पिछले कुछ दिनों से राजधानी दिल्ली समेत उत्तर भारत के कई राज्यों में धूल भरी आंधी और तूफान ने कहर मचा रखा है। इस बीच सैकड़ों लोगों की मौत हो गई है। 2 मई को आए तूफान के बाद अभी स्थिति सुधरी भी नहीं है कि मौसम विभाग ने 8 और 9 मई को आंधी-तूफान की चेतावनी जारी की है। दिल्ली-एनसीआर में करीब 70 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से हवाएं चलीं। तेज हवाओं का सिलसिला मंगलवार की सुबह भी जारी रहा। जिससे लोग सहमे-सहमे नजर आए। दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा के कई इलाकों में आंधी आने के बाद बिजली कटौती की खबर आई है। मौसम विभाग की चेतावनी के बाद कई राज्यों में स्कूल बंद कर दिए गए हैं। आपको बता दें कि दो मई को आए तूफान में आगरा में करीब 50 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि कई लोग घायल हो गए थे। तेज हवा के कारण उड़ रही धूल से जहां लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, वहीं धूल से होने वाली बीमारी का भी डर लगने लग गया है। सड़कों से उठ रहे धूल के गुबार सेहत के लिए खतरनाक हो गए हैं। इससे एलर्जी और सांस के रोगियों की संख्या बढ़ने लगी है। जर्नल फिजिशियन डॉक्टर अजय लेखी आपको बता रहे हैं कि धूल-मिट्टी के कारण आपको क्या-क्या बीमारियां हो सकती हैं।
1) धूल से होती है एलर्जी
डॉक्टर के अनुसार, कई राज्यों में इन दिनों धूल के संक्रमण से ग्रस्त मरीजों की आमद बढ़ गई है। धूल के कण सांस की नली में जमा हो जाते हैं। धीरे धीरे सांस लेने में कठिनाई होने लगती है। इसके अलावा धूल से एलर्जी भी हो जाती है। अगर आपको नाक में भारीपन, सांस लेने में तकलीफ और सोने में दिक्कत होती है तो शायद आपको धूल से एलर्जी है। धूल से एलर्जी सबसे ज्यादा पीड़ादायक और परेशानी देने वाली एलर्जी होती है। ऐसे लक्षण होने पर आपको डॉक्टर से तुंरत सम्पर्क करना चाहिए, ताकि आपके फेफड़ों में कोई इन्फेक्शन न होने पाएं।
धूल से एलर्जी के लक्षण
-सांस लेने में तकलीफ-बैठने पर आराम और लेटने में दिक्कत-हमेशा सर्दी जुकाम बने रहना-खुजली होना-आंखों से पानी बहना-आंखों का लाल होना
धूल से एलर्जी से बचने के उपाय
-परहेज करें-धूल और धुएं से बचें -डॉक्टरी सलाह मानें-अवाश्यक दवाएं या वैक्सीन नियमित रूप से लगवाते रहे
2) सिलिकोसिस
सिलिका कणों और टूटे पत्थरों की धूल की वजह से सिलिकोसिस होती है। धूल सांस के साथ फेफड़ों तक जाती है और धीरे-धीरे यह बीमारी अपने पांव जमाती है। यह खासकर पत्थर के खनन, रेत-बालू के खनन, पत्थर तोड़ने के क्रेशर, कांच-उद्योग, मिट्टी के बर्तन बनाने के उद्योग, पत्थर को काटने और रगड़ने जैसे उद्योगों के मजदूरों में पाई जाती है। डॉक्टर के अनुसार, यह एक लाइलाज बीमारी है। इसे रोकने का आज तक कोई कारगर तरीका नहीं बनाया जा सका है। दरअसल यह सिलिका कण सांस के द्वारा पेफड़ों के अंदर तक तो पहुंच जाते हैं लेकिन बाहर नहीं निकल पाते।
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सिलिका कणों का फेफड़ों पर प्रभाव
-फेफड़ों की अंदरूनी सतह पर घाव-सांस लेने में परेशानी-फेफड़े कमजोर होना -फेफड़ों के कामकाज पर असर -फेफड़ों की टीबी होना
सिलिकोसिस से बचाव
-ऐसे वातावरण में जाने से बचें जहां ज्यादा सिलिका कण मौजूद हों-पत्थर काटने के दौरान मास्क पहनें -स्पेशल मास्क से सिलिका कण फेफड़ों तक नहीं पहुंच पाते-धूल भरी आंधी से बचें
3) बुखार
धूल से एलर्जी होने पर मरीज को बुखार चढ़ सकता है। इसके फलस्वरूप, आखों में जलन होती है, पानी लगातार बहता रहता है, छीकें आती है, कफ बनता है और गले में खराश हो जाती है। इससे आराम पाने के लिए आपको तुरंत डॉक्टर के पास जाना चाहिए।
4) अस्थमा
ज्यादा समय तक धूल से एलर्जी बना रहना, अस्थमा का कारण बनता है। छोटे कणों, रोएं आदि से अस्थमा का अटैक पड़ने की संभावना रहती है। यह एक खतरनाक बीमारी है जिसमें मरीज को कही भी और कभी भी अस्थमा का अटैक पड़ सकता है। यह जानलेवा होता है। इससे बचने के लिए धूल से बचें और एलर्जी होने पर डॉक्टर को दिखाएं। अपने पास हमेशा इन्हेलर रखें। धूम्रपान से बचें।
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5) खुजली
एक्जिमा या खुलजी होना भी धूल से एलर्जी का एक लक्षण है। इसमें त्वचा लाल पड़ जाती है और खुजली होती है। कई बार त्वचा फूल जाती है और खाल निकलने लगती है। बच्चों में अक्सर यह देखने को मिलता है। एक्जिमा का इलाज आसानी से हो जाता है। डॉक्टर से सलाह लें और एक्जिमा के लिए क्रीम या पाउडर का इस्तेमाल करें।
(फोटो- पिक्साबे)