रॉबिन उथप्पा का खुलासा, 'दो साल तक डिप्रेशन से जूझता रहा, हर दिन सोचता था बालकनी से कूद जाऊं'

Robin Uthappa: टीम इंडिया के बल्लेबाज रॉबिन उथप्पा ने खुलासा किया है कि 2009 से 2011 के बीच वह अवसाद से जूझ रहे थे और हर दिन मन में आता था कि सूसाइड कर लूं

By भाषा | Published: June 04, 2020 1:25 PM

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ठळक मुद्देरॉबिन उथप्पा ने कहा कि 2009 से 2011 के बीच हर दिन उनके मन में आते थे आत्महत्या के विचारउथप्पा ने कहा, 'मैं उन दिनों में यही सोचता रहता था कि मैं दौड़कर जाऊं और बालकनी से कूद जाऊं'

नई दिल्ली: भारत की 2007 टी20 विश्व कप विजेता टीम के अहम सदस्य रहे रॉबिन उथप्पा ने बताया कि अपने कैरियर में वह दो साल तक अवसाद और आत्महत्या के ख्यालों से जूझते रहे जब क्रिकेट ही एकमात्र वजह थी जिसने उन्हें ‘बालकनी से कूदने’ से रोका। भारत के लिये 46 वनडे और 13 टी20 अंतरराष्ट्रीय मैच खेल चुके उथप्पा को इस साल आईपीएल में राजस्थान रॉयल्स ने तीन करोड़ रुपये में खरीदा था। कोरोना वायरस महामारी के कारण आईपीएल स्थगित कर दिया गया है।

उथप्पा ने रॉयल राजस्थान फाउंडेशन के लाइव सत्र ‘ माइंड , बॉडी एंड सोल’ में कहा,‘'मुझे याद है 2009 से 2011 के बीच यह लगातार हो रहा था और मुझे रोज इसका सामना करना पड़ता था। मैं उस समय क्रिकेट के बारे में सोच भी नहीं रहा था ।’’

क्रिकेट ने की डिप्रेशन से उबरने में मदद: उथप्पा

उन्होंने कहा ,‘‘ मैं सोचता था कि इस दिन कैसे रहूंगा और अगला दिन कैसा होगा , मेरे जीवन में क्या हो रहा है और मैं किस दिशा में आगे जा रहा हूं । क्रिकेट ने इन बातों को मेरे जेहन से निकाला। मैच से इतर दिनों या आफ सीजन में बड़ी दिक्कत होती थी ।’’

उथप्पा ने कहा ,‘‘मैं उन दिनों में इधर-उधर बैठकर यही सोचता रहता था कि मैं दौड़कर जाऊं और बालकनी से कूद जाऊं। लेकिन किसी चीज ने मुझे रोके रखा।’’ उथप्पा ने कहा कि इस समय उन्होंने डायरी लिखना शुरू किया । उन्होंने कहा ,‘‘ मैने एक इंसान के तौर पर खुद को समझने की प्रक्रिया शुरू की। इसके बाद बाहरी मदद ली ताकि अपने जीवन में बदलाव ला सकूं ।’’

इसके बाद वह दौर था जब ऑस्ट्रेलिया में भारत ए की कप्तानी के बावजूद वह भारतीय टीम में नहीं चुने गए। उन्होंने कहा ,‘‘पता नहीं क्यों, मैं कितनी भी मेहनत कर रहा था लेकिन रन नहीं बन रहे थे। मैं यह मानने को तैयार नहीं था कि मेरे साथ कोई समस्या है। हम कई बार स्वीकार नहीं करना चाहते कि कोई मानसिक परेशानी है।’’

इसके बाद 2014 -15 रणजी सत्र में उथप्पा ने सर्वाधिक रन बनाये। उन्होंने अभी क्रिकेट को अलविदा नहीं कहा है लेकिन उनका कहना है कि अपने जीवन के बुरे दौर का जिस तरह उन्होंने सामना किया, उन्हें कोई खेद नहीं है । उन्होंने कहा,‘‘ मुझे अपने नकारात्मक अनुभवों का कोई मलाल नहीं है क्योंकि इससे मुझे सकारात्मकता महसूस करने में मदद मिली। नकारात्मक चीजों का सामना करके ही आप सकारात्मकता में खुश हो सकते हैं ।’’ 

टॅग्स :रॉबिन उथप्पाभारतीय क्रिकेट टीम

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