'अपनों से दूर कर रहा कोरोना, मौत के बाद पड़ोसी तो छोड़िए रिश्तेदार व परिवार के लोग भी छोड दे रहे हैं साथ'

कोरोना संक्रमण के बीच स्थिती यह हो गई है कि लोगों के आंसू पोछने वाले भी नहीं हैं। अंतिम संस्कार के बाद परिवार जो मरने वाले व्यक्ति के साथ रहता है वे अपना धार्मिक रूप से नियमों का पालन नहीं कर पा रहा है।

By एस पी सिन्हा | Published: April 25, 2021 7:29 PM

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ठळक मुद्देमुस्लिम समाज के कुछ लोगों ने हिंदू महिला की अर्थी को कंधा दिया। इतना ही नहीं इन लोगों ने उनका अंतिम संस्कार भी करवाया। लोगों का कहना है कि ये हिंदु- मुस्लिम की एकता की मिसाल है।

कोरोना महामारी के दौरान मौत होने के बाद पड़ोसी तो छोडिए रिश्तेदार व परिवार के लोग भी साथ नहीं दे पा रहे हैं। स्थिति ऐसी हो गई है कि दाह संस्कार में अपने भी अब साथ छोडने लगे हैं। इस संक्रमण से जान गंवाने वालों के परिजनों को कोई साथ देने नही आ रहा है। यहां तक की अंतिम दर्शन या फिर अंतिम संस्कार के दौरान भी कई परिवार वाले शामिल नहीं हो पा रहे हैं। हालात ऐसे भयावह हो गये हैं कि मरने वाले परिजनों को संभालने के लिए लोग अपना हाथ नहीं बढ़ पा रहे हैं। 

कोरोना संक्रमण के कारण परिजनों को अपनों को खोने के साथ-साथ नियमों का पालन न होने के दर्द सता रहा है। राज्य के गया जिले में एक ऐसी खबर सामने आई है कि जब अपनों ने साथ छोड किया तो मुस्लिम समुदाय के युवकों ने समाज के लिए एक मिसाल पेश करते हुए एक हिंदू महिला का अंतिम संस्कार किया। इस घटना का वीडियो भी सामने आया है, जिसमें मुस्लिम युवक 'राम नाम सत्य है' बोलकर कंधे पर अर्थी को ले जाते दिख रहे हैं। मामला गया जिले के इमामगंज का है, जहां रानीगंज के तेतरिया गांव में मुस्लिम समाज के कुछ लोगों ने हिंदू महिला की अर्थी को कंधा दिया और उनका अंतिम संस्कार भी करवाया। लोगों का कहना है कि ये हिंदु- मुस्लिम की एकता की मिसाल है।

दरअसल, इमामगंज के तेतरिया के दिग्विजय प्रसाद की 58 वर्षीया पत्नी पार्वती देवी की मौत लंबी बीमारी के कारण घर पर ही हो गई। मौत की खबर गांव में फैलते ही सन्नाटा पसर गया। ग्रामीणों ने अपने घरों के दरवाजे बंद कर लिये। कोई उसकी अर्थी को कंधा देने को तैयार नहीं था। लेकिन रानीगंज के मुस्लिम युवाओं को जब इसकी जानकारी मिली, तब उन लोगों ने तय किया कि वे उस महिला की अर्थी को कंधा भी देंगे और अंतिम संस्कार भी करेंगे। 

इन युवाओं ने हिंदू रीति-रिवाज से अर्थी तैयार की और श्मशान तक ले गये। वहां चिता सजाई और दाह संस्कार कर सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल पेश की। अंतिम संस्कार में शामिल मो। सगीर आलम और मो। रफीक मिस्त्री ने कहा कि रमजान में यह पवित्र कार्य करने का अवसर मिला। मन को बडा सुकून मिला। वहीं, मो। शरीक ने बताया कि समाज के पिछले कुछ समय से समाज में हिंदू-मुस्लिम के बीच बैर वाले सियासी बयान सामने आये हैं। लेकिन इन तस्वीरों से साफ है कि भारतीय संस्कृति में गंगा-जमुना की तहजीब अभी भी शामिल है। हिंदू व्यक्ति की अर्थी को कंधा देने को मुस्लिम समाज के लोग इसे अपना फर्ज भी बता रहे हैं। उनका कहना है वह भारतवासी हैं और किसी से भेदभाव नहीं मानते हैं।

वहीं, दूसरी घटना दरभंगा जिले के नगर थाना क्षेत्र के गंगासागर मुहल्ले से सामने आई है। जहां शनिवार को 45 साल के कोरोना पॉजिटिव मरीज की मौत हो गई थी। मौत के 20 घंटे बाद भी उसका शव घर के अंदर ही पडा रहा। लेकिन न तो पडोसी और ना ही सगे संबंधी उसके अंतिम संस्कार को संपन्न कराना उचित समझा। लेकिन कबीर सेवा संस्थान के सदस्यों ने इस शव का अंतिम संस्कार किया। 

कहा जा रहा है कि पडोसियों को जब मृतक के बारे में पता चला तो उन्होंने दरवाजे बंद कर लिए। अंत में जब इसकी सूचना समाजसेवी नविन सिन्हा तक पहुंची तो उन्होंने परिवार को मदद पहुंचाने की कोशिश शुरू की। घर में मृतक की पत्नी और तीन बच्चे थे। पत्नी और बेटियां रोती-बिलखती हुईं, लगातार लोगों और जिला प्रशासन से शव उठाने की गुहार लगाती रहीं। लेकिन कोई उनकी मदद के लिए आगे नहीं आया। 

बताया जाता है कि मृतक का शव शुक्रवार की रात और शनिवार को दिन भर घर में ही पडा रहा। इसके बाद कबीर सेवा संस्थान के सदस्य और समाजसेवी नवीन सिन्हा ने उनकी मदद की कोशिश शुरू की। आखिरकार डीएम डॉ। त्यागराजन एसएम और नगर आयुक्त मनेश कुमार मीणा के आदेश पर एक स्वास्थ्यकर्मी मृतक के घर पहुंचा और उसने शव को सैनिटाइज किया। 

इसके बाद समाजसेवी नवीन सिन्हा ने एक अन्य के साथ मिलकर मृतक के शव को दो मंजिला मकान से उतारकर एंबुलेंस में रखा। इस दौरान आस-पडोस के लोगों के घरों के दरवाजे बंद रहे। कोई भी मदद के लिए नहीं आया। फिर नवीन सिन्हा ने ही शव का अंतिम संस्कार किया। 

हालात यह है कि पहले यह बीमारी मरने से ठीक पहले आपको अपने सभी प्रियजनों से अलग-थलग कर देती है। फिर यह किसी को आपके पास आने नहीं देती। किसी भी परिवार के लिए ये बेहद मुश्किल समय होता है और उनके लिए यह स्वीकार करना काफी दुखदाई होता है। परिवार के लोग न तो उसका अंतिम संस्कार पूरे विधि-विधान से कर पा रहे हैं और न ही श्राद्धकर्म। कई घटनायें तो ऐसी हुई हैं जब मौत की खबर मिलने पर बेटा बाप का और बाप बेटे का शव छोडकर भाग गया। थक हार कर प्रशासन को अंतिम संस्कार करना पडा है।

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