बिहार हेल्थ विभागः टॉर्च की रोशनी में ऑपरेशन, ठेले पर स्वास्थ्य सिस्टम, बिहार में आम बात?, आखिर क्यों स्वास्थ्य मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक थपथपा रहे हैं पीठ?

By एस पी सिन्हा | Updated: December 8, 2025 14:16 IST2025-12-08T14:15:23+5:302025-12-08T14:16:31+5:30

Bihar Health Department: कुल 568 एएएम-एचएससी में से मात्र 69 स्वास्थ्य संस्थान ही इस राष्ट्रीय मानक के अनुरूप प्रमाणित हो पाए हैं।

Bihar Health Department Operations torchlight health system carts common in Bihar Why everyone Health Minister Chief Minister patting their backs | बिहार हेल्थ विभागः टॉर्च की रोशनी में ऑपरेशन, ठेले पर स्वास्थ्य सिस्टम, बिहार में आम बात?, आखिर क्यों स्वास्थ्य मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक थपथपा रहे हैं पीठ?

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Highlightsबच्चे का सिर चूहे ने कुतर दिया।महज कुछ उदाहरण मात्र हैं। गुणवत्ता राष्ट्रीय मानकों से काफी पीछे है।

पटनाः बिहार में स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए कई बड़े कदम उठाए जा रहे हैं, बावजूद इसके व्यवस्था सुधर नहीं पा रही है। बिहार के स्वास्थ्य मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर अपनी पीठ थपथपाते नजर आते हैं। पर जब जमीनी हकीकत कागज पर उकेरी जाती है तो सब औंधे मुंह गिर जाते हैं। पिछली सरकार से तुलना करने लगते हैं। टॉर्च की रोशनी में ऑपरेशन, ठेले पर स्वास्थ्य सिस्टम, ये बिहार के लिए आम बात है। अभी पिछले दिनों ही डीएमसीएच से ऐसी एक खबर सामने आई थी, जिसमें एक बच्चे का सिर चूहे ने कुतर दिया।

यह महज कुछ उदाहरण मात्र हैं। बिहार में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता राष्ट्रीय मानकों से काफी पीछे है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी राष्ट्रीय गुणवत्ता आश्वासन मानक (एनक्यूएएस) प्रमाणन के मामले में राज्य की उपलब्धि बेहद निराशाजनक है। राज्य के कुल 568 एएएम-एचएससी में से मात्र 69 स्वास्थ्य संस्थान ही इस राष्ट्रीय मानक के अनुरूप प्रमाणित हो पाए हैं।

प्रतिशत के हिसाब से यह उपलब्धि सिर्फ 11.72 है, जो केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित लक्ष्यों के मुकाबले बहुत कम है और राज्य के स्वास्थ्य तंत्र के लिए गंभीर चिंता का विषय है। हालांकि सरकार ने स्वास्थ्य कर्मियों का मानदेय बढ़ाना (जैसे लैब टेक्नीशियन), आशा कार्यकर्ताओं की भर्ती, नए मेडिकल कॉलेजों और अस्पतालों का निर्माण (जैसे दरभंगा एम्स) और ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है। लेकिन हाल यह है कि कई अस्पतालों में डॉक्टर हैं तो स्टाफ की कमी है और जहां डॉक्टर नहीं हैं, वहां नर्स(एएनएम) के सहारे मरीजों का इलाज किया जाता है।

कुछ रिपोर्टें (जैसे सीएजी) अभी भी कमियों और फंड के उपयोग पर सवाल उठाती हैं। बिहार के भोजपुर जिले के स्व. देवशरण सिंह अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र को बने 5 साल हो गए। यहां सब कुछ चकाचक है, लेकिन स्वास्थ्य विभाग डॉक्टरों की नियुक्ति करना भूल गया। भोजपुर जिले के सिविल सर्जन शिवेंद्र कुमार सिन्हा ने बताया कि इस संबंध में विभाग को लिखा गया है।

अभी अस्पताल में किसी की पोस्टिंग भी नहीं हुई है। किसी तरह से स्टाफ को इधर उधर से लाकर चला रहे हैं। सरकार जब डॉक्टरों की नियुक्ति कर देगी तो अस्पताल अच्छे से चलने लगेगा। सहार में लोगों ने बताया कि डॉक्टर साहब कब आते हैं और कब जाते हैं पता ही नहीं चलता। कभी कभार जब घर में कोई बीमार होता है तो अस्पताल में पूछने चले आते है कि 'डॉक्टर साहब हैं क्या?'.

