हंसाने और डराने के साथ देश के कई गंभीर मुद्दों पर व्यंग्य करती फिल्म 'स्त्री' को इन वजहों से देखनी चाहिए
By भारती द्विवेदी | Published: September 1, 2018 01:42 PM2018-09-01T13:42:04+5:302018-09-01T14:19:02+5:30
फिल्म के किरदार आपको व्हॉट्सएप्प यूनिवर्सिटी के जोक या कपिल शर्मा के शो वाले जोक से नहीं हंसाते। बल्कि असल में किसी सिचुएशन में फंसने के बाद जो हम ऊंटपटांग हरकतें करते हैं, उसी के सहाराे दर्शकों एंटरटेन करने की कोशिश की गई है।
इस शुक्रवार अमर कौशिक की हॉरर-कॉमेडी फिल्म 'स्त्री' रिलीज हुई है। क्या कमाल की फिल्म है। लंबे समय बाद ऑडियंस को एक अच्छी फिल्म देखने को मिलेगी। हॉरर-कॉमेडी के नाम पर जैसे बॉलीवुड में छलावा होता है। इस बार डायेरक्टर ने आपको ठगा नहीं है, बल्कि जो कहा है वो दिया भी है। इस फिल्म में आप हंसते भी है, डरते भी है और साथ में कई गंभीर सीख में लेते हैं। देश में चल रही कई गंभीर समस्याओं को कॉमेडी में इतने बेहतरीन तरीके से पेश किया गया है कि आप सोचने पर मजबूर हो जाते हैं। तो मैं आपको बता रही हूं कि क्योंं ये फिल्म देखी जानी चाहिएः
एक्टिंग
राजकुमार राव, पंकज त्रिपाठी ये दोनों ऐसे नाम बन चुके हैं, जिनका जिक्र करते ही आपके दिमाग एक्टिंग शब्द आता है। ये दोनों हीरो नहीं बल्कि एक्टर है। इन दोनों के साथ साइड रोल में आपको दिखेंगे अपराशक्ति खुराना और अभिषेक बनर्जी। राजकुमार राव जिन्होंने 'शाहिद', 'न्यूटन, सिटी लाइट्स', 'ओमर्टा' जैसी फिल्में की हैं। लेकिन पिछले साल रिलीज हुई 'बरेली की बर्फी' में राजकुमार राव ने बेहतरीन कॉमेडी की थी। फिल्म 'स्त्री' के साथ राजकुमार राव अपने कॉमिक टाइमिंग को एक कदम और आगे ले गए हैं और कमाल की एक्टिंग की है।
वहीं साइड रोल में पंकज त्रिपाठी, अपराशक्ति खुराना और अभिषेक बनर्जी ने भी बेहद उम्दा काम किया है। इन तीनों की तिकड़ी जब स्क्रीन पर साथ दिखती है, पहले आप डरते हैं और फिर हंसते हैं। मेरी आपकी या हम सबकी जिंदगी में दोस्त जैसे होते हैं, बिट्टू के रोल में अपारशक्ति खुराना और जाना के रोल में अभिषेक बनर्जी बिल्कुल वैसे ही है। मतलब जरूरत पड़ने पर जान दे दें और गलत करने पर थप्पड़ लगा होश में ले आएं।
हालात से निकली कॉमेडी
'स्त्री' एक हॉरर कॉमेडी फिल्म है। इस फिल्म में आपको हॉरर और कॉमेडी दोनों ही भरपूर मिलेगा। बॉलीवुड में अब तक जैसे हॉरर फिल्म के नाम पर आपको ठगा गया है, ये फिल्म वैसी बिल्कुल भी नहीं है। फिल्म के किरदार आपको व्हॉट्सएप्प यूनिवर्सिटी के जोक या कपिल शर्मा के शो वाले जोक से नहीं हंसाते। बल्कि असल में किसी सिचुएशन में फंसने के बाद जो हम ऊंटपटांग हरकतें करते हैं, उसी के सहाराे दर्शकों एंटरटेन करने की कोशिश की गई है। और डायेरक्टर और एक्टरों ने उस कोशिश को पर्दे पर सही से पेश किया है।
डार्क सटायर (व्यंग्य)
फिल्म में एक सीन है, जब पंकज त्रिपाठी कहते हैं- 'वो स्त्री है, पुरुष थोड़ी है जो बिना पूछे उठा ले जाए? वो पहले परमिशन लेती है फिर उठाती है।' अभी के समय देश में लड़कियों को लेकर जिस कदर माहौल खराब है। ये लाइन उसी हालात को दर्शाता है। पंकज त्रिपाठी ने कॉमेडी करते-करते बहुत ही गंभीर मैसेज दिया है।
वैसे तो फिल्म में इमरजेंसी, रेप, अंधभक्ति (ट्रोलर्स), आधार जैसे हर मुद्दे पर व्यंग्य है लेकिन मैं आपको लड़कियों की हिंसा से जुड़ी एक और सीन के बारे में बता दूं। फिल्म में जब स्त्री (चुडैल) का आतंक बहुत बढ़ जाता है। फिर गांव के सारे मर्दे घर के अंदर रहते हैं और महिलाएं घर के बाहर काम के लिए जाती हैं। उस समय एक सीन में जब एक महिला घर से बाहर जाती है तो अपनी पति को हिदायत देती है कि घर से बाहर नहीं निकाला। रात का समय है स्त्री आ जाएगी। फिर महिला का पति कहता है- जल्दी आना अकेले में डर लगता है।
शाहरुख बने राजकुमार राव के लिए
वैसे तो ये लाइन राजकुमार राव की एक्टिंग में ही जस्टिफाई हो जाती है। लेकिन फिल्म के एक सीन में राजकुमार राव शाहरुख खान बने हैं, उसे अलग से मेंशन करना जरूरी है। फिल्म जब अंतिम पड़ाव पर पहुंचती है, तब राजकुमार राव को स्त्री (चुडैल) से रोमांस करने को कहा जाता है। विक्की बने राजकुमार चुडैल से रोमांस करने की कोशिश करते हैं।
उस सीन में राजकुमार शाहरुख खान के सिग्नेचर स्टाइल (हाथ फैलाकर सर हिलाने) में चुडैल से रोमांस करने की कोशिश करते हैं। वैसे तो पूरी फिल्म के दौरान कलाकारों के लिए सीटियां-ताली बजती है। लेकिन एक उस सीन के लिए ऑडियंस ने राजकुमार के लिए उतनी ही तालियां बजाई, जितना की शाहरुख के लिए बजाते हैं। इस एक सीन के दौरान राजकुमार राव की एक्सप्रेशन और एक्टिंग के लिए इस फिल्म को देखनी चाहिए