नहीं रहे दिल्ली क्रिकेट के ‘गुरु द्रोण’ तारक सिन्हा, आशीष नेहरा, शिखर धवन और ऋषभ पंत के करियर को दी थी नई उड़ान, विकेटकीपर ने यूं किया याद

भारतीय क्रिकेट को कई अंतरराष्ट्रीय और प्रथम श्रेणी क्रिकेटर देने वाले मशहूर कोच तारक सिन्हा का लंबी बीमारी के बाद यहां शनिवार की सुबह निधन हो गया।

By सतीश कुमार सिंह | Published: November 6, 2021 02:53 PM2021-11-06T14:53:39+5:302021-11-06T14:55:28+5:30

Tarak Sinha legendary cricket coach and Dronacharya Awardee dies aged 71 Rishabh Pant, Ashish Nehra, Shikhar Dhawan | नहीं रहे दिल्ली क्रिकेट के ‘गुरु द्रोण’ तारक सिन्हा, आशीष नेहरा, शिखर धवन और ऋषभ पंत के करियर को दी थी नई उड़ान, विकेटकीपर ने यूं किया याद

सॉनेट क्रिकेट क्लब में काम करने वाले तारक सिन्हा ने कई पीढ़ियों के क्रिकेटरों के साथ काम किया था।

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Highlightsतारक सिन्हा अविवाहित थे और उनके परिवार में बहन और सैकड़ों छात्र हैं।देश के कई प्रतिभाशाली क्रिकेटरों को तलाशने वाले सोनेट क्लब की स्थापना सिन्हा ने ही की थी।द्रोणाचार्य पुरस्कार प्राप्त करने वाले पांचवें भारतीय क्रिकेट कोच थे।

नई दिल्लीः भारत के क्रिकेटरों की पीढ़ियों के साथ काम कर चुके क्रिकेट कोच तारक सिन्हा का शनिवार को नई दिल्ली में कैंसर के कारण निधन हो गया। वह 71 वर्ष के थे। तारक सिंह कुछ समय से फेफड़ों के कैंसर से जूझ रहे थे और हाल ही में उन्हें मल्टीपल ऑर्गन फेल्योर हुआ था।

सिन्हा ने नई दिल्ली के एक अस्पताल में अंतिम सांस ली। तारक सिन्हा देश प्रेम आजाद, गुरचरण सिंह, रमाकांत आचरेकर और सुनीता शर्मा के बाद द्रोणाचार्य पुरस्कार प्राप्त करने वाले पांचवें भारतीय क्रिकेट कोच थे। दिल्ली के कोच को 2018 में सम्मान से नवाजा गया था। विशेष रूप से, नई दिल्ली में सॉनेट क्रिकेट क्लब में काम करने वाले तारक सिन्हा ने कई पीढ़ियों के क्रिकेटरों के साथ काम किया था।

उनके शुरुआती छात्रों में दिल्ली क्रिकेट के दिग्गज सुरिंदर खन्ना, मनोज प्रभाकर, दिवंगत रमन लांबा, अजय शर्मा, अतुल वासन, संजीव शर्मा शामिल थे। घरेलू क्रिकेट के धुरंधरों में के पी भास्कर उनके शिष्य रहे। नब्बे के दशक के उत्तरार्ध में उन्होंने आकाश चोपड़ा, अंजुम चोपड़ा, रुमेली धर, आशीष नेहरा, शिखर धवन और ऋषभ पंत जैसे क्रिकेटर दिये।

बीसीसीआई ने प्रतिभाओं को तलाशने के उनके हुनर का कभी इस्तेमाल नहीं किया। सिर्फ एक बार उन्हें महिला टीम का कोच बनाया गया, जब झूलन गोस्वामी और मिताली राज जैसे क्रिकेटरों के करियर की शुरुआत ही थी।

ऋषभ पंत, जिन्होंने खुद को विश्व क्रिकेट में प्रमुख बल्लेबाजों में से एक के रूप में स्थापित किया है, सिन्हा को एक पिता के समान मानते थे और जब कोच को प्रतिष्ठित द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, तो वह बहुत खुश थे। भारत और दिल्ली क्रिकेट को बहुत सारे रत्न दिए हैं।

क्लब ने एक बयान में कहा ,‘‘ भारी मन से यह सूचना देनी है कि दो महीने से कैंसर से लड़ रहे सोनेट क्लब के संस्थापक श्री तारक सिन्हा का शनिवार को तड़के तीन बजे निधन हो गया। ’’ अपने छात्रों के बीच ‘उस्ताद जी’ के नाम से मशहूर सिन्हा जमीनी स्तर के क्रिकेट कोच नहीं थे। पांच दशक में उन्होंने कोरी प्रतिभाओं को तलाशा और फिर उनके हुनर को निखारकर क्लब के जरिये खेलने के लिये मंच दिया।

यही वजह है कि उनके नामी गिरामी छात्र (जो अपना नाम जाहिर नहीं करना चाहते) अंतिम समय तक उनकी कुशलक्षेम लेते रहे और जरूरी इंतजाम किये । ऋषभ पंत जैसों को कोचिंग देने वाले उनके सहायक देवेंदर शर्मा भी उनके साथ थे । सिन्हा के लिये सोनेट ही उनका परिवार था और क्रिकेट के लिये उनका समर्पण ऐसा था कि उन्होंने कभी विवाह नहीं किया।

उनकी कोचिंग का एक और पहलू यह था कि वह अपने छात्रों की पढाई को हाशिये पर नहीं रखते थे। स्कूल या कॉलेज के इम्तिहान के दौरान अभ्यास के लिये आने वाले छात्रों को वह तुरंत वापिस भेज देते और परीक्षा पूरी होने तक आने नहीं देते थे। अपनी मां के साथ आने वाले पंत की प्रतिभा को देवेंदर ने पहचाना।

सिन्हा ने उन्हें कुछ सप्ताह इस लड़के पर नजर रखने के लिये कहा था । गुरूद्वारे में रहने की पंत की कहानी क्रिकेट की किवदंती बन चुकी है लेकिन सिन्हा ने दिल्ली के एक स्कूल में पंत की पढाई का इंतजाम किया जहां से उसने दसवीं और बारहवीं बोर्ड की परीक्षा दी।

पंत ने कहा था ,‘‘तारक सर पितातुल्य नहीं हैं। वह मेरे पिता ही हैं।’ सिन्हा व्यवसायी या कारपोरेट क्रिकेट कोच नहीं थे बल्कि वह ऐसे उस्ताद जी थे जो गलती होने पर छात्र को तमाचा रसीद करने से भी नहीं चूकते । उनका सम्मान ऐसा था कि आज भी उनका नाम सुनकर उनके छात्रों की आंख में पानी और होंठों पर मुस्कान आ जाती है।

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