बड़े घोटाले का खुलासा- अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति के 25.5 लाख आवेदकों में से 26% फर्जी पाए गए
By शिवेन्द्र कुमार राय | Published: December 1, 2023 10:28 AM2023-12-01T10:28:39+5:302023-12-01T10:30:47+5:30
इस मामले के सामने आने के बाद मंत्रालय गंभीर है। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय द्वारा लापता लाभार्थियों, नोडल अधिकारियों और संस्थानों के प्रमुखों के डाटा को सीबीआई के साथ साझा किया जाएगा। सीबीआई पहले से ही अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति में गंभीर अनियमितताओं के आरोपों की जांच कर रही है।
नई दिल्ली: साल 2022-23 के लिए अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय की अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति योजना के लिए राज्यों द्वारा सत्यापित 25.5 लाख आवेदकों की जांच में एक चौंकाने वाली वास्तविकता सामने आई है। इन दस्तावेजों का जब आधार आधारित बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण किया गया तो 6.7 लाख से अधिक आवेदक फर्जी पाए गए।
टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार जांच से यह भी पता चला कि 1 लाख से अधिक संस्थागत नोडल अधिकारी (आईएनओ) और इतनी ही संख्या में संस्थानों के प्रमुख (एचओआई) जो आवेदनों के सत्यापन के लिए जिम्मेदार थे, उनमें से 5,422 आईएनओ और 4,834 एचओआई बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण के दौरान गायब पाए गए।
अंत में कुल 18.8 लाख आवेदकों को मंत्रालय द्वारा संचालित अभियान द्वारा सत्यापित किया गया। इनमें से 6.2 लाख वे आवेदक भी शामिल थे जिन्होंने छात्रवृत्ति के नवीनीकरण के लिए आवेदन किया था। मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक, जांच से पता चला कि 2022-23 में नवीनीकरण श्रेणी के तहत 30% आवेदक फर्जी पाए गए।
साल 2021-22 में मंत्रालय को 30 लाख आवेदन प्राप्त हुए थे जिनमें से 9.1 लाख नवीनीकरण के लिए थे। बता दें कि छात्रवृत्ति संस्थागत नोडल अधिकारी द्वारा सत्यापन के बाद जिला स्तर पर नोडल अल्पसंख्यक अधिकारी के अनुमोदन और उचित प्रमाणीकरण के साथ दी जाती है। इसका पैसा लाभार्थियों के बैंक खातों में प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के माध्यम से दिया जाता है।
इस मामले के सामने आने के बाद मंत्रालय गंभीर है। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय द्वारा लापता लाभार्थियों, नोडल अधिकारियों और संस्थानों के प्रमुखों के डाटा को सीबीआई के साथ साझा किया जाएगा। सीबीआई पहले से ही अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति में गंभीर अनियमितताओं के आरोपों की जांच कर रही है।
टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार राष्ट्रीय छात्रवृत्ति पोर्टल पर पंजीकृत 21 राज्यों के 1,572 अल्पसंख्यक संस्थानों की जांच से पता चला कि उनमें से 830 के पास फर्जी लाभार्थी थे। ये जानकारी सामने आमने के बाद मंत्रालय को जांच सीबीआई को सौंपने के लिए मजबूर होना पड़ा। 2017-18 से 2021-22 के बीच इन संस्थानों द्वारा पंजीकृत लाभार्थियों को विभिन्न श्रेणियों में छात्रवृत्ति के रूप में लगभग 145 करोड़ रुपये दिए गए।