असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले मोदक जैसे लोगों को है समय बदलने का इंतजार

By भाषा | Updated: November 3, 2021 12:47 IST2021-11-03T12:47:24+5:302021-11-03T12:47:24+5:30

People like Modak working in the unorganized sector are waiting for the time to change | असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले मोदक जैसे लोगों को है समय बदलने का इंतजार

असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले मोदक जैसे लोगों को है समय बदलने का इंतजार

(जयंत रॉय चौधरी)

कोलकाता, तीन नवंबर शहर के रास बिहारी एवेन्यू पर एक चाय की दुकान के सामने 38 वर्षीय दुलाल मोदक परेशान होकर अपनी छोटे केकड़ों (स्मॉल क्रैब्स) से भरी टोकरियां रख देता है। सुबह साढ़े छह बजे से वह इन टोकरियों को उठाकर घूम रहा है।

उसके लिए यह एक और मुश्किल दिन रहा। दिनभर धूप में सड़कों पर घूमने के बाद अब उसका गला सूख चुका है। पूरे दिन वह खरीदारों की तलाश में भटकता रहा। मोदक कोलकाता से लगभग 37 किलोमीटर दूर बारासात के पास काजीपारा से महानगर की सड़कों पर अपना 'लाइफ फूड’ बेचने के लिए हर दिन ट्रेन से आता-जाता है।

यह स्थिति सिर्फ मोदक की नहीं है। असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले तमाम लोगों की ऐसी ही स्थिति है।

कोविड-19 की दूसरी लहर के बाद लगाए गए लॉकडाउन के दौरान मोदक ने नौकरी गंवा दी थी। वह शहर के बाहरी इलाके में एक इंजीनियरिंग वर्कशॉप में काम करता था और हर महीने 14,000 रुपये कमाता था।

भारतीय प्रबंधन संस्थान, कलकत्ता द्वारा 2016 में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार मोदक जैसे छोटे व्यापारी जो राष्ट्रीय आय सांख्यिकी रडार से नीचे हैं, शहर में असंगठित क्षेत्र में उनका हिस्सा 40 प्रतिशत है।

शोधकर्ताओं के लिए चिंता की बात यह है कि इस क्षेत्र में कार्यरत लोगों, जिसका कुछ अनुमानों के अनुसार भारत के रोजगार में लगभग 4/5 हिस्सा है, उनकी नौकरियां जा रही हैं या आमदनी घट रही है।

राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के पूर्व चेयरमैन और प्रसिद्ध अर्थशास्त्री डॉ. प्रणब सेन का कहना है कि पांच साल पहले हुई नोटबंदी और दो साल में कोविड-19 महामारी की वजह से दो बार लगाया गया लॉकडाउन अनौपचारिक या असंगठित क्षेत्र के लिए काफी बुरा रहा है। इन कारणों से उनकी कारोबार करने की क्षमता प्रभावित हुई है। इससे रोजगार, नौकरियों की गुणवत्ता तथा आमदनी में भारी गिरावट आई है।

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की पिछले साल प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, देश के असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे 40 प्रतिशत कामगार महामारी की वजह से और गरीबी में जा रहे हैं। उनका रोजगार समाप्त हो रहा है और आमदनी घट रही है।

वर्कशॉप में फिटर के रूप में काम करने वाला मोदक पहले मासिक 14,000 रुपये कमाता था। अब उसकी आमदनी घटकर 8,000 से 9,000 रुपये रह गई। मोदक ने कहा, ‘‘भारी बारिश हो जाए तो कुछ नहीं बिकता, ट्रेन सेवाओं पर रोक का मतलब होता है कि आज कोई कमाई नहीं होगी। यही जीवन है।

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Web Title: People like Modak working in the unorganized sector are waiting for the time to change

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