फिल्म समीक्षा: 'द कश्मीर फाइल्स' - कश्मीरी पंडितों के साथ हुए वीभत्स को बयां करती फिल्म की कहानी
By रुस्तम राणा | Updated: March 26, 2022 17:29 IST2022-03-26T16:32:36+5:302022-03-26T17:29:24+5:30
जिस फिल्म की चर्चा संसद तक में हो चुकी हो, देश के प्रधानमंत्री जिस फिल्म का जिक्र कर चुके हों, उस फिल्म की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है।

फिल्म समीक्षा: 'द कश्मीर फाइल्स' - कश्मीरी पंडितों के साथ हुए वीभत्स को बयां करती फिल्म की कहानी
फिल्म समीक्षा - द कश्मीर फाइल्स
कलाकार - दर्शन कुमार, मिथुन चक्रवर्ती, अनुपम खेर, पल्लवी जोशी, चिन्मय मांडलेकर और प्रकाश बेलवाड़ी
लेखक - सौरभ एम पांडे और विवेक रंजन अग्निहोत्री
निर्देशक - विवेक रंजन अग्निहोत्री
निर्माता - तेज नारायण अग्रवाल, अभिषेक अग्रवाल, पल्लवी जोशी और विवेक अग्निहोत्री
रेटिंग - 4/5
'द कश्मीर फाइल्स'महज एक फिल्म नहीं है, बल्कि इतिहास का वह वीभत्स पन्ना है जिससे आज से लगभग बत्तीस बरस पहले आजाद भारत में लिखा गया। कश्मीरी पंडितों के दर्द को बयान करती ये फिल्म दर्शकों को थिएटर तक खींच लाने पर मजबूर कर रही है। 11 मार्च को फिल्म रिलीज हुई थी, लेकिन फिल्म की लोकप्रियता का आलम ये है कि रिलीज के दो हफ्ते बीत जाने के बाद भी थिएटर में फिल्म को दर्शक भर-भरकर देख रहे हैं।
जैसा फिल्म का प्लॉट है और उसी के अनुरूप इसमें अनुपम खेर, दर्शन कुमार और पल्लवी जोशी ने प्रभाव छोड़ने वाला अभिनय किया है। ये फिल्म दर्शकों को यह समझाने में कामयाब हुई है कि वास्तव में 90 के दशक में जो कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के साथ हुआ वह पलायन मात्र नहीं था, बल्कि एक नरसंहार है और यही बात इस फिल्म की यही सबसे बड़ी सफलता है। दर्शक इस फिल्म को इसलिए देखने थिएटर तक पहुंच रहे हैं कि वे जानना चाहते हैं कि कश्मीरी पंडितों के साथ आखिरकार किस हद तक जुल्म हुआ था। साथ ही फिल्म यह संदेश देने में भी कामयाब होती है कि कश्मीरी पंडितों के साथ इतनी भयावह घटना घट जाती है और देश की व्यवस्था क्यों मौन रही। देश के बाकि हिस्सों में इस घटना के खिलाफ क्यों आवाज नहीं उठ सकी।
फिल्म निर्देशक विवेक रंजन अग्निहोत्री ने चालाकी से एक परिवार (पुष्कर नाथ पंडित, जिसका किरदार अनुपम खेर ने निभाया है) की कहानी में पूरे कश्मीरी पंडितों की व्यथा को दर्शाने की कोशिश की है। साथ ही एक ही किरदार में उन्होंने कई असल जीवन के किरदारों को दिखाने का प्रयास भी किया है। फिर चाहें वह चिन्मय मांडलेकर का किरदार हो या फिर पल्लवी जोशी का। फिल्म का संगीत कश्मीरी लोक संगीत से मेल खाता है। फिल्म के संवाद में भी कश्मीरी भाषा की झलक है।
हालांकि जो हिन्दी भाषी दर्शक को समझना मुश्किल होगा। विवेक अग्निहोत्री ने कई इंटरव्यू में कहा है कि उन्होंने इस फिल्म को लेकर काफी रिसर्च की है और उन्हीं कश्मीरी पंडितों से तथ्य जुटाए हैं जिन्होंने उस भयानक दर्द को सहा है, जो पीड़ित हैं। सिनेमा के लिहाज से ये फिल्म ‘शिंडलर्स लिस्ट’ तक पहुंचने की कोशिश करती फिल्म है, जो यहूदियों पर नाजी जर्मन के जुल्म-ओ-सितम को बयां करती है।
