Per capita income 2023-24: दिल्ली की प्रति व्यक्ति आय बढ़कर 444768 रुपये, देखें अन्य राज्य का हाल
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: January 6, 2024 04:11 PM2024-01-06T16:11:16+5:302024-01-06T16:12:18+5:30
Per capita income 2023-24: योजना विभाग की मंत्री आतिशी ने पुस्तिका के विमोचन पर कहा कि विभिन्न बाधाओं के बावजूद केजरीवाल सरकार ने 2023 में सार्वजनिक सेवा क्षेत्र में नए मानक स्थापित किए हैं।
Per capita income 2023-24: दिल्ली सरकार ने शनिवार को कहा कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की प्रति व्यक्ति आय चालू वित्त वर्ष में लगभग 14 प्रतिशत बढ़कर 4,44,768 रुपये प्रति वर्ष हो गई है जो राष्ट्रीय औसत से 158 प्रतिशत अधिक है। केजरीवाल सरकार ने ‘सांख्यिकी हैंडबुक-2023’ जारी करते हुए यह जानकारी दी।
दिल्ली सरकार के आर्थिक और सांख्यिकी विभाग ने राष्ट्रीय राजधानी के सामाजिक-आर्थिक मापदंडों के आंकड़ों वाली यह पुस्तिका जारी की है। इसके मुताबिक, चालू वित्त वर्ष में दिल्ली की प्रति व्यक्ति आय बढ़कर 4,44,768 रुपये हो गई जबकि एक साल पहले यह 3,89,529 रुपये थी। इस तरह इसमें सालाना आधार पर 14 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई है।
लेकिन राष्ट्रीय औसत की तुलना में यह 158 प्रतिशत अधिक है। योजना विभाग की मंत्री आतिशी ने पुस्तिका के विमोचन पर कहा कि विभिन्न बाधाओं के बावजूद केजरीवाल सरकार ने 2023 में सार्वजनिक सेवा क्षेत्र में नए मानक स्थापित किए हैं।
उन्होंने कहा कि केजरीवाल सरकार ने राजधानी में सार्वजनिक परिवहन सेवाओं में उल्लेखनीय सुधार किया और बीते वर्ष प्रतिदिन औसतन 41 लाख यात्रियों ने बसों से यात्रा की। आतिशी ने कहा कि दिल्ली देश में इलेक्ट्रिक वाहन क्रांति की अगुवाई कर रही है।
शहर की सड़कों पर फिलहाल 7,200 बसें चल रही हैं जिनमें 1,300 इलेक्ट्रिक बसें हैं। दिल्ली सरकार ने नए सांख्यिकीय आंकड़ों के हवाले से कहा कि वित्त वर्ष 2021-22 की तुलना में वित्त वर्ष 2022-23 में दिल्ली में बिजली उपभोक्ताओं की संख्या लगभग 2.8 लाख बढ़ गई और एक लाख से अधिक पानी के कनेक्शन जोड़े गए।
केजरीवाल सरकार की मुफ्त बिजली योजना के तहत 2022-23 में शून्य राशि के 3.41 करोड़ से अधिक बिजली बिल बने। मुफ्त बिजली योजना में 200 यूनिट तक मासिक बिजली उपयोग मुफ्त है। सरकारी बयान के अनुसार, देश में न्यूनतम मजदूरी का सर्वाधिक स्तर दिल्ली में है। यहां अकुशल श्रमिकों के लिए 17,494 रुपये, अर्द्ध-कुशल श्रमिकों के लिए 19,279 रुपये और कुशल श्रमिकों के लिए 21,215 रुपये की न्यूनतम मजदूरी मिलती है। सरकार इसमें हर छह महीने पर संशोधन करती है।
गुजरात ने वृद्धि के राष्ट्रीय औसत को पीछे छोड़ा, विकास इंजन के रूप में उभरा: राज्य सरकार
गुजरात सरकार ने कहा है कि वित्त वर्ष 2002-03 से 2022-23 तक गुजरात ने 15 प्रतिशत की संचयी वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) के साथ राष्ट्रीय औसत को पीछे छोड़ते हुए देश में सबसे तेजी से वृद्धि करने वाले राज्यों में से एक होने का अपना स्थान बरकरार रखा है।
राज्य सरकार ने सरकारी आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा है कि मजबूत आर्थिक बुनियाद के साथ गुजरात लंबे समय से 'भारत के विकास इंजन' के रूप में अपनी पहचान बनाए हुए है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, गुजरात 22.61 लाख करोड़ रुपये के साथ भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में लगभग आठ प्रतिशत का योगदान देता है।
