एमफिल है समय की बर्बादी, नई शिक्षा नीति में गांधी और टैगोर की स्कूली शिक्षा का मॉडल होगा साकार

By एसके गुप्ता | Published: July 31, 2020 07:03 PM2020-07-31T19:03:21+5:302020-07-31T19:03:21+5:30

यूजीसी ने उस समय फोर ईयर कोर्स को रोल बैक कर दिया था। उस समय फोर ईयर रोल बैक का कारण वामपंथियों का विरोध था जो आज भी इसे शिक्षा का निजीकरण बता रहे हैं। मेरा मानना है कि यह शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने की दिशा में बड़ा कदम है।

New education policy 2020 MPhil waste time Gandhi and Tagore's model of schooling realized | एमफिल है समय की बर्बादी, नई शिक्षा नीति में गांधी और टैगोर की स्कूली शिक्षा का मॉडल होगा साकार

छठी कक्षा से छात्रों को कोडिंग सीखाना, वोकेशनल कोर्स पढ़ाने के साथ उन्हें इंटर्नशिप देना। ये नए भारत की शुरुआत है। (file photo)

Highlightsजहां तक एमफिल खत्म करने की बात है तो विदेशों में भी एमफिल को महत्व नहीं दिया जाता है।प्रो. सिंह ने कहा कि स्कूली शिक्षा के शुरूआती तीन साल और बाद के तीन साल छात्र को परिपक्व बनाते हैं।यही सोचकर नई शिक्षा नीति में 5+3+3+4 मॉडल पर पहले पांच और बाद के चार सालों पर ज्यादा ध्यान दिया गया है।

नई दिल्लीः देश में फोर ईयर ग्रेजुएशन मॉडल लाने वाले डीयू के पूर्व कुलपति प्रो. दिनेश सिंह ने लोकमत से विशेष बातचीत में कहा कि नई शिक्षा नीति (एनईपी) में उच्च शिक्षा का मॉडल करीब-करीब वैसा ही है जैसा वर्ष 2013 में उन्होंने डीयू में लागू किया था।

यूजीसी ने उस समय फोर ईयर कोर्स को रोल बैक कर दिया था। उस समय फोर ईयर रोल बैक का कारण वामपंथियों का विरोध था जो आज भी इसे शिक्षा का निजीकरण बता रहे हैं। मेरा मानना है कि यह शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने की दिशा में बड़ा कदम है। जहां तक एमफिल खत्म करने की बात है तो विदेशों में भी एमफिल को महत्व नहीं दिया जाता है।

एमफिल शोधार्थी छात्रों के समय की बर्बादी है। मैं बहुत खुश हूं कि छात्रहितों में फोर ईयर पूरे देश में लागू होगा। प्रो. दिनेश सिंह ने लोकमत से कहा कि डीयू में 30 फीसदी छात्र ऐसे हैं जो दूसरे या तीसरे साल में पढ़ाई छोड़ देते हैं।

नई शिक्षा नीति की तरह ही फोर ईयर कोर्स में मल्टीपल एग्जिट, मल्टीपल एंट्री और मल्टी डिसीप्लनरी लर्निंग का विकल्प हमने भी दिया था। प्रो. सिंह ने कहा कि स्कूली शिक्षा के शुरूआती तीन साल और बाद के तीन साल छात्र को परिपक्व बनाते हैं।

इसके बाद स्नातक के तीन साल काफी महत्वपूर्ण होते हैं। यही सोचकर नई शिक्षा नीति में 5+3+3+4 मॉडल पर पहले पांच और बाद के चार सालों पर ज्यादा ध्यान दिया गया है। महात्मा गांधी और गुरु रविंद्रनाथ टैगोर ने स्कूली शिक्षा में सुधार के लिए छात्रों की आधारशिला मजबूत करने की जो बातें कहीं थीं।

वह एनईपी-2020 में नजर आ रही हैं। छठी कक्षा से छात्रों को कोडिंग सीखाना, वोकेशनल कोर्स पढ़ाने के साथ उन्हें इंटर्नशिप देना। ये नए भारत की शुरुआत है। मातृ भाषा में पढ़ाई के साथ सरकार ने तीन भाषाओं में क्षेत्रीय भाषाओं का विकल्प भी दिया है और ई-कंटेंट भी आठ क्षेत्रीय भाषाओं में तैयार करने की बात कही है। इससे छात्र विषयों को रटने की बजाए बेहतर तरीके से अपनी भाषा में समझ सकेंगे।

डीयू के फोर ईयर कोर्स में विदेशी छात्रों ने काफी संख्या में दाखिला लिया था। नई शिक्षा नीति से विदेशी छात्रों की संख्या देश के शिक्षण संस्थानों में बढ़ेगी।

Web Title: New education policy 2020 MPhil waste time Gandhi and Tagore's model of schooling realized

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