हत्या के जुर्म में फांसी की सजा पाए व्यक्ति ने जेल में लिखी कविता, जज ने पढ़ी तो फांसी को उम्रकैद में बदला
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: March 4, 2019 08:28 AM2019-03-04T08:28:36+5:302019-03-04T08:28:36+5:30
स्टिस ए.के. सीकरी की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि दनेश्वर सुरेश बोरकर ने जब अपराध किया था वह 22 साल का था और जेल में रहने के दौरान उसने समाज से जुड़ने और शिक्षित व्यक्ति बनने का प्रयास किया.
नई दिल्ली, 3 मार्च: सुप्रीम कोर्ट ने एक बच्चे की हत्या के जुर्म में मौत की सजा पाए एक दोषी की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दी. इसके पीछे दलील दी कि वह सुधरना चाहता है और जेल के अंदर उसने जो कविताएं लिखी हैं उससे पता चलता है कि उसे अपनी गलती का एहसास है.
जस्टिस ए.के. सीकरी की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि दनेश्वर सुरेश बोरकर ने जब अपराध किया था वह 22 साल का था और जेल में रहने के दौरान उसने समाज से जुड़ने और शिक्षित व्यक्ति बनने का प्रयास किया. जस्टिस एस. अब्दुल नजीर और जस्टिस एम.आर. शाह भी इस पीठ का हिस्सा थे.
उन्होंने भी कहा कि बोरकर पिछले 18 वर्षों से जेल में है और उसका आचरण दिखाता है कि उसमें सुधार लाया जा सकता है और उसका पुनर्वास हो सकता है. बोरकर ने बंबई हाई कोर्ट के 2006 मई के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.
हाई कोर्ट ने एक नाबालिग बच्चे की हत्या के जुर्म में निचली अदालत की ओर से सुनाई गई मौत की सजा के बरकरार रखा था. दोषी के वकील ने कोर्ट में अपने तर्क में कहा था कि जेल में बोरकर का आचरण बेहद अच्छा है, उसने जेल में अपनी पढ़ाई पूरी की और एक शिक्षित इंसान बनने की कोशिश की.