लेकिन जवाब मिलता है कि नहीं। यह दर्द शायद बिहार के किसी एक मरीज या उनके परिजन की नहीं है। आज हर जिले में ऐसे अस्पताल मिल जाएंगे, जहां मरीजों की लंबी कतार तो रहती है, लेकिन डॉक्टर की कमी से मरीजों का इंतजार लंबा हो जाता है। शायद इसलिए बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि किसी को अस्पताल या कोर्ट कचहरी का चक्कर ना लगे।

हालांकि ऐसा नहीं है कि हाल के वर्षों में बिहार के स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार नहीं हुआ है। अत्याधुनिक सुविधाओं से कई अस्पताल लैस हुए हैं। पीएमसीएच एशिया का सबसे बड़ा अस्पताल बनने जा रहा है। लेकिन अभी भी कई कमियां मौजूद है जो स्वास्थ्य विभाग की कलई उजागर करने के लिए काफी है।

यहां बात-बात पर जूनियर डॉक्टर और मरीज के परिजनों के बीच मारपीट फिर हड़ताल की बातें तो आम हो गई हैं। पीएमसीएच दिन के करीब 11 बजे हैं और ओपीडी में मरीजों की लंबी कतार। लेकिन पता नहीं कब डॉक्टर साहब आयेंगे। उधर, संपत्तचक पीएचसी एएनएम के भरोसे है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में दो एमबीबीएस डाक्टर समेत तीन डाक्टर, एक जीएनएम, दो एएनएम, एक फार्मासिस्ट, एक क्लर्क, दो चतुर्थवर्गीय कर्मी की ड्यूटी लगनी चाहिए, लेकिन अस्पताल को दो एएनएम और दो गार्ड के भरोसे छोड़ दिया गया है।

आज हर जिले में ऐसे अस्पताल मिल जाएंगे, जहां मरीजों की लंबी कतार तो रहती है, लेकिन डॉक्टर की कमी से मरीजों का इंतजार लंबा हो जाता है। शायद इसलिए बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि किसी को अस्पताल या कोर्ट कचहरी का चक्कर ना लगे। कैग रिपोर्ट के अनुसार, बिहार के स्वास्थ्य विभाग में सृजित पद में आधे पद खाली हैं।

सरकार के तय मानक के अनुसार 1000 की आबादी पर एक चिकित्सक होना चाहिए, लेकिन बिहार में 2148 व्यक्ति पर एक डॉक्टर ही उपलब्ध है। 2024 के शीतकालीन सत्र में बिहार सरकार की तरफ से कैग की रिपोर्ट विधानमंडल में पेश की गई थी। कैग की रिपोर्ट में वित्तीय वर्ष 2016-17 से 2021-22 के दौरान सरकार के द्वारा स्वास्थ्य विभाग को 69790.83 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे।

लेकिन स्वास्थ्य विभाग आवंटित राशि में केवल 48047.79 करोड़ ही खर्च कर पाई। यानी विभाग 69 प्रतिशत राशि खर्च कर पाई और 31 प्रतिशत राशि का विभाग द्वारा कोई उपयोग नहीं किया गया। कुल रकम के हिसाब से देखें तो 21743.04 करोड़ रुपये बिहार सरकार का स्वास्थ्य विभाग खर्च ही नहीं कर पाया।

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक यानी सीएजी रिपोर्ट ने बिहार में स्वास्थ्य विभाग के 5 सालों की पोल खोल कर रख दिया। अस्पतालों में आधे पद खाली हैं। कहीं ओटी नहीं तो कहीं वेंटिलेटर बंद है। बिहार के अस्पतालों में डॉक्टरों के 49 प्रतिशत पोस्ट खाली हैं। कैग की रिपोर्ट के अनुसार राज्य में औषधि नियंत्रक खाद्य सुरक्षा स्कंद आयुष एवं मेडिकल कॉलेज एवं अस्पतालों में 53 प्रतिशत रिक्तियां हैं।

