखना चाहिए।
9.. व्याभिचार विवाह विच्छेद या तलाक का आधार हो सकता है।
10. केवल व्याभिचार अपराध नहीं हो सकता लेकिन अगर कोई पीड़ित पक्ष जीवन साथी के व्याभिचार वाले संबंधों के कारण खुदकुशी करता है, और अगर साक्ष्य पेश किये जाते हैं तो इसे खुदकुशी के लिए उकसाने का मामला माना जा सकता है।
11. व्याभिचार पर दंडात्मक प्रावधान और विवाह के खिलाफ अपराधों के अभियोजन से निपटने वाली सीआरपीसी की धारा 198 असंवैधानिक है।
12. महिलाओं के साथ असमानता वाला व्यवहार करने वाला प्रावधान संवैधानिक नहीं है और यह कहने का समय आ गया है, ‘‘पति, महिला का मालिक नहीं है।’’