Manto Review: अगर आप मंटो को पहले से जानते हैं तो नंदिता और नवाज की फिल्म आपके लिए है

By प्रतीक्षा कुकरेती | Published: September 21, 2018 09:31 AM2018-09-21T09:31:15+5:302018-09-21T10:06:16+5:30

Manto Movie Review in Hindi (मंटो मूवी रिव्यु ): नंदिता दास द्वारा निर्देशित और नवाजुद्दीन सिद्दीकी द्वारा अभिनीत मंटो उर्दू लेखक सआदत हसन मंटो के जीवन और लेखन पर आधारित है।

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मंटो मूवी रिव्यू | Manto Movie Review in Hindi| Nawazuddin Siddiqui starring Biopic Movie Monto Review

फिल्म: मंटो

डायरेक्टर: नंदिता दास

स्टार कास्ट: नवाजुद्दीन सिद्दीकी ,रसिका दुग्गल, ताहिर राज भसीन

ड्यूरेशन - 112 मीन्स 

रेटिंग: 3 स्टार

मंटो फ़िल्म की कहानी

'मंटो' मशहूर उर्दू लेखक सआदत हसन मंटो की लाइफ पर बनी बायॉपिक है। फिल्म की कहानी मंटो के एक अफ़साने से शुरू होती है। मंटो (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) अपनी पत्नी साफिया (रसिका दुग्गल) और बेटी के साथ मुंबई (तब बॉम्बे) में रहते हैं।

मंटो अपने लेखन में बहुत ही बेबाक थे। मंटो  की एक काल्पनिक दुनिया थी जिनके किरदार की बारीकियों को जानने के लिए मंटो पहले खुद उन किरदारों को जीते  थे। फिर उन्ही किरदारों की कहानी को बहुत ही खूबसूरती से वो अपने अल्फाजो में बयान करते थे।

मंटो की कल्पना में समाज की कड़वी सच्चाई होती थी जिसे उन्होंने अपने जीवन में देखा था। मंटो की कहानियों कई बार सेंसर का शिकार हुईं। इतना ही नहीं उनपर अपनी कहानियों के ज़रिये अश्लीलता को बढ़ावा देना के आरोप भी लगे। उनपर अश्लील कहानियाँ लिखने के लिए मुकदमे भी हुए। 

मंटो ने गुरबत की ज़िन्दगी जीते हुए भी किस तरह से 'अभिव्यक्त की आजादी' की लड़ाई लड़ी उसे इस फिल्म में बखूबी दर्शाया गया है। उस  दौरान मंटो की  कैसी व्यथा, कैसी स्थिति रही होगी, इसे बेहद गहराई  से नंदिता दास ने बड़े परदे  पर दिखाया है। 

फिल्म में समाज के कई कड़वी सच्चाइयों जैसे रेप, देह व्यापार, भारत-पाक विभाजन से लेकर पितृसत्तात्मक मानसिकता, धार्मिक असिहष्णुता, बॉम्बे के लिए मंटो का प्यार जैसे कई वाकयों को बहुत ही दिलचस्प अंदाज़ में दर्शकों के लिए परोसा गया है। एक लेखक का जीवन कैसे अकेलेपन के दर्द से गुज़रता है इसे फ़िल्म में पूरी शिद्दत से दिखाया गया है। 

मंटो फ़िल्म का डायरेक्शन 

नंदिता दास ने फिल्म की कहानी  को  बेहद  दिलचस्प ढंग से पेश किया है। 1940 के दशक में  किस तरह का माहौल था, या भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के दौरान जो कुछ हुआ उसे बहुत ही साफ़ तरीके से दिखाया गया है।

मंटो का जन्म हिंदुस्तान में हुआ था। भारत विभाजन के कुछ सालों बाद वो पाकिस्तान चले गये थे। 112 मिनट की इस फिल्म में मंटो के जीवन के चार सालों को दिखाया गया है, जिसमें मंटो की सोच, नीजी जीवन  और रहन-सहन के ढंग को बखूबी देखा जा सकता है।

जो लोग मंटो के बारे में जानते हैं, उन्हें यह फिल्म अच्छी लगेगी, लेकिन उन्हें भी कोई नयी बात शायद ही जानने को मिले। यहाँ थोड़ी निराशा होती है क्यूंकि किसी की बॉयोपिक से उम्मीद होती है कि उसमें कुछ नया जानने को भी मिलेगा। 

जो लोग मंटो को जानते हैं वो इस फिल्म से रिलेट करेंगे लेकिन जो उन्हें नहीं जानते उन्हें शायद यह फिल्म थोड़ी फीकी लगे। मंटो के काम से अपरिचित दर्शकों को उन कहानियों का संदर्भ समझने में मुश्किल होगी। नंदिता दास को कोशिश करनी चाहिए थी कि वो ऐसी फिल्म बनाएं जिससे नई पीढ़ी (मिलेनियल) दर्शक भी इस फिल्म से रिलेट करें और मंटो को पढ़ने-गुनने में इंट्रेस्ट लें।

मंटो फिल्म में अभिनय 

फिल्म में नवाजुद्दीन सिद्दीकी मंटों के किरदार में हैं।  नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने मंटो को अपने अंदर पूरी तरह से उतर लिया है। नवाज़ुद्दीन को देखकर ये अंदाज़ा लगाया जा सकता है की आखिरकार मंटो का मिजाज कैसा रहा होगा। कैसे वो अपना जीवन जीते थे।

नवाज़ ने मंटो के किरदार में जान फूंक दी है। मंटो की पत्नी के रूप में रसिका दुग्गल ने भी बेहतरीन काम किया है। इन दोनों के अलावा ताहिर राज भसीन का अभिनय भी सराहनीय है। 

फिल्म में मंटो की कहानियों को किरदारों के माध्यम से भी दिखाया गया है जिनमें दिव्या दत्ता, रणवीर शौरी, ऋषि कपूर, जावेद अख्तर, गुरदास मान, परेश राव, और नीरज कबि जैसे अभिनेता दिखाई देते हैं। 

मंटो का म्यूजिक, कैमरा और प्रोडक्शन डिज़ाइन

फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर बढ़िया है। फिल्म के डायलाग फिल्म में जान डाल देते हैं। फिल्म में गाने ज्यादा नहीं हैं लेकिन आखिर में फै़ज अहमद फैज का लिखा 'बोल के लब आज़ाद हैं तेरे" गीत आपका दिल छू जाएगा।  

कार्तिक विजय की सिनेमैटोग्रफी और रीता घोष के प्रॉडक्शन डिज़ाइन से भारत के बंटवारे के मंजर पूरी तरह उभरकर सामने आता है।

मंटो फिल्म क्यों देखें?

जिन लोगों को सआदत अली मंटो के अफ़सानों  या निजी जिंदगी में रुचि है वो ये फिल्म जरूर देखें। अगर आपको 'जरा हट के' फिल्में देखने के शौक है तो भी आप मंटो देख सकते हैं।

अगर आप बॉलीवुड की मसाला फिल्मों के ओवरडोज के शिकार हैं तो भी जायका बदलने के लिए इस सादी फिल्म को ट्राई कर सकते हैं।

अगर आप सिर्फ तीन वजहों 'एंटरटेनमेंट एंटरटेनमेंट और एंटरटेनमेंट'  के लिए फिल्में देखते हैं तो ये फिल्म आपके लिए नहीं है। 

English summary :
Manto Movie Review in Hindi: 'Manto' is a biopic made on