बच्चों को यौन शिक्षा के दौरान क्या और किस उम्र में बताना चाहिए, जानिए इस बारे में सबकुछ
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: May 13, 2021 11:40 AM2021-05-13T11:40:59+5:302021-05-13T13:48:23+5:30
विशेषज्ञों के अनुसार बच्चों के संपूर्ण विकास और उनके बेहतर कल के लिए जरूरी है कि उम्र के उनके हर मोड़ पर यौन शिक्षा भी दी जाए। जानकार मानते हैं कि ये प्रक्रिया कम उम्र से ही शुरू कर देनी चाहिए।
दुनिया में हर माता-पिता बच्चों के शारीरिक विकास के साथ-साथ उनके स्वास्थ्य, खान-पान और शिक्षा को लेकर काफी चिंतित रहते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार इन सबके साथ बच्चों को यौन शिक्षा देना भी काफी जरूरी होता है। हालांकि ये भी जरूरी है कि माता-पिता इस बात को अच्छी तरह समझे कि यौन शिक्षा से जुड़े हिस्सों में क्या और कब बच्चों को बताना चाहिए।
जानकार बताते हैं कि बच्चों को छोटी उम्र से ही यौन शिक्षा को लेकर बातें शुरू कर देनी चाहिए। चरणबद्ध तरीके से इसे आगे बढ़ाया जाना चाहिए और यही सबसे अच्छा तरीका है। अमूमन बच्चे जब किशोर अवस्था में पहुंचते हैं तब कुछ माता-पिता इस बारे में बात करने की कोशिश करते हैं।
ऐसे में बात एक तो बात की शुरुआत करना मुश्किल होता है। साथ ही कई बार किशोर अवस्था में पहुंचे बच्चे ये धारणा भी बना लेते हैं कि वे तो पहले से इस बारे में सबकुछ जानते हैं और इसलिए वे माता-पिता के अनुभव या दी जा रही जानकारी को गंभीरता से नहीं लेते हैं।
यौन शिक्षा को लेकर किस उम्र में बच्चों को क्या बताना चाहिए?
जानकारों के अनुसार 13 से 24 महीने के बच्चों को उनके शरीर के सभी अंगों के बारे में नाम के साथ बताना चाहिए। इसमें जननांग भी शामिल हैं। बच्चों को सभी अंगों के नाम इस उम्र तक याद होने चाहिए। ऐसे में वे किसी स्वास्थ्य समस्या, चोट लगने या फिर यौन दुर्व्यवहार पर भी ठीक से संवाद कर सकेंगे। साथ ही कोई समस्या है भी तो उस बारे में संकेत दे सकते हैं।
ज्यादातर बच्चे जो दो साल से ऊपर के हैं वो महिला और पुरुष में फर्क करना सीख लेते हैं। उन्हें यह सामान्य समझ होनी चाहिए कि किसी व्यक्ति की लिंग की पहचान उनके जननांगों द्वारा निर्धारित नहीं की जाती है और यह जेंडर अलग-अलग तरीकों से व्यक्त किया जा सकता है।
इस उम्र के बच्चों को पता होना चाहिए कि उनका शरीर निजी है। वे अपने शरीरिक बनावट को लेकर खुद ही अनुभव करना सीखने लगते हैं। इसमें खुद के जननांगों को छूना भी शामिल है, लेकिन उन्हें यह भी समझ होनी चाहिए कि ऐसा कब और कहां करना उचित है।
2 से 4 साल के बच्चों को यौन शिक्षा के संबंध में क्या बताएं
ये वह समय होता है जब बच्चों को प्रजनन संबंधी बहुत बेसिक जानकारी दी जा सकती है। बच्चों को उनकी समझ और रुचि के आधार पर आप बच्चों को उनके जन्म की कहानी के बारे में बता सकते हैं और उन्हें बता सकते हैं कि यह परिवार बनाने का एकमात्र तरीका नहीं है।
ऐसा भी नहीं है कि आपको इसी उम्र में बच्चों को सबकुछ बताना है। इस कम उम्र के बच्चे यौन क्रिया के बजाय गर्भावस्था और शिशुओं में रुचि रखते हैं। बच्चों को इस उम्र में पता होना चाहिए कि उनका शरीर अपना है और इसे कोई और उनकी इजाजत के बगैर नहीं छू सकता है। अगर बच्चे ये समझ बनाने लगते हैं तो अगर उनके साथ कुछ गलत कोई करने की कोशिश भी करता है तो वे इस संबंध में आपको बता देंगे।
इस उम्र में बच्चों को यह भी बताना चाहिए कि वे भी किसी और की मर्जी के बगैर उसके शरीर को नहीं छुए। इसमें गले लगने, गुदगुदी आदि भी शामिल है। कुल मिलाकर बच्चों को अपनी सीमा पता होनी चाहिए। बच्चों को पता होना चाहिए किसके सामने या कब अपने कपड़े उताड़ने हैं।
5 से 8 साल तक के बच्चों को क्या-क्या बताएं