राज्य सरकार को अगले हफ्ते होने वाले 'वाइब्रेंट गुजरात वैश्विक शिखर सम्मेलन' (वीजीजीएस) के नवीनतम संस्करण से राज्य में विकास की रफ्तार में और तेजी आने की उम्मीद है। इस निवेशक सम्मेलन से गुजरात और भारत की अर्थव्यवस्था के बुनियादी सिद्धांतों को और मजबूती मिलने की उम्मीद है।
इस द्विवार्षिक निवेशक सम्मेलन का 10वां संस्करण 10 से 12 जनवरी के बीच गांधीनगर में आयोजित होने वाला है। इस निवेशक सम्मेलन के आयोजन की शुरुआत गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री एवं देश के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में हुई थी।
प्रधानमंत्री मोदी ने हाल ही में कहा था, "जब हमने वाइब्रेंट गुजरात शिखर सम्मेलन शुरू किया था तो हमारा इरादा गुजरात को देश की प्रगति का विकास इंजन बनाना था। भारत के क्षेत्रफल का सिर्फ छह प्रतिशत और पांच प्रतिशत जनसंख्या वाले गुजरात ने औद्योगिक रूप से सर्वाधिक विकसित राज्यों में से एक होने का गौरव हासिल किया है।"
गुजरात के अर्थशास्त्री हेमंत शाह ने कहा, "राज्य की जीडीपी वृद्धि दर भारत की जीडीपी वृद्धि दर से अधिक थी। हालांकि पिछले कुछ वर्षों में अन्य राज्यों की जीडीपी वृद्धि दर बढ़ी, लेकिन हमारी आर्थिक वृद्धि दर अन्य राज्यों की तुलना में अधिक रही। इसी वजह से कारोबारी घराने निवेश के लिए गुजरात का रुख करते हैं।"
वित्त वर्ष 2021-22 के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, विनिर्माण क्षेत्र की गुजरात के जीएसडीपी (सकल राज्य घरेलू उत्पाद) में लगभग 36.7 प्रतिशत हिस्सेदारी है। गुजरात चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (जीसीसीआई) की कार्यकारी समिति के सदस्य सचिन के पटेल ने कहा कि राज्य सरकार की व्यापार-अनुकूल नीतियों ने सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्र को बढ़ावा देने का काम किया है।
गुजरात सरकार की एक विज्ञप्ति के मुताबिक, इस आर्थिक वृद्धि का रोजगार और श्रमिकों के जीवन स्तर पर बदलावकारी प्रभाव पड़ा है। निश्चित अवधि पर होने वाले श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020-21 में गुजरात में श्रम बल भागीदारी दर 44.3 प्रतिशत, श्रमिक जनसंख्या अनुपात (डब्ल्यूपीआर) 43.3 प्रतिशत और बेरोजगारी दर प्रमुख औद्योगिक राज्यों में सबसे कम 2.2 प्रतिशत थी। गुजरात की अर्थव्यवस्था के विस्तार ने राज्य को सामाजिक क्षेत्र, विशेषकर शिक्षा एवं स्वास्थ्य क्षेत्र में पर्याप्त प्रगति करने में भी मदद की है।
गुजरात में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी) की संख्या 2001-02 से 2021-22 तक क्रमशः 41 प्रतिशत और 37 प्रतिशत बढ़ी है। सरकारी विज्ञप्ति के मुताबिक, नवंबर, 2022 के अंत में गुजरात में कुल 319 सीएचसी, 1463 पीएचसी और 6575 स्वास्थ्य उप-केंद्र संचालित हो रहे थे।
इसी तरह गुजरात में 30 से अधिक मेडिकल कॉलेज हैं जबकि 2001 में इनकी संख्या सिर्फ नौ थी। पिछले दो दशकों में गुजरात ने शिक्षा के क्षेत्र में भी काफी प्रगति की है। प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाई छोड़ने वाले बच्चों की दर 1999-00 में 22.30 प्रतिशत थी लेकिन वह 2020-21 में घटकर सिर्फ 1.32 प्रतिशत रह गई। भारत का पहला विद्या समीक्षा केंद्र (वीएसके) 2019 में स्थापित किया गया था।
वीएसके का उद्देश्य सीखने के परिणामों में एक बड़ी छलांग लाने के लिए डेटा और प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना था। अप्रैल, 2022 में गांधीनगर में इस केंद्र के दौरे पर आए प्रधानमंत्री मोदी ने अन्य राज्यों से शिक्षा के समग्र विकास के लिए गुजरात के वीएसके मॉडल का अध्ययन करने और उसे दोहराने को कहा था। विश्व बैंक भी वीएसके मॉडल की सराहना कर चुका है।