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सतत आर्थिक वृद्धि के लिये शिक्षा, स्वास्थ्य, बुनियादी ढांचा क्षेत्र में अधिक निवेश की जरूरत: दास

By भाषा | Updated: September 22, 2021 20:58 IST

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नयी दिल्ली, 22 सितंबर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने बुधवार को कहा कि सतत आर्थिक वृद्धि और छोटे शहरों में रोजगार सृजित करने के लिये बुनियादी ढांचा क्षेत्र में निवेश के साथ शिक्षा तथा डिजिटल अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने की जरूरत है।

दास ने कहा, ‘‘ऐसे समय जब हम महामारी से उबर रहे हैं, हमें मौजूदा संकट से निपटना होगा और मजबूत, समावेशी तथा सतत वृद्धि के लिये बेहतर परिवेश बनाना होगा संकट ने जो नुकसान पहुँचाया है, उसे सीमित करना केवल पहला कदम था। महामारी के बाद के समय में हमारा प्रयास टिकाऊ और सतत वृद्धि सुनिश्चित करना होना चाहिए।’’

आरबीआई गवर्नर ने वीडियो कांफ्रेन्स के जरिये 48वें एआईएमए राष्ट्रीय प्रबंधन सम्मेलन को संबोधित करते हुए यह बात कही। उन्होंने कहा कि सतत वृद्धि मध्यम अवधि के निवेश, मजबूत वित्तीय प्रणाली और संरचनात्मक सुधारों के जरिये वृहत आर्थिक बुनियाद को मजबूत किया जाना चाहिए।

दास ने कहा,‘‘इस लक्ष्य को हासिल करने के लिये स्वास्थ्य सुविधाओं, शिक्षा, नवप्रर्वतन, भौतिक और डिजिटल बुनियादी ढांचा की जरूरत होगी। हमें प्रतिस्पर्धा और गतिशीलता को प्रोत्साहित करने तथा महामारी से उत्पन्न अवसरों का लाभ उठाने के लिये श्रम तथा उत्पाद बाजारों में भी सुधारों को जारी रखना चाहिए।’’

उन्होंने कहा कि इसके अलावा कृषि और बागवानी क्षेत्र में मूल्य वर्धन और उत्पादकता बढ़ाने को लेकर गोदाम तथा आपूर्ति व्यवस्था से जुड़ा बुनियादी ढांचा भी महत्वपूर्ण है। इससे छोटे शहरों तथा ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजित होंगे तथा समावेशी वृद्धि को बढ़वा मिलेगा।

दास ने कहा कि विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये सरकार द्वारा हाल में कुछ क्षेत्रों के लिये घोषित उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना महत्वपूर्ण पहल है। इस पहल से प्राप्त लाभ टिकाऊ होने की उम्मीद है।

उन्होंने कहा कि कोविड-19 महामारी ने उभरते और विकासशील देशों में सबसे ज्यादा गरीब और वंचित तबकों को प्रभावित किया है। दास ने कहा, ‘‘हमारा प्रयास महामारी बाद के समय में रहने योग्य और टिकाऊ वृद्धि सुनिश्चित करने का होना चाहिए। आने वाले समय में निजी खपत को टिकाऊ रूप से पटरी पर लाना महत्वपूर्ण होगा। यह ऐतिहासिक रूप से समग्र मांग का मुख्य आधार रहा है।’’

आरबीआई गवर्नर के अनुसार महामारी के बाद की दुनिया में समावेशी वृद्धि के लिये सभी पक्षों के सहयोग और भागीदारी की जरूरत है। विभिन्न पक्षों की भागीदारी के प्रयास से ही तेजी से टीकाकरण के कठिन कार्य को पूरा करने में मदद मिल रही है।

उन्होंने कहा कि महामारी के बाद की दुनिया में समावेश के रास्ते में सबसे बड़ी चुनौती स्वचालन से आएगी। स्वचालन बढ़ने से कुल मिलाकर उत्पादकता बढ़ेगी लेकिन इससे श्रम बाजार पर कुछ प्रतिकूल असर पड़ सकता है। ऐसे परिदृश्य में कार्यबल के कौशल/प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है।

दास ने यह भी कहा कि महामारी के बाद डिजिटलीकरण में तेजी आई है लेकिन डिजिटल अंतर उभरने से बचने की जरूरत है।

आरबीआई गवर्नर ने सतत वृद्धि के लिये हरित भविष्य को ध्यान में रखकर आगे बढ़ने को भी महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने कहा, ‘‘स्वच्छ और दक्ष ऊर्जा प्रणाली, आपदा के नजरिये से मजबूत बुनियादी ढांचा और सतत पर्यावरण की आवश्यकता पर अधिक जोर नहीं दिया जा सकता है। जलवायु परिवर्तन से जुड़ी नीतियों को अपनाते समय देश की विशेषताओं और उनके विकास के चरण को ध्यान में रखते हुए, अलग-अलग देश की रूपरेखा पर उचित विचार किया जाना चाहिए।’’

उन्होंने भारत की प्रतिस्पर्धी क्षमता का जिक्र करते हुए कहा कि देश में यूनिकार्न (एक अरब डॉलर से अधिक मूल्यांकन वाले स्टार्टअप) की संख्या बढ़ रही है। यह प्रौद्योगिकी आधारित संभावनाओं को बताता है।

दास ने कहा कि ई-वाणिज्य एक और महत्वपूर्ण क्षेत्र है, जो बढ़ते बाजार, इंटरनेट और स्मार्टफोन की पहुंच बढ़ने तथा कोविड महामारी के कारण उपभोक्ताओं के पंसद में बदलाव से लाभान्वित हुआ है।

उन्होंने कहा कि डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया, स्टार्ट-अप इंडिया, स्किल इंडिया और नवोन्मेष कोष जैसे सरकार की विभिन्न पहल से डिजिटल क्षेत्र में तेजी से विकास के लिए एक अनुकूल परिवेश बना है।

दास ने कहा कि मजबूत अर्थव्यवस्था के लिये गतिशील और ठोस वित्तीय प्रणाली की जरूरत होती है। भारत की अर्थव्यवस्था की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिये वित्तीय प्रणाली में तेजी से बदलाव आया है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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