कोई दूध बेचकर कर रहा गुजारा, कोई दिहाड़ी मजदूरी को मजबूर, भारत के इन क्रिकेटरों को BCCI अध्यक्ष सौरव गांगुली से मदद की उम्मीद

India’s wheelchair cricketers:: भारतीय व्हीलचेयर क्रिकेट टीम पर कोरोना की वजह से आर्थिक संकट की मार पड़ी है, अब इन क्रिकेटरों को बीसीसीआई अध्यक्ष सौरव गांगुली से हैं उम्मीदें

By भाषा | Published: August 06, 2020 6:11 AM

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ठळक मुद्देभारतीय व्हीलचेयर क्रिकेटर पेट पालने के लिए जूझ रहे हैं क्योंकि वे बीसीसीआई के अधीन नहीं आतेइस टीम के ज्यादातर खिलाड़ी रिरपेयरिंग से लेकर दूध बेचने तक का काम करने को हैं मजबूर

नई दिल्ली: भारतीय टीम की जर्सी पहनने वाले सारे क्रिकेटर किस्मतवाले नहीं होते , खासकर वे जो दिव्यांग हैं और जिन्हें इंतजार है कि भारतीय क्रिकेट बोर्ड उन्हें अपनी छत्रछाया में ले। भारत के विकेटकीपर बल्लेबाज निर्मल सिंह ढिल्लों पंजाब के मोगा में दूध बेचकर गुजारा कर रहे हैं जबकि संतोष रंजागणे कोल्हापुर में दुपहिया वाहनों की मरम्मत करते हैं।

वहीं बल्लेबाज पोशन ध्रुव रायपुर में एक गांव में वेल्डिंग की दुकान पर काम करते थे। कोरोना वायरस महामारी के कारण लगे लॉकडाउन के बाद उन्हें खेतों में दिहाड़ी मजदूरी करके गुजारा करना पड़ रहा है जिसमें उन्हें रोज डेढ़ सौ रुपये मिलते हैं। ये सभी भारत के क्रिकेटर हैं और हाल ही में राष्ट्रीय टीम की सफलता में इनकी अहम भूमिका रही है लेकिन अब ये पेट पालने के लिये जूझ रहे हैं क्योंकि ये बीसीसीआई के अधीन नहीं आते।

भारतीय व्हीलचेयर टीम को सौरव गांगुली के मदद की उम्मीद

लोढ़ा समिति की सिफारिशों के अनुसार बोर्ड को शारीरिक रूप से अक्षम क्रिकेटरों के विकास के लिये एक समिति का गठन करना है जो अभी तक नहीं हुआ है। भारत की व्हीलचेयर टीम के कप्तान सोमजीत सिंह के अनुसार बीसीसीआई अध्यक्ष सौरव गांगुली ने भारतीय व्हीलचेयर क्रिकेट संघ के सीईओ से इस बारे में बात की थी। उन्होंने कहा, ‘‘दिव्यांग क्रिकेटरों को लेकर नीति बनाने के लिये कोई बातचीत नहीं हो रही है। सौरव गांगुली ने मदद का वादा किया है। उन्हें भारत के व्हीलचेयर क्रिकेट के बारे में ज्यादा पता नहीं था और वह हमारे प्रदर्शन के बारे में सुनकर हैरान रह गए।’’

सोमजीत ने पहले उत्तर प्रदेश व्हीलचेयर क्रिकेट संघ और बाद में स्क्वॉड्रन लीडर अभय प्रताप सिंह के साथ मिलकर राष्ट्रीय संघ बनाने में अहम भूमिका निभाई। सिंह वायुसेना के पूर्व फाइटर पायलट हैं जो अब व्हीलचेयर पर हैं। क्रिकेटरों का मानना है कि बीसीसीआई ने जिस तरह महिला क्रिकेट का विकास किया है, उसी तरह उनकी भी मदद की जाये। बीसीसीआई से मान्यता नहीं मिलने से राज्य स्तर पर कई संघ पैदा हो गए। इससे व्हीलचेयर क्रिकेटरों को खेल में बने रहने के लिये अपनी जेब से पैसा खर्च करना पड़ा है।

कोरोना की वजह से प्रभावित हैं व्हीलचेयर टीम के क्रिकेटर

संतोष ने कहा ,‘‘जब हम नेपाल गए तो हमें उस दौरे के लिये 15000 रुपये देने को कहा गया था। इससे मेरा दिल टूट गया। इसके बाद मैं इस संघ से जुड़ा और तब से वे हमारा ध्यान रख रहे हैं ’’ उन्हें राज्य सरकार से एक हजार रुपये पेंशन मिलती है। उनके पिता और भाई उन्हें राशन देते हैं। बांग्लादेश और नेपाल के खिलाफ खेल चुके निर्मल सिंह ने कहा, ‘‘मुझे फेसबुक से व्हीलचेयर क्रिकेट के बारे में पता चला। मैने ट्रायल दिये, फिर पंजाब और भारतीय टीम के लिये चुना गया। इस खेल से हमें गरिमामय जीवन की उम्मीद बंधी है।’’

भैंसों का दूध बेचकर 4000 रुपये महीना कमाने वाले निर्मल कभी-कभी फर्नीचर पॉलिश करने का काम भी करते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘मैं क्या करूं। अपनी मां की देखभाल करनी है। मेरा छोटा भाई मजदूरी के लिये बहरीन गया था लेकिन अब उसके पास भी काम नहीं है। कोरोना महामारी ने हमारा जीवन दूभर कर दिया है।’’

एक बीसीसीआई अधिकारी ने कहा, ‘‘अभी बोर्ड में कोई उप समिति नहीं है  दिव्यांग क्रिकेट बीसीसीआई में एक उपसमिति होगी लेकिन उसमें समय लगेगा। बीसीसीआई संवैधानिक सुधार के लिये उच्चतम न्यायालय में अपील कर चुका है । पहले तस्वीर स्पष्ट हो जाये ।’’ भाषा मोना नमिता नमिता

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