PFI पर राज्य सरकार द्वारा लगाए प्रतिबंध को हाईकोर्ट ने हटाया, कहा-ISIS से संबंधों के नहीं मिले कोई प्रमाण
By एस पी सिन्हा | Published: August 28, 2018 09:45 PM2018-08-28T21:45:08+5:302018-08-28T21:45:08+5:30
21 फरवरी 2018 को सरकार ने पीएफआई पर प्रतिबंध लगा दिया था।
रांची,28 अगस्त: झारखंड में सरकार के द्वारा पीएफआई का संबंध आईएसआईएस से संबंध से होने के आरोप में प्रतिबंध लगाये जाने के को रांची हाई कोर्ट में दी गई चुनौती पर मंगलवार को सुनवाई करते हुए अदालत ने सबूत के अभाव में कोर्ट ने पीएफआई से प्रतिबंध हटाने का आदेश दिया है। पिछले 6 महीने में सरकार हाई कोर्ट में इस बात का सबूत नहीं दे पाई कि पीएफआई का संबंध आईएसआईएस से है।
21 फरवरी 2018 को सरकार ने पीएफआई पर प्रतिबंध लगा दिया था।
प्राप्त जानकारी के अनुसार पीएफआई पर झारखंड समेत केरल और कर्नाटक में अपहरण और हत्या समेत कई आरोप हैं। सरकार का दावा था कि इस संगठन का संबंध आईएसआईएस से है और इसके कई सदस्य सीरिया जा चुके हैं। कोर्ट ने प्रतिबंध हटाने के साथ-साथ इस नोटिस के तहत की गई प्राथमिकी और अन्य आपराधिक मामले को भी निरस्त कर दिया है।
न्यायाधीश रंगन मुखोपाध्याय की कोर्ट में मामले पर सुनवाई पूर्व में ही पूर्ण कर ली गई थी। आज अदालत ने अपना फैसला सुनाते हुए पीएफआई नामक संस्था पर जो प्रतिबंध लगाई गई थी उसे कोर्ट ने निरस्त कर दिया है। कोर्ट ने सरकार के द्वारा किए गए प्रक्रिया को दोषपूर्ण बताते हुए उस नोटिस को निरस्त कर दिया। प्रार्थी अब्दुल वदूद ने सरकार के द्वारा पीएफआई पर प्रतिबंधित करने को लेकर किए गए नोटिस के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर किया था।
याचिका की सुनवाई के उपरांत दोनों पक्षों को सुनने पर के बाद कोर्ट ने सरकार के द्वारा जारी नोटिस को यह कहते हुए निरस्त कर दिया कि सरकार ने जो यह नोटिस जारी किया इसमें प्रक्रिया सही से नहीं अपनाया गया।
यहां बता दें कि पीपुल्स फ्रंट ऑफ इंडिया नामक संस्था साहिबगंज जिला के आसपास अधिक सक्रिय था, राज्य सरकार ने अपनी सूचना के आधार पर 21 फरवरी 2018 को गृह विभाग से एक नोटिफिकेशन जारी किया गया और इस संस्था पर प्रतिबंध लगाया गया।
यह कहते हुए कि यह संस्था और अनलॉफूल है। इस संस्था के सदस्य अब्दुल वदूद के ऊपर साहिबगंज जिला के रांगा थाना में मामला दर्ज किया गया। जिसके खिलाफ प्रार्थी अब्दुल वदूद ने हाईकोर्ट में याचिका दायर किया था।
जिस याचिका की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने राज्य सरकार के गृह विभाग द्वारा जारी 21 फरवरी 2018 के नोटिस को ही निरस्त कर दिया और इसके तहत की गई सारी प्रक्रिया को भी निरस्त कर दिया।