ये उम्र बेहद अहम है। बच्चों को इस समय तक एक बुनियादी समझ होनी चाहिए कि कुछ लोग समलैंगिक या बाइसेक्सुअल हो सकते हैं और जेंडर के अभिव्यक्ति से जुड़ी कई बातें हैं। बच्चों को पता होना चाहिए जेंडर किसी शख्स के लिंग जननांग द्वारा निर्धारित नहीं होता है। उन्हें यह भी पता होना चाहिए कि रिश्तों में यौन संबंधों की भूमिका क्या है।
बच्चों को रिश्तों में निजता, नग्नता और दूसरों के सम्मान के बुनियादी सामाजिक बातों के बारे में भी पता होना चाहिए। ज्यादातर बच्चे इस उम्र तक अपने शरीर के बारे में कई बाते जान चुके होते हैं। उन्हें यह जानकारी मिलने लगनी चाहिए कि क्या चीजें निजी तौर पर करनी हैं।
बच्चों को इस उम्र में ये भी बतां कि कंप्यूटर और मोबाइल उपकरणों का सुरक्षित उपयोग कैसे किया जाए। इस उम्र के बच्चों को डिजिटल संदर्भ में गोपनीयता, नग्नता और दूसरों के प्रति सम्मान के बारे में बताना शुरू कर देना चाहिए। उन्हें अजनबियों से बात करने और ऑनलाइन तस्वीरें साझा करने के नियमों के बारे में पता होना चाहिए और अगर उन्हें कुछ ऐसा मिलता है जो उन्हें असहज करता है तो उन्हें क्या करना चाहिए।
बच्चों को इस उम्र के आखिर तक युवावस्था के बारे में मूल बातें सिखाई जानी चाहिए, क्योंकि 10 वर्ष की आयु तक कई बच्चों यौवन विकास का अनुभव करने लगते हैं। उन्हें न केवल शरीर में होने वाले उन बदलावों के बारे में बताना चाहिए बल्कि इसका भी ध्यान रखें कि लड़कों और लड़कियों के लिए अलग-अलग जानकारी नहीं हो।
बच्चों को इस दौरान स्वच्छता और स्वयं की देखभाल के महत्व के बारे में भी बताना चाहिए। इन चर्चाओं के जल्दी होने से वे युवावस्था के दौरान होने वाले परिवर्तनों के लिए तैयार हो जाते हैं और उन्हें आश्वासन मिलने लगता है कि ये बदलाव सामान्य और स्वस्थ हैं।
9 से 12 साल की उम्र में बच्चों को क्या बताएं
इस उम्र में बच्चों को सुरक्षित यौन और गर्भनिरोधक आदि के बारे में सिखाया जाना चाहिए। साथ ही उन्हें गर्भावस्था और यौन संचारित संक्रमण (एसटीआई) के बारे में बुनियादी जानकारी देनी चाहिए। उन्हें बताना चाहिए कि किशोर होने का मतलब यह नहीं है कि उन्हें यौन संबंधों को लेकर सक्रिय होना है।
इस उम्र में बच्चों को समझाना चाहिए कि एक सकारात्मक संबंध क्या है। इसके अलावा बच्चों को इंटरनेट सिक्योरिटी के बारे में खुल कर बताएं। उन्हें बताना चाहिए कि अगर वे अपनी या अपने साथियों की नग्न तस्वीरें साझा करते हैं तो इसके क्या नुकसान होंगे।
13 से 18 साल के किशोरों को यौन शिक्षा के तहत क्या बताएं
इस उम्र में किशोरों को मासिक धर्म और स्वपनदोष के बारे में अधिक विस्तृत जानकारी देनी चाहिए। उन्हें पता होना चाहिए कि ये सबकुछ सामान्य और स्वस्थ हैं। उन्हें गर्भावस्था और एसटीआई सहित विभिन्न गर्भनिरोधक विकल्पों के बारे में और सुरक्षित सेक्स में इनके इस्तेमाल के सही तरीकों के बारे में बताना चाहिए।
सुरक्षित सेक्स का अभ्यास करना आदि के बारे में बताने के साथ-साथ शराब, ड्रग्स या नशा कैसे जीवन को प्रभावित कर सकते हैं, इस बारे में भी बताना चाहिए।
किशोर को स्वस्थ रिश्ते और अस्वस्थ रिश्ते के बीच के अंतर के बारे में सीखाना चाहिए। इसके अलावा दबावों और डेटिंग हिंसा के बारे में बताना चाहिए। साथ ही यौन संबंधों में सहमति का मतलब क्या है, इस बारे में भी समझाना चाहिए। किशोर को रिश्ते को खत्म करने के लिए बातचीत और इनकार करने के तरीकों आदि के बारे में भी बताना चाहिए।
किशोर उम्र में हर कोई आम तौर पर बहुत निजी रहने लगता है। हालांकि, अगर माता-पिता अपने बच्चे को कम उम्र से ही यौन शिक्षा के बारे में बात करते हैं तो यह संभावना बहुत बढ़ जाती है कि किशोर तब किसी भी मुश्किल में माता-पिता से संपर्क करेंगे और समस्या का निदान आसानी से कर सकेंगे।