रिलायंस जियो और SES को भारतीय अंतरिक्ष रेगुलेटर की अनुमति, अब मिलेगी अंतरिक्ष में हाई-स्पीड इंटरनेट सेवा
By आकाश चौरसिया | Updated: June 13, 2024 16:23 IST2024-06-13T16:13:48+5:302024-06-13T16:23:15+5:30
जियो (रिलायंस इंडस्ट्रीज) ने लक्जमबर्ग की एक कंपनी SES के साथ मिलकर भारत में गीगाबिट स्पीड का फाइबर इंटरनेट देने की योजना बनाई है। इसके लिए उन्हें भारत के स्पेस रेगुलेटर से स्पेस सेटेलाइट चलाने की इजाजत मिल गई है।

फाइल फोटो
नई दिल्ली: रिलायंस इंडस्ट्रीज के जियो प्लेटफॉर्म और लक्समबर्ग एसईएस की साझेदारी में चल रही योजना को भारतीय स्पेस रेगुलेटर ने ग्रीन सिग्नल दे दिया है। अब होगा ये कि अंतरिक्ष में भी हाई-स्पीड इंटरनेट को ये कंपनियां ऑपरेट कर पाएंगी। इस बात की जानकारी रॉयटर्स न्यूज एजेंसी ने दी है।
जियो (रिलायंस इंडस्ट्रीज) ने लक्जमबर्ग की एक कंपनी SES के साथ मिलकर भारत में गीगाबिट स्पीड का फाइबर इंटरनेट देने की योजना बनाई है। इसके लिए उन्हें भारत के स्पेस रेगुलेटर से स्पेस सेटेलाइट चलाने की इजाजत मिल गई है। यह जानकारी सूत्रों के हवाले से आई है।
तीन अनुमतियां Orbit Connect India को मिली हैं। इस कंपनी का भी लक्ष्य स्पेस के जरिए हाई-स्पीड इंटरनेट पहुंचाना है। भारत दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाले देशों में से है, और यहां पर कई विदेशी कंपनियां अमेजन से लेकर एलॉन मस्क की Starlink तक स्पेस इंटरनेट सेवा शुरू करने की कोशिश में है।
पहले भी मिली थी अनुमति
इन अनुमतियों को पहले रिपोर्ट नहीं किया गया था। उन्हें भारतीय राष्ट्रीय स्पेस प्रोत्साहन और प्राधिकरण केंद्र (IN-SPACe) से अप्रैल और जून में मंजूरी दी गई थी। इससे Orbit Connect को भारत के ऊपर सेटेलाइट चलाने की अनुमति मिल जाती है, लेकिन अभी सेवा शुरू करने के लिए भारत के दूरसंचार विभाग से भी अनुमति लेनी होगी।
Inmarsat (एक अन्य कंपनी जो हाई-स्पीड सैटेलाइट इंटरनेट सेवा देने की इच्छुक है) को भी भारत के ऊपर सेटेलाइट चलाने की अनुमति मिल गई है, जैसा कि IN-SPACe के अध्यक्ष पवन गोयनका ने रॉयटर्स को बताया। एलॉन मस्क की स्टारलिंक और अमेज़न की क्विपर जैसी दो अन्य कंपनियों ने भी आवेदन किया है।
भारती एंटरप्राइजेज समर्थित यूटेल्सैट की OneWeb को पिछले साल के अंत में ही सभी अनुमतियां मिल गई थीं। एक कंसल्टेंसी कंपनी Deloitte के अनुसार, भारत के सैटेलाइट ब्रॉडबैंड सेवा बाजार में अगले पांच सालों में 36 प्रतिशत प्रति वर्ष की वृद्धि होने की उम्मीद है और 2030 तक यह 1.9 बिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगा।