31 साल से नहीं परमानेंट स्टाफ, गेस्ट टीचर्स के भरोसे चल रहा है पूरा इंस्टीट्यूट
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: January 2, 2019 04:10 PM2019-01-02T16:10:18+5:302019-01-02T16:10:18+5:30
शुरुआत में जब इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस में एन्वायर्नमेंट साइंस पाठय़क्रम शुरू हुआ था तो केमेस्ट्री, बॉटनी और जूलॉजी के एक्सेस टीचर इस विभाग में पढ़ा लिया करते थे लेकिन अब इन्हीं विभागों में टीचर्स कम पड़ रहे हैं।
आज देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में ग्लोबल वार्मिग से निपटने के लिए असरदार उपाय करना बेहद जरूरी हो गया है। इसी के साथ एन्वायर्नमेंट साइंस को बढ़ावा देना भी समय की जरूरत है लेकिन शहर में गवर्नमेंट इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस में 31 साल में भी किसी परमानेंट स्टाफ की भर्ती नहीं हो सकी है। सीएचबी स्टाफ के भरोसे पूरा इंस्टीट्यूट चल रहा है। साल दर साल यूनिवर्सिटी द्वारा कमेटी गठित कर उससे रिपोर्ट मंगाई जाती है लेकिन कमेटी की सिफारिशों पर भी अमल नहीं किया जाता है। पेश है मेट्रो एक्सप्रेस की रिपोर्ट।
शहर में 1987 में गवर्नमेंट इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस में एन्वायर्नमेंट साइंस में बीएससी पाठय़क्रम की शुरुआत हुई थी। शुरुआत में अन्य विभागों के एक्सेस हो चुके टीचर्स और नीरी के साइंटिस्ट यहां आकर पढ़ाया करते थे। बाद में यहां परमानेंट स्टाफ भरे जाने की उम्मीद थी लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हो पाया। इस बीच 1990 में यहां एमएससी पाठय़क्रम भी शुरू हो गया लेकिन इसे भी सीएचबी टीचिंग स्टाफ के हवाले कर दिया गया। हालांकि यूनिवर्सिटी हर साल कमेटी गठित कर इसका हाल जानने में दिलचस्पी जरूर दिखाती है लेकिन उसका स्तर ऊंचा करने को लेकर सरकार का उदासीन रवैया बरकरार है।
कमेटी की सिफारिश भी हाशिए पर
यूनिवर्सिटी द्वारा हर साल एन्वायर्नमेंटल साइंस को लेकर लोकल इन्क्वायरी कमेटी गठित की जाती है। यह समिति हर साल गवर्नमेंट इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस में परमानेंट टीचिंग स्टाफ के लिए वैकेंसी क्रिएट करने की सिफारिश करती है लेकिन इस पर अमल करने की मानसिकता प्रशासन में नजर नहीं आ रही है। सवाल यह है कि जब कमेटी की सिफारिशों पर अमल ही नहीं करना है तो फिर हर साल कमेटी गठित ही क्यों की जाती है?
गवर्नमेंट को भेजी गई है वैकेंसी की डिमांड
गवर्नमेंट इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस की ओर से वैसे तो कई बार परमानेंट स्टाफ की मांग सरकार के समक्ष रखी जा चुकी है। पिछले साल भी वर्कलोड के हिसाब से एक प्रोफेसर, एक एसोसिएट प्रोफेसर और चार असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति करने की मांग की गई है लेकिन अब तक इस पर कोई एक्शन नहीं लिया गया। सरकार की इस ओर अनदेखी साफ झलक रही है। एक ओर पर्यावरण सुरक्षा को लेकर उठाए जाने वाले कदमों के बारे में सरकार बड़े-बड़े दावे करती है तो दूसरी ओर पर्यावरण शिक्षा का यह हाल है।
तो मान्यता नहीं देगी यूनिवर्सिटी
पिछले साल राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर यूनिवर्सिटी की ओर से यह निर्देश जारी किया गया है कि जिस विभाग में खासकर पोस्ट ग्रेजुएट स्तर पर एक भी परमानेंट स्टाफ नहीं होगा तो उसकी मान्यता को रद्द कर दिया जाएगा। एक ओर सरकार परमानेंट स्टाफ की भर्ती करने में टालमटोल कर रही है तो दूसरी ओर यूनिवर्सिटी का यह रवैया है। ऐसे में यहां शिक्षा हासिल कर रहे विद्यार्थियों ने क्या समझना चाहिए? सरकार को यहां स्टाफ की भर्ती करनी चाहिए।
पहले तो चल जाता था लेकिन अब नहीं
शुरुआत में जब इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस में एन्वायर्नमेंट साइंस पाठय़क्रम शुरू हुआ था तो केमेस्ट्री, बॉटनी और जूलॉजी के एक्सेस टीचर इस विभाग में पढ़ा लिया करते थे लेकिन अब इन्हीं विभागों में टीचर्स कम पड़ रहे हैं। इसलिए एन्वायर्नमेंट साइंस को पूरी तरह सीएचबी के भरोसे छोड़ दिया गया है। वहीं, यूनिवर्सिटी ने चार साल पहले एमएससी के लिए संबंधित विषय यानी एन्वायर्नमेंट साइंस से जुड़े स्टाफ को ही रखने के निर्देश दिए थे। वैकेंसी ही नहीं भरे जाने से इस पर अमल नहीं हो पा रहा है। ऐसे में यूनिवर्सिटी के डायरेक्शन और स्टेट गवर्नमेंट की नीति में ही टकराव होता नजर आ रहा है।
इन जगहों पर है स्कोप
एन्वायर्नमेंट साइंस के स्टूडेंट्स को जॉब के लिए भी अच्छा स्कोप है। इंडस्ट्रियल फील्ड के अलावा, महाराष्ट्र पॉल्युशन कंट्रोल बोर्ड, पर्यावरण मिनिस्ट्री, कॉलेज, नीरी आदि में जॉब अवेलेबल है। इसलिए स्टूडेंट्स भी एन्वायर्नमेंट साइंस में एडमिशन लेने में दिलचस्पी दिखाते हैं। विद्यार्थियों को स्तरीय शिक्षा मिल सके, इसके लिए परमानेंट टीचर्स की नियुक्ति जरूरी है।
वर्कलोड के हिसाब से छह के स्टाफ की जरूरत
इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस में एन्वायर्नमेंट साइंस के बीएससी और एमएससी के वर्कलोड के हिसाब से 6 का टीचिंग स्टाफ जरूरी है। इसमें एक प्रोफेसर, एक असोसिएट प्रोफेसर और चार असिस्टेंट प्रोफेसर की जरूरत है। इसकी डिमांड स्टेट गवर्नमेंट से की गई है लेकिन इस ओर अनदेखी की जा रही है। परमानेंट टीचर्स होने से जिम्मेदारी तय हो पाएगी और स्टूडेंट्स को फुल टाइम टीचर्स की सेवा मिल सकेगी। एक्जामनिंग, पेपर सेटिंग जैसे कार्यो में भी मदद मिलेगी।