बिहार में मार्च 2022 तक 12.49 करोड़ बिहार की आबादी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन कितने मानक के अनुसार राज्य में 124919 एलोपैथिक डॉक्टर की आवश्यकता थी, लेकिन जनवरी 2025 तक केवल 58144 एलोपैथिक डॉक्टर उपलब्ध थे। डबल्यूएचओ के अनुशंसित मापदंड से 53 प्रतिशत कम एवं राष्ट्रीय औसत के अनुसार 32 प्रतिशत कम पाया गया था।

इसके अलावा मार्च 2023 तक 11298 एलोपैथिक डॉक्टर की स्वीकृत पदों के सापेक्ष 4741 यानी 42 प्रतिशत राज्य में पदस्थापित थे। राज्य स्वास्थ्य समिति, बिहार के राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी डॉ. अभिषेक कुमार सिन्हा द्वारा जारी पत्र के मुताबिक केंद्र सरकार ने वर्ष 2026 तक 100 प्रतिशत स्वास्थ्य संस्थानों को एनक्यूएएस प्रमाणित करने का लक्ष्य रखा है।

इसके तहत, वर्ष 2025 में ही कम-से-कम 50 प्रतिशत संस्थानों को प्रमाण मिल जाना चाहिए था। 11.72 प्रतिशत की वर्तमान उपलब्धि इस लक्ष्य के मुकाबले बेहद कम है, जिससे स्वास्थ्य तंत्र की खराब स्थिति का पता चलता है। एनक्यूएएस प्रमाणन एनक्यूएएस का मतलब राष्ट्रीय गुणवत्ता आश्वासन मानक है।

राज्य स्वास्थ्य समिति ने जिला कार्यक्रम पदाधिकारियों- एएएम-एचएससी, कार्यक्रम प्रबंधकों को कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। आदेश में कहा है कि सभी जिले तुरंत 4-4 एएएम-एचएससी का नाम भेजें, ताकि मूल्यांकन प्रक्रिया शुरू की जा सके। इन केंद्रों पर उपलब्ध चिकित्सा उपकरण, बुनियादी सुविधाओं और मानव संसाधन का विवरण एक सप्ताह में उपलब्ध कराएं ताकि केंद्र द्वारा निर्धारित 2026 के 100 प्रतिशत लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, राष्ट्रीय प्रमाणन की इतनी कम दर राज्य को कई मोर्चों पर नुकसान पहुंचा सकती है।

इससे राष्ट्रीय रैंकिंग में गिरावट आएगी तथा स्वास्थ्य प्रदर्शन सूचकांक पर बिहार की स्कोरिंग प्रभावित होगी। केंद्र से मिलनेवाले फंड पर भी असर पड़ेगा। कम प्रगति के कारण प्रोत्साहन राशि में कटौती या केंद्र से फंड मिलने में विलंब हो सकता है। साथ ही, कम गुणवत्ता वाली सेवाओं पर जनता का विश्वास घटेगा, जिससे निजी स्वास्थ्य सुविधाओं पर निर्भरता बढ़ेगी।

बिहार में बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था की बात करने पर स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने कहा कि अगर पूर्व की सरकार ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम किया होता तो आज परेशानी नहीं होती। उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी की सरकार में स्वास्थ्य सेवाओं पर पूरे देश भर में खर्च हो रहा है। अगर पहले की सरकार द्वारा पूर्व में ही मेडिकल कॉलेज के निर्माण किए गए होते तो आज डॉक्टरों की कमी नहीं होती।

देश के प्रधानमंत्री का ध्यान इसपर गया तो आज जगह-जगह मेडिकल कॉलेज खुल रहे हैं। डॉक्टरों की बहाली हो रही है। आने वाले दिनों में स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को लेकर बड़े ही पैमाने पर काम किए जा रहे हैं। अधिक से अधिक विशेषज्ञ डॉक्टरों की नियुक्ति की जा रही है।

मंगल पांडेय ने कहा कि बिहार की आबादी 12 करोड़ से अधिक है। ग्रामीण क्षेत्रों में भी स्वास्थ्य व्यवस्था दुरूस्त किए जाने को लेकर कई काम किए जा रहे हैं। बिहार में बहुत जल्द ही बड़े बदलाव नजर आने लगेंगें। जहां तक छोटी-मोटी घटनाओं की बात है तो जानकारी मिलते ही उसपर कार्रवाई भी की जाती है।

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