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पति ने एक साल पहले कराई थी नसबंदी, पत्नी हुई गर्भवती, ऐसे उठा सच्चाई से पर्दा

By उस्मान | Updated: October 4, 2018 14:10 IST

कई पुरुषों की गलत धारणा है कि नसबंदी के बाद पुरुषों के हार्मोन पर फर्क पड़ता है लेकिन यह गलत है। नसबंदी में शुक्राणु वाहिनी नालिकाओं को बांध दिया जाता है। जिससे शुक्राणु शरीर के बाहर न‍हीं जा पाते हैं ये शरीर में ही घुलकर रह जाते हैं। इस प्रकार शरीर के स्‍वस्‍थ रहने भी सहायक होते है। इससे पुरुषों के टेस्‍टोस्‍टेरोन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।  

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पति की नसबंदी के बावजूद पत्नी गर्भवती क्या हुई घर परिवार ने उसे संदेह के कटघरे में ला खड़ा किया, आखिर जिला कलक्टर आरती डोगरा के दखल के बाद मामले में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी ने सत्यता की जांच कर नसबंदी को असफल बताया।

क्या था पूरा मामला

अजमेर निवासी एक युवक ने 2 दिसम्बर 2016 को परिवार सेवा के जरिए नसबंदी करवाई थी। लगभग चार माह पहले उसकी पत्नी गर्भवती हो गई। इसके बाद से ही परिवार में महिला के प्रति नजरें तिरछी होने लगी। युवक ने अपने स्तर पर इसकी जांच भी करवाई जिसमें भी उसके ऑपरेशन को सफल ही बताया गया। इससे परिवार में तनाव और बढ़ने लगा। आरोप है कि युवक ने स्वास्थ्य संकुल में जाकर इसकी शिकायत दी और सभी जांचें भी प्रस्तुत की लेकिन वहां उसे कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला।

ऐसे उठा सच्चाई से पर्दा

आखिर महिला ने जिला कलक्टर आरती डोगरा से अपना दुख साझा किया। महिला जिला कलक्टर ने युवती का दु:ख और पारिवारिक परेशानी को समझा तो उनका दिल पसीजा और उन्होंने मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ के के सोनी को फोन करके मामले में सही जांचकर रिपोर्ट देने के निर्देश दिए। चिकित्साधिकारियों ने जांच में पाया कि युवक की नसबंदी डॉ भगवान सिंह गहलोत ने की थी जो असफल हो गई।

बच्चे को देंगी जन्म

युवती ने कहा कि वह अब इस बच्चे को जन्म देंगी और खुद को सही साबित भी करेंगी। जिससे कि परिवार में उपजा विवाद शांत हो सके। युवती ने जिला कलक्टर आरती डोगरा से डीएनए जांच करवाकर उसे सही साबित करवाने की गुहार की है।

मुआवजे का है प्रावधान

मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ के के सोनी ने बताया कि महिला का पति उनके पास आकर एक बार मिला था लेकिन बाद में उसने कोई दस्तावेज उपलब्ध नहीं करवाए। डॉ सोनी ने कहा कि केस फेल हो सकते हैं और इसके केस में भी ऐसा ही हुआ है। दस्तावेज पूरे देने पर 30 हजार रुपए मुआवजे की राशि के लिए विभाग द्वारा कार्रवाई अमल में लाई जाएगी। केस बिगड़ने पर यदि 4 सप्ताह तक का गर्भ होता है तो नियमानुसार पति-पत्नी की रजामंदी से इसे सरकारी चिकित्सकों द्वारा गिरवाया जा सकता है। 

आखिर नसबंदी से क्यों बचते हैं पुरुष?

मेडिकल क्षेत्र में परिवार नियोजन के लिए नसबंदी को एक बेहतर उपाय माना गया है। पुरुषों के लिए यह गर्भनिरोध का सबसे सरल, सुरक्षित और कम खर्चीला उपाय है। लेकिन लोग इसमें खास दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं। पुरुषों को ऐसा लगता है कि फैमिली प्‍लानिंग और नसबंदी सिर्फ महिलाओं की जिम्‍मेदारी है। पुरुष नसबंदी में शुक्रवाहिका या वास डिफेरेन्स नामक नलिका नामक दो ट्यूबों को काट दिया जाता है जिससे शुक्राणु वीर्य तक पहुंच ही नहीं पाते हैं। लेकिन सवाल यह है कि पुरुष नसबंदी करवाने से क्‍यूं बचते हैं? दिल्ली के मशहूर सेक्सोलॉजिस्ट विनोद रैना आपको इस सवाल का जवाब दे रहे हैं। 

1) टांके का डरपुरुषों को लगता है कि नसबंदी के दौरान उन्‍हें चीरा लगाया जाएगा। टांके और चीरे की नाम से वो डर जाते है। लेकिन वर्ष 1998-99 के दौरान एनएसवी (नो स्कैल्पल वसेक्टमी) के रूप में नसबंदी की नई टेक्निक शुरु हुई थी। जिसमें बिना चीरा और टांके की नसबंदी का चलन शुरु हो गया है। 

2) दिल की सेहत पर असरकई लोग ऐसा मानते हैं कि नसबंदी के कारण पुरुषों के दिल पर बुरा असर पड़ता है। लेकिन वास्‍तव में ऐसा नहीं है। अभी तक इस बात का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है।

3) दर्द की चिंताकई पुरुष दर्द की वजह से नसबंदी नहीं कराते हैं। एनएसवी टेक्निक में बहुत अधिक दर्द नहीं होता है और अब पुरुष नसबंदी कराके जल्दी अपने काम पर लौट सकते हैं, इस तकनीक में एनेस्थीसिया देते समय इंजेक्शन लगाने के दौरान, नाममात्र का ही दर्द होता है।

4) इरेक्शन में कमीज्‍यादात्तर पुरुषों को लगता है कि नसबंदी करवाने से उनकी सेक्‍स लाइफ पर असर पड़ता है। नसबंदी के बाद सेक्‍स प्‍लेजर नहीं मिलता है। नसबंदी के बाद कुछ महीनों तक टेस्टिकल में आपको हल्का दर्द हो सकता है। लेकिन सेक्स में दिलचस्पी, इरेक्शन, या स्खलन पर कोई प्रभाव नहीं होता। इससे अनचाहें गर्भ की चिंता दूर हो जाती है।

5) हार्मोन पर असरकई पुरुषों की गलत धारणा है कि नसबंदी के बाद पुरुषों के हार्मोन पर फर्क पड़ता है लेकिन यह गलत है। नसबंदी में शुक्राणु वाहिनी नालिकाओं को बांध दिया जाता है। जिससे शुक्राणु शरीर के बाहर न‍हीं जा पाते हैं ये शरीर में ही घुलकर रह जाते हैं। इस प्रकार शरीर के स्‍वस्‍थ रहने भी सहायक होते है। इससे पुरुषों के टेस्‍टोस्‍टेरोन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।  

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