ऑपरेशन मेघदूत के 40 साल: 21 हजार फुट की ऊंचाई पर दुनिया की पहली और आखिरी लड़ाई का रिकॉर्ड भारतीय सेना के नाम

By सुरेश एस डुग्गर | Published: April 14, 2024 12:07 PM2024-04-14T12:07:45+5:302024-04-14T12:10:27+5:30

आज पूरे 40 साल हो गए दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धस्थल सियाचिन हिमखंड पर भारत व पाक को बेमायने जंग को लड़ते हुए। यह विश्व का सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित युद्धस्थल ही नहीं बल्कि सबसे खर्चीला युद्ध मैदान भी है।

40 years of Operation Meghdoot Indian Army holds the record of the world's first and last battle at an altitude of 21000 feet | ऑपरेशन मेघदूत के 40 साल: 21 हजार फुट की ऊंचाई पर दुनिया की पहली और आखिरी लड़ाई का रिकॉर्ड भारतीय सेना के नाम

फोटो क्रेडिट- (एक्स)

Highlightsऑपरेशन मेघदूत के 40 साल: 21 हजार फुट की ऊंचाई पर आज तक सिर्फ एक ही लड़ाई हुई हैऑपरेशन मेघदूत के 40 साल: यह लड़ाई दुनिया की अभी तक की पहली और आखिरी लड़ाई थीऑपरेशन मेघदूत के 40 साल: भारत का युद्धस्थल ही नहीं बल्कि सबसे खर्चीला युद्ध मैदान भी है

जम्मू: जानकारी के लिए दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धस्थल सियाचिन हिमखंड पर 40 सालों के कब्जे के दौरान 21 हजार फुट की ऊंचाई पर आज तक सिर्फ एक ही लड़ाई हुई है। यह लड़ाई दुनिया की अभी तक की पहली और आखिरी लड़ाई थी, जिसमें एक बंकर में बनी पोस्ट पर कब्जा जमाने के लिए जम्मू के हानरेरी कैप्टन बाना सिंह को परमवीर चक्र दिया गया था और उस पोस्ट का नाम भी उन्हीं के नाम पर रखा गया है।

आज पूरे 40 साल हो गए दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धस्थल सियाचिन हिमखंड पर भारत व पाक को बेमायने जंग को लड़ते हुए। यह विश्व का सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित युद्धस्थल ही नहीं बल्कि सबसे खर्चीला युद्ध मैदान भी है जहां होने वाली जंग बेमायने है क्योंकि लड़ने वाले दोनों पक्ष जानते हैं कि इस युद्ध का विजेता कोई नहीं हो सकता।

दुनिया की सबसे ऊंचाई पर बनाई गई इस एकमात्र सैनिक पोस्ट पर कब्जे का अभियान शुरू हुआ तो 1987 के मई महीने में चुनी गई 60 सैनिकों की टीम का बाना सिंह भी हिस्सा बने थे। जानकारी के लिए बाना सिंह को जब परमवीर चक्र मिला था तो पाकिस्तान डिफेंस रिव्यू में भी उनकी बहादुरी के चर्चे हुए थे जिसमें लिखा गया था कि 'वह बहादुरी जिसकी कोई मिसाल नहीं है'।

26 जून 1987 को अंततः 21000 फुट की ऊंचाई पर बनाई गई पाकिस्तानी पोस्ट पर कब्जा कर बहादुरी की गाथा लिखने पर हानरेरी कैप्टन बाना सिंह को बतौर इनाम परमवीर चक्र तो मिला ही था साथ ही इस पोस्ट का नाम उनके नाम पर भी रख दिया गया। विश्व के इतिहास में यह पहला और आखिरी मौका था कि इनती ऊंचाई पर कोई युद्ध लड़ा गया था। पर इस जीत के लिए भारतीय सेना को बहुत कीमत चुकानी पड़ी थी। 

22 जून को शुरू हुए आप्रेशन में उसके कई अफसर और जवान वीरगति को प्राप्त हुए थे। कारण स्पष्ट था। गोलाबारी के साथ साथ मौसम की परिस्थिति उनके कदम रोक रही थी। कई बार इस आप्रेशन को बंद करने की बात भी हुई और इरादा भी जगा था। लेकिन कमान हेडक्वार्टर से एक ही संदेश था, 'या तो जीत हासिल करना या जिन्दा वापस नहीं लौटना।' और वीरगति को प्राप्त हुए सैनिकों ने इस संदेश का मान रखा था।

कैप्टन बाना सिंह को परमवीर चक्र मिला था और आज वे जम्मू के सीमावर्ती गांव रणवीर सिंह पुरा में रहते हैं। वे अपने मिशन को बयां करते हुए बततो थे कि यह बात सियाचिन हिमखंड पर भरतीय फौज के कब्जे के तीन साल बाद की है जब 1987 में पाकिस्तानी सेना ने 21 हजार फुट की ऊंचाई पर कब्जा कर एक बंकर रूपी पोस्ट का निर्माण कर लिया था। मुहम्मद अली जिन्नाह के नाम पर बनाई गई यह पोस्ट भारतीय सेना के लिए समस्या पैदा रही थी और खतरा बन गई थी क्योंकि वे वहां से गोलियां बरसा कर नुक्सान पहुंचाने लगे थे।

इस आप्रेशन में चीता हेलिकाप्टरों ने अहम भूमिका निभाई थी। करीब 400 बार उन्होंने उड़ानें भर कर और दुश्मन के तोपखाने से अपने आप को बचाते हुए जवानों और अफसरों को बंकर के करीब पहुंचाया था। इस लड़ाई का एक कड़वा और दिल दहला देने वाला सच यह था कि 21000 फुट की ऊंचाई पर शून्य से 60 डिग्री नीचे के तापमान में भारतीय जवानों ने तीन दिन भूखे पेट रह कर इस फतह को हासिल किया था और पाकिस्तानी बंकर में मोर्चा संभालने वाले 6 पाकिस्तानियों को मारने के बाद बचे हुए भारतीय जवानों ने पाकिस्तानी स्टोव को जला कर पाकिस्तानी चावल पका कर पेट की भूख शांत की थी।

Web Title: 40 years of Operation Meghdoot Indian Army holds the record of the world's first and last battle at an altitude of 21000 feet

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