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गर्मियों या जाड़े की छुट्टियां शुरू होते ही माता-पिता को चिंता, क्या बच्चों को थोड़ी-बहुत पढ़ाई या स्कूल का काम करना चाहिए?, हल्का-फुल्का प्रयास ही पर्याप्त?

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: December 23, 2025 11:56 IST

शोधकर्ताओं ने पिछले 100 वर्षों से इस बात का अध्ययन किया है कि स्कूल के छात्र गर्मियों की छुट्टियों के दौरान सीखने के मामले में कुछ हद तक पिछड़ जाते हैं।

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ठळक मुद्देक्या छुट्टियों के दौरान किसी तरह की शैक्षणिक दिनचर्या बनाए रखना बेहतर होगा?केवल परीक्षा अंकों पर आधारित ये पारंपरिक पैमाने पूरी तस्वीर नहीं दिखाते।अपनी रुचियों को अपनी गति से तलाशते हैं, जो पाठ्यक्रम में हमेशा शामिल नहीं हो पातीं।

जोंडालुपः गर्मियों की या जाड़े की छुट्टियां शुरू होते ही कई माता-पिता को चिंता होने लगती है कि लंबी छुट्टी के दौरान बच्चे “अपना नाम तक लिखना भूल जाएंगे”। कुछ को बच्चों के गुणा-भाग, पहाड़े भूलने और पढ़ाई में पिछड़ जाने की आशंका रहती है। ऐसे में माता-पिता यह सोचने लगते हैं कि क्या छुट्टियों के दौरान किसी तरह की शैक्षणिक दिनचर्या बनाए रखना बेहतर होगा?

इसका संक्षिप्त उत्तर है हल्का-फुल्का प्रयास ही पर्याप्त है।

‘समर लर्निंग लॉस’

शोधकर्ताओं ने पिछले 100 वर्षों से इस बात का अध्ययन किया है कि स्कूल के छात्र गर्मियों की छुट्टियों के दौरान सीखने के मामले में कुछ हद तक पिछड़ जाते हैं। हालांकि, 2020 में अमेरिका में हुए एक अध्ययन सहित हालिया शोध बताते हैं कि इसका असर सभी बच्चों पर समान नहीं होता और यह उतना गंभीर भी नहीं है, जितना आम तौर पर माना जाता है। स्कूल दोबारा खुलने पर बच्चे जल्दी ही अपनी खोई हुई क्षमता फिर से हासिल कर लेते हैं। सबसे अहम बात यह है कि केवल परीक्षा अंकों पर आधारित ये पारंपरिक पैमाने पूरी तस्वीर नहीं दिखाते।

बच्चों को भी ब्रेक चाहिए

जैसे वयस्कों को खुद को तरोताजा करने के लिए सालाना अवकाश की जरूरत होती है, वैसे ही बच्चों को भी लंबे विश्राम की आवश्यकता होती है। छुट्टियां चाहे गर्मियों की हों या जाड़े की हों, बच्चों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी होती हैं। इस दौरान वे अपनी थकान से उबरते हैं, परिवार के साथ समय बिताते हैं और अपनी रुचियों को अपनी गति से तलाशते हैं, जो पाठ्यक्रम में हमेशा शामिल नहीं हो पातीं।

स्कूल से परे सीखना

लंबी छुट्टियां सामाजिक, सांस्कृतिक, शारीरिक और भावनात्मक जैसे अलग-अलग तरह के सीखने के अवसर देती हैं। छोटे बच्चों के लिए तैरना सीखना, बेकिंग करना, घर के छोटे मोटे काम में मदद करना या परिवार के साथ यात्रा करना उनके विकास में सहायक होता है। शोध बताते हैं कि खुले में स्वच्छंद तरीके से खेलने से आत्मनिर्भरता, रचनात्मकता और लचीलापन बढ़ता है। वहीं, बड़े बच्चों और किशोरों के लिए अंशकालिक नौकरी, स्वयंसेवा, रचनात्मक गतिविधियां, संगठित खेल या सामुदायिक कार्यक्रम आत्मविश्वास, जिम्मेदारी और वास्तविक जीवन के कौशल विकसित करने में मददगार होते हैं।

थोड़ी संरचना जरूरी

बच्चों के लिए दिनचर्या और संरचना जरूरी होती है ताकि उन्हें पर्याप्त आराम और खाली समय मिल सके, लेकिन इसका मतलब स्कूल जैसी दिनचर्या अपनाना नहीं है। इसके बजाय, नियमित नींद का समय, सोने से पहले पढ़ना या दोपहर में बिना स्क्रीन के शांत समय जैसे सरल उपाय अपनाए जा सकते हैं। बच्चे पारंपरिक खेल भी खेल सकते हैं ताकि उनका सभ्यता से जुड़ाव गहरा हो।

सूक्ष्म सीख

जिन बच्चों को पढ़ाई में कठिनाई रही हो, उनके लिए माता-पिता बिना स्कूल जैसा माहौल बनाए हल्का सहयोग दे सकते हैं। शोध से पता चलता है कि जब बच्चे भावनात्मक रूप से सुरक्षित और शांत महसूस करते हैं, तो वे नए सत्र की शुरुआत में बेहतर ढंग से सीख पाते हैं। घर में स्क्रैबल या पहेलियां हल करना, कार में पहाड़े दोहराना, मेन्यू पढ़ना, खरीदारी की सूची बनाना या खाना बनाते समय सामग्री नापना—ये सभी रोजमर्रा की गतिविधियां साक्षरता और संख्यात्मक कौशल को सहज रूप से बढ़ाती हैं।

आराम और जुड़ाव का समय

गर्मी या जाड़े की छुट्टियों को शैक्षणिक चुनौती के बजाय विकास का उपहार माना जाना चाहिए। संभव है कि कुछ कौशल थोड़े समय के लिए कमजोर पड़ जाएं, जैसे काम से दूर रहने पर कोई पासवर्ड भूल जाना। लेकिन आराम, पारिवारिक जुड़ाव और विविध प्रकार के सीखने से मिलने वाला लाभ दीर्घकालिक तौर पर कहीं अधिक मूल्यवान होता है।

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