सेंसर में गए बिना बैन हुई पहली फिल्म है 'पद्मावती', इन फिल्मों ने भी झेला विरोध का दर्द
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: December 14, 2017 10:47 AM2017-12-14T10:47:53+5:302017-12-14T17:10:09+5:30
हमारे देश में राजनीतिक कारणों या इतिहास में छेड़छाड़ के नाम पर फिल्मों के विरोध का लंबा इतिहास रहा है। इसी श्रेणी में एक और फिल्म का नाम शामिल हो गया है और वह पद्मावती है।
हमारे देश में राजनीतिक कारणों या इतिहास में छेड़छाड़ के नाम पर फिल्मों के विरोध का लंबा इतिहास रहा है। इसी श्रेणी में एक और फिल्म का नाम शामिल हो गया है और वह पद्मावती है। 'पद्मावती' संभवत: पहली ऐसी फिल्म है जो अभी तक सेंसर की नजरों से गुजरी भी नहीं और रिलीज होने से पहले ही बैन हो गई।
इन सीनों का हुआ विरोध
शूटिंग के साथ शुरू हुआ विवाद आज तक नहीं थमा है। दरअसल, ये विवाद रानी पद्मावती और अलाउद्दीन खिलजी के बीच प्रेम के स्वप्न दृश्य के कयासों और इतिहास को गलत तरह से दिखाने से शुरू हुआ था। हांलाकि फिल्म के निर्देशक संजय लीला भंसाली ने इस तरह के किसी भी सीन को नकारा है। सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात ये है कि सेंसर की नजरों से गुजरने से पहले ही यह प्रतिबंध का दंश झेल रही है। गुजरात सरकार ने राज्य में विधानसभा चुनावों से पहले 22 नवंबर को 'पद्मावती' के रिलीज पर रोक लगा दी।
सेंसर बोर्ड द्वारा नहीं देखी गई अभी तक फिल्म
सभी जानते हैं कि फिल्म पद्मावती बैन को लेकर सीबीएफसी के चेयरमैन प्रसून जोशी ने पिछले दिनों संसद की दो समितियों को बताया कि फिल्म को अभी तक सेंसर बोर्ड की मंजूरी नहीं मिली है। जबकि, सीबीएफसी में प्रमाणपत्र के लिए फिल्म निर्माताओं की ओर से 11 नवंबर को ही आवेदन किया गया है और सिनेमेटोग्राफी कानून के तहत फिल्म को प्रमाणपत्र देने में बोर्ड 68 दिन तक का समय ले सकता है।
इन फिल्मों ने भी झेला विवाद का दर्द
हिंदी फिल्मों को प्रतिबंधित करने के इतिहास की ओर चलें तो 1921 में बनी मूक फिल्म ‘भक्त विदुर’ पहली ऐसी फिल्म मानी जाती है, जिसे बैन किया गया था। फिल्म में एक हिंदू पौराणिक चरित्र का किरदार विदुर था। 'नील आकाशेर नीचे'(1958) आजाद भारत की पहली फिल्म मानी जाती है जिस पर रोक लगा दी गयी। मृणाल सेन के निर्देशन में बनी फिल्म महादेवी वर्मा की कहानी 'चीनी भाई' पर आधारित थी जो ब्रिटिश राज के आखिरी दिनों की कहानी थी। ये फिल्म दो महीने के बैन के बाद रिलीज हो सकी थी। गुलजार की 1975 में आई फिल्म 'आंधी' को रिलीज के 26 हफ्ते बाद बैन कर दिया गया था, जिसके बाद 1977 में आम चुनाव हुए और नई सरकार बनी, तब इसे फिर रिलीज किया गया। आपातकाल के समय ही आई फिल्म 'किस्सा कुर्सी का' भी इसलिए विवादों में घिर गई क्योंकि इसमें भी इंदिरा गांधी की आलोचना होने की बात कही गई। इस पर रोक लग गई। आपातकाल के बाद फिल्म दोबारा बनी, रिलीज भी हुई लेकिन चली नहीं। वहीं, हाल ही में आई इंदु सरकार को रोक का दर्द झेलना पड़ा था क्योंकि इसमें इंदिरा गांधी और उनके बेटे राजीव गांधी सवालों के घेरे में आ रहे थे।
इन मुद्दों के कारण भी लगी रोक
वैसे आमतौर पर फिल्मों पर रोक या तो राजनीतिक रूप से या फिर ऐतिहासिक मुद्दों को उठाने के कारण लगती है। सिनेमा के कुछ ऐसे मुद्दे भी हैं जिनके कारण फिल्म को या तो कभी पर्दे पर आने ही नहीं दिया गया या फिर बड़े पर्दे पर देखने के लिए फैंस को लंबा इंतजार करना पड़ा। गौरबतल है कि शेखर कपूर की 'बैंडिट क्वीन' और मीरा नायर की फिल्म 'कामसूत्र-अ टेल ऑफ लव' इनमें से कुछ हैं। इसी तरह 2005 में आई 'परजानिया' 2002 के गुजरात दंगों पर आधारित होने की वजह से विवादों में रही। गुजरात के सिनेमाघरों में फिल्म नहीं लगाई गई। 2008 में आई नंदिता दास निर्देशित 'फिराक' भी ऐसे ही कुछ कारणों से विवाद में फंसी रही। आमिर खान अभिनीत 'फना' (2006), निर्देशक शोनाली बोस की 'अमु' (2005) और ऐसी कई तमाम फिल्में इस तरह की वजहों से विरोध का सामना करती रहीं। दीपा मेहता की 'फायर और 'वाटर', पंकज आडवाणी की 'यूआरएफ प्रोफेसर' भी इनमें शामिल हैं। काशीनाथ सिंह के मशहूर उपन्यास 'काशी का अस्सी' पर आधारित 'मोहल्ला अस्सी' को अभी तक रिलीज की अनुमति नहीं मिल पाई है।