ब्लॉग: अभी भी क्यों असुरक्षित है आधी आबादी ?
By रमेश ठाकुर | Published: November 25, 2023 11:06 AM2023-11-25T11:06:42+5:302023-11-25T11:09:07+5:30
उस घटना की समूचे संसार में निंदा हुई, तभी महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने तीनों बहनों की मौत की सालगिरह पर हिंसा के खिलाफ ये खास दिन मनाने का रिवाज शुरू किया।
दिल्ली के निर्भया कांड ने आधी आबादी पर होते जुल्म को देखकर गहरी नींद में सोने वाले मानव समाज को झटके से जगाया था। झकझोर देने वाली उस घटना के बाद कुछ वर्षों तक तो लोगों में महिला जागरूकता को लेकर अच्छी खासी चेतनाएं रहीं, लेकिन जैसे-जैसे समय आगे बढ़ा, लोग सब कुछ भूलते चले गए।
देखकर दुख होता है जब भीड़ की मौजूदगी में भी हिंसक प्रवृत्ति के लोग महिलाओं का सरेआम उत्पीड़न करते हैं और लोग तमाशबीन बनकर चुपचाप देखते रहते हैं। बीते सात-आठ महीनों में मणिपुर में हुई ऐसी तमाम घटनाएं इस बात का उदाहण हैं।
बात कोई छह दशक पूर्व की है जब डोमिनिकन शासक ‘राफेल ट्रूजिलो’ के आदेशानुसार डोमिनिकन गणराज्य की तीन सगी बहनों, पैट्रिया मर्सिडीज मिराबेल, मारिया अर्जेंटीना मिनर्वा मिराबेल व एंटोनिया मारिया टेरेसा मिराबेल की 25 नवंबर 1960 को एक साथ निर्मम हत्या कर दी गई।
तीनों बहनों का गुनाह मात्र इतना था उन्होंने ट्रूजिलो की दमनकारी और तानाशाही हुकूमत के खिलाफ आवाज उठाई थी। उस घटना की समूचे संसार में निंदा हुई, तभी महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने तीनों बहनों की मौत की सालगिरह पर हिंसा के खिलाफ ये खास दिन मनाने का रिवाज शुरू किया।
इसके बाद इस दिवस को संयुक्त राष्ट्र से मान्यता भी मिल गई। 17 दिसंबर 1999 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 25 नवंबर को महिलाओं के खिलाफ हिंसा उन्मूलन के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस के रूप में नामित किया गया। तभी से ये दिवस मनाया जाने लगा।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) रिपोर्ट बताती है कि देश में रोजाना 246 लड़कियां और 1027 महिलाएं गायब हो रही हैं। कठोर कानून होने के बावजूद प्रतिदिन 87 महिलाओं के साथ बलात्कार हो रहा है।
ये आंकड़े निश्चित रूप से भयभीत करते हैं। इन आंकड़ों में कमी तभी आएगी, जब समाज प्रहरी की भूमिका में आएगा। महिला सुरक्षा सभी का दायित्व होना चाहिए।