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NIH का दावा, कोरोना वायरस के 'डेल्टा वैरिएंट' को बेअसर कर सकती है भारत की Covaxin

By उस्मान | Updated: June 30, 2021 10:30 IST

भारत बायोटेक द्वारा विकसित इस वैक्सीन क टीकाकरण में इस्तेमाल हो रहा है

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ठळक मुद्देभारत बायोटेक द्वारा विकसित इस वैक्सीन क टीकाकरण में इस्तेमाल हो रहा हैअल्फा और डेल्टा दोनों वैरिएंट को बेअसर कर सकती है वैक्सीनअमेरिका में अध्ययन में दिखे बेहतर असर

अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ ने कहा है कि भारत की कोरोना वायरस की वैक्सीन 'कोवैक्सिन' (Covaxin) कोरोना वायरस के अल्फा और डेल्टा दोनों रूपों को प्रभावी ढंग से बेअसर करता है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद और भारत बायोटेक द्वारा विकसित इस वैक्सीन क टीकाकरण में इस्तेमाल हो रहा है। 

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, एनआईएच ने कहा कि जिन लोगों ने कोवैक्सिन का टीका लगवाया था, उनके रक्त सीरम के दो अध्ययनों के परिणाम बताते हैं कि वैक्सीन एंटीबॉडी उत्पन्न करती है, जो प्रभावी रूप से SARS-CoV-2 के B.1.1.7 (अल्फा) और B.1.617 (डेल्टा) वेरिएंट को बेअसर करती है। 

Covaxin या Covishield ? वैज्ञानिकों ने बताया दोनों टीकों में कौन सा टीका है ज्यादा असरदार

स्वास्थ्यकर्मियों पर किए गए अध्ययन सामने आया है कि कोवैक्सीन की तुलना में कोविशील्ड टीके से ज्यादा एंटीबॉडी बनती है, हालांकि दोनों टीके प्रतिरक्षा को मजबूत करने में बेहतर हैं। 

कोविशील्ड टीके का निर्माण पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका के साथ मिलकर किया है। जबकि कोवैक्सीन का निर्माण हैदराबाद स्थित कंपनी भारत बायोटेक ने आईसीएमआर और राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (एनआईवी) के साथ मिलकर किया है। 

इम्यून सिस्टम मजबूत बनाते हैं दोनों टीकेअध्ययन के अग्रणी लेखक और जीडी हॉस्पिटल एंड डायबिटिक इंस्टीट्यूट, कोलकाता में कंसल्टेंट एंडोक्राइनोलॉजिस्ट (मधुमेह रोग विशेषज्ञ) अवधेश कुमार सिंह ने ट्वीट किया, 'दोनों खुराक लिए जाने के बाद दोनों टीकों ने प्रतिरक्षा को मजबूत करने का काम किया। 

कोविशील्ड ने बनाई ज्यादा एंटीबॉडीअध्ययन में इस बात का दावा किया गया है कि कोवैक्सीन की तुलना में सीरो पॉजिटिविटी दर और एंटीबॉडी स्तर कोविशील्ड में ज्यादा रहा। कोवैक्सीन की खुराकें लेने वालों की तुलना में कोविशील्ड लेने वाले ज्यादातर लोगों में सीरो पॉजिटिविटी दर अधिक थी। 

अध्ययन के लेखक ने कहा, '515 स्वास्थ्यकर्मियों में दोनों टीकों की दोनों खुराकें लेने के बाद 95 प्रतिशत में सीरो पॉजिटिविटी दिखी। इनमें से 425 लोगों ने कोविशील्ड और 90 लोगों ने कोवैक्सीन की खुराकें ली थी और सीरो पॉजिटिविटी दर क्रमश: 98.1 प्रतिशत और 80 प्रतिशत रही।' सीरो पॉजिटिविटी का संदर्भ किसी व्यक्ति के शरीर में बनने वाली एंटीबॉडी से है। 

अहमदाबाद के विजयरत्न डायबिटिक सेंटर, कोलकाता के जी डी हॉस्पिटल एंड डायबिटिक इंस्टीट्यूट, धनबाद के डायबिटिक एंड हार्ट रिसर्च सेंटर और जयपुर में राजस्थान हॉस्पिटल और महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल के शोधकर्ताओं ने यह अध्ययन किया।

यह अध्ययन 'मेडआरएक्सिव' पर छपने से पहले पोस्ट किया गया है। इस अध्ययन में 13 राज्यों के 22 शहरों के 515 स्वास्थ्यकर्मियों को शामिल किया गया। इनमें से 305 पुरुष और 210 महिलाएं थीं। अध्ययन में शामिल होने वालों के खून के नमूनों में एंटीबॉडी और इसके स्तर की जांच की गयी। 

अध्ययनकर्ताओं ने कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके और जो लोग संक्रमित नहीं भी हुए उनमें दोनों खुराकें लेने के बाद के नतीजे की तुलना की। ऐसा पाया गया कि जो प्रतिभागी दोनों टीकों की पहली खुराक के कम से कम छह सप्ताह पहले कोविड-19 से उबर गए थे और बाद में दोनों खुराकें ले ली थी, उनमें सीरो पॉजिटिविटी दर 100 प्रतिशत रही और दूसरों की तुलना में उनमें एंटीबॉडी का ज्यादा स्तर था।  

(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ) 

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