पराली नहीं दिल्ली में जहरीली हवा के लिए जिम्मेदार कोई और?, दिल्ली-एनसीआर सर्दियों की हवा दमघोंटू, रिसर्च में खुलासा

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: December 1, 2025 21:05 IST2025-12-01T21:05:02+5:302025-12-01T21:05:58+5:30

जहांगीरपुरी और दिल्ली विश्वविद्यालय के उत्तर परिसर रहे, जहां 50 दिनों तक कार्बन मोनोऑक्साइड का स्तर सीमा से ज्यादा पाया गया।

delhi ncr Stubble burning not reason rising pollution in Delhi but traffic Study toxic air suffocating, research reveals | पराली नहीं दिल्ली में जहरीली हवा के लिए जिम्मेदार कोई और?, दिल्ली-एनसीआर सर्दियों की हवा दमघोंटू, रिसर्च में खुलासा

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Highlightsद्वारका सेक्टर-8 में सबसे ज्यादा 55 दिन कार्बन मोनोऑक्साइड की सीमा अधिक रही।साल 2018 में, केवल 13 स्थानों को आधिकारिक तौर पर ‘हॉटस्पॉट’ घोषित किया गया था।कई और स्थानों पर नियमित रूप से प्रदूषण का स्तर शहर के औसत से कहीं ज़्यादा दर्ज किया जा रहा है।

नई दिल्लीः पराली जलाने की घटनाएं कई सालों में सबसे कम होने के बावजूद, दिल्ली-एनसीआर की सर्दियों की हवा दमघोंटू बनी हुई है। अक्टूबर और नवंबर के ज़्यादातर समय, प्रदूषण का स्तर 'बेहद खराब' और 'गंभीर' के बीच रहा, जिसकी वजह मुख्य रूप से वाहनों और अन्य स्थानीय स्रोतों से निकलने वाला पीएम 2.5, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओ2) और कार्बन मोनोऑक्साइड (सीओ) का बढ़ता "ज़हरीला मिश्रण" है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) के एक नए विश्लेषण के अनुसार, दिल्ली के कम से कम 22 वायु-गुणवत्ता निगरानी केंद्रों पर 59 दिनों का अध्ययन किया गया जिनमें से 30 से ज्यादा दिनों तक कार्बन मोनोऑक्साइड (सीओ) का स्तर तय सीमा से ऊपर रहा। द्वारका सेक्टर-8 में सबसे ज्यादा 55 दिन कार्बन मोनोऑक्साइड की सीमा अधिक रही।

इसके बाद जहांगीरपुरी और दिल्ली विश्वविद्यालय के उत्तर परिसर रहे, जहां 50 दिनों तक कार्बन मोनोऑक्साइड का स्तर सीमा से ज्यादा पाया गया। विश्लेषण में राजधानी में प्रदूषण के बढ़ते हुए चिंताजनक क्षेत्रों पर भी प्रकाश डाला गया है। साल 2018 में, केवल 13 स्थानों को आधिकारिक तौर पर ‘हॉटस्पॉट’ घोषित किया गया था।

अब, कई और स्थानों पर नियमित रूप से प्रदूषण का स्तर शहर के औसत से कहीं ज़्यादा दर्ज किया जा रहा है। जहांगीरपुरी दिल्ली का सबसे प्रदूषित इलाका पाया गया। यहां साल भर का पीएम2.5 का औसत स्तर 119 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रहा। इसके बाद बावाना और वज़ीरपुर में यह स्तर 113 माइक्रोग्राम रहा।

आनंद विहार में पीएम 2.5, 111 माइक्रोग्राम और मुंडका, रोहिणी तथा अशोक विहार में 101 से 103 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया। सीएसई द्वारा चिह्नित कुछ नए हॉटस्पॉट में विवेक विहार, अलीपुर, नेहरू नगर, सिरी फोर्ट, द्वारका सेक्टर 8 और पटपड़गंज शामिल हैं। इस वर्ष राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के छोटे शहरों में भी अधिक तीव्र और लंबे समय तक 'स्मॉग' की स्थिति रही।

बहादुरगढ़ में सबसे लंबी स्मॉग की अवधि दर्ज की गई जो नौ नवंबर से 18 नवंबर तक कुल 10 दिनों तक रही। यह दिखाता है कि यह इलाका अब एक ही तरह के वायु क्षेत्र (एयरशेड) की तरह व्यवहार करने लगा है, जहां प्रदूषण का स्तर लगातार और समान रूप से ज्यादा रहता है। सीएसई के मूल्यांकन से पता चलता है कि शुरुआती सर्दियों में प्रदूषण खतरनाक स्तर पर स्थिर हो गया है।

इसका मुख्य कारण स्थानीय स्रोतों से होने वाला उत्सर्जन है, जबकि पराली जलाने से होने वाला प्रदूषण अब काफी कम हो गया है। सीपीसीबी के आंकड़ों पर आधारित इस विश्लेषण से पता चलता है कि इस मौसम में पीएम 2.5, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओ2) और कार्बन मोनोऑक्साइड (सीओ) का “ज़हरीला मिश्रण” बढ़ गया है।

ये सभी प्रदूषक वाहनों और अन्य दहन स्रोतों से जुड़े होते हैं, और इनके बढ़ने से स्वास्थ्य जोखिम भी ज्यादा हो गए हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि यातायात के व्यस्तम समय में पीएम2.5 का स्तर नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओ2) के स्तर के साथ लगभग एक समान बढ़ा और घटा।

सुबह 7–10 बजे और शाम 6–9 बजे के बीच, दोनों प्रदूषकों का स्तर तेजी से बढ़ा, क्योंकि वाहनों से निकलने वाला धुआं सर्दियों में बनने वाली पतली वायु परतों के नीचे जमा हो गया। सीएसई की कार्यकारी निदेशक (अनुसंधान एवं नीति समर्थन) अनुमिता रॉयचौधरी ने कहा, "यह समन्वित पैटर्न इस बात को पुष्ट करता है कि कणीय प्रदूषण में वृद्धि, यातायात से संबंधित उत्सर्जन एनओ2 और सीओ के कारण प्रतिदिन बढ़ रही है, विशेष रूप से कम फैलाव वाली स्थितियों में।"

उन्होंने कहा, "फिर भी, सर्दियों में धूल नियंत्रण के उपायों पर ही ध्यान दिया जाता है, तथा वाहनों, उद्योगों, अपशिष्ट जलाने और ठोस ईंधनों पर कार्रवाई कम होती है।" रिपोर्ट में कहा गया है कि इस वर्ष पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाएं काफी कम रहीं, जिसका आंशिक कारण बाढ़ के कारण फसल चक्र में व्यवधान उत्पन्न होना था।

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