सियाचिन की उस ऐतिहासिक लड़ाई के 39 साल...जब भारत ने मिटा दिया था यहां से जिन्ना का नाम, तीन दिन भूखे पेट रह कर हासिल की थी भारतीय सेना ने जीत
By सुरेश एस डुग्गर | Published: April 12, 2023 12:03 PM2023-04-12T12:03:10+5:302023-04-12T12:07:09+5:30
दुनिया की सबसे ऊंचाई वाले युद्धक्षेत्र सियाचिन पर बनाई गई इस एकमात्र सैनिक पोस्ट पर कब्जे का अभियान शुरू हुआ तो चुनी गई 60 जांबाज भारतीय सैनिकों की टीम का बाना सिंह भी हिस्सा थे। आज इस पोस्ट का नाम उन्हीं के नाम पर रखा गया है।
जम्मू: दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धस्थल सियाचिन हिमखंड पर भारत और पाकिस्तान के बीच हुई एकमात्र जंग के आज 39 साल हो गए। 21 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित यह विश्व का सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित युद्धस्थल ही नहीं बल्कि सबसे खर्चीला युद्ध मैदान भी है। 39 साल पहले एक बंकर में बनी पोस्ट पर कब्जा जमाने के लिए जम्मू के कैप्टन बाना सिंह को परमवीर चक्र दिया गया था और उस पोस्ट का नाम भी उन्हीं के नाम पर रखा गया है।
कैप्टन बाना सिंह आज जम्मू के सीमावर्ती गांव रणवीर सिंह पुरा में रहते हैं। वे अपने मिशन के बारे कहते हैं कि यह बात सियाचिन हिमखंड पर भरतीय फौज के कब्जे के तीन साल बाद की है जब 1987 में पाकिस्तानी सेना ने 21 हजार फुट की ऊंचाई पर कब्जा कर एक बंकर रूपी पोस्ट का निर्माण कर लिया था। मुहम्मद अली जिन्ना के नाम पर बनाई गई यह पोस्ट भारतीय सेना के लिए समस्या पैदा रही थी और खतरा बन गई थी क्योंकि वे वहां से गोलियां बरसा कर नुक्सान पहुंचाने लगे थे।
ऑपरेशन के लिए 60 सैनिकों की बनाई गई थी टीम
दुनिया की सबसे ऊंचाई पर बनाई गई इस एकमात्र सैनिक पोस्ट पर कब्जे का अभियान शुरू हुआ तो 1987 के मई महीने में चुनी गई 60 जांबाज सैनिकों की टीम का बाना सिंह भी हिस्सा थे। बाना सिंह को जब परमवीर चक्र मिला था तो पाकिस्तान डिफेंस रिव्यू में भी उनकी बहादुरी के चर्चे हुए थे जिसमें लिखा गया था- ‘वह बहादुरी जिसकी कोई मिसाल नहीं है।'
26 जून 1987 को अंततः 21000 फुट की ऊंचाई पर बनाई गई पाकिस्तानी पोस्ट पर भारत ने कब्जा कर लिया। हालांकि इस जीत के लिए भारतीय सेना के कई जवान और अफसर वीरगति को प्राप्त हुए। हालात ये थे कई बार इस ऑपरेशन को बंद करने की बात भी हुई लेकिन कमान हेडक्वार्टर से एक ही संदेश था- ‘या तो जीत हासिल करना या जिन्दा वापस नहीं लौटना।’
इस ऑपरेशन में चीता हेलिकाप्टरों ने अहम भूमिका निभाई थी। करीब 400 बार उन्होंने उड़ानें भर कर और दुश्मन के तोपखाने से अपने आप को बचाते हुए जवानों और अफसरों को बंकर के करीब पहुंचाया था। इस लड़ाई का एक कड़वा और दिल दहला देने वाला सच यह था कि 21000 फुट की ऊंचाई पर शून्य से 60 डिग्री नीचे के तापमान में भारतीय जवानों ने तीन दिन भूखे पेट रह कर इस फतह को हासिल किया था।