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ऋण योजनाओं को बंद करने के लिए अधिकांश शेयरधारकों की सहमति जरूरी: न्यायालय

By भाषा | Updated: July 14, 2021 16:51 IST

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नयी दिल्ली, 14 जुलाई उच्चतम न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में बुधवार को कहा कि ऋण योजनाओं को बंद करने से पहले अधिकांश शेयरधारकों की सहमति जरूरी है और यदि न्यासी नियमों का उल्लंघन करते हैं तो बाजार नियामक सेबी के पास हस्तक्षेप करने की ताकत होगी।

शीर्ष अदालत का फैसला फ्रैंकलिन टेम्पलटन द्वारा दायर अपील सहित इस संबंध में दायर अन्य याचिकाओं पर आया। फ्रैंकलिन टेम्पलटन ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें कंपनी को अपनी छह म्यूचुअल फंड (एमएफ) योजनाओं को अपने निवेशकों की सहमति हासिल किए बिना बंद करने से रोक दिया गया था।

न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने इस मुद्दे पर नियमों और विनियमों की व्याख्या के आधार पर फैसला दिया, न कि फ्रैंकलिन टेम्पलटन की छह म्यूचुअल फंड योजनाओं के समापन से संबंधित मामले के तथ्यों के संबंध में।

पीठ ने कहा, ‘‘हमने वैधानिक प्रावधानों की व्याख्या की है। हम ऋण योजनाओं को बंद करने के लिए अधिकांश शेयरधारकों की सहमति पर उच्च न्यायालय द्वारा व्यक्त विचारों से सहमत हैं।’’

नियमों की वैधता को बरकरार रखते हुए न्यायमूर्ति खन्ना ने पीठ द्वारा लिए गए फैसले को सुनाते हुए कहा कि यदि न्यासी इसका उल्लंघन करते हैं, तो भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) मामले में दखल दे सकता है।

पीठ ने कहा, ‘‘हमने तथ्यों की पड़ताल बिल्कुल भी नहीं की है। उन्हें खुला छोड़ दिया जाएगा।’’ साथ ही न्यायालय ने कहा कि फर्म और अन्य की याचिका पर निर्णय के लिए अक्टूबर में सुनवाई की जाएगी।

पीठ ने कहा, ‘‘यह मूल रूप से एक सैद्धांतिक व्याख्या है। हमने बहुत सी चीजों को नहीं छुआ है।’’

शीर्ष अदालत ने 12 फरवरी को म्यूचुअल फंड योजनाओं को बंद करने के लिए ई-वोटिंग प्रक्रिया की वैधता को बरकरार रखा था और कहा था कि यूनिटधारकों को धन का वितरण जारी रहेगा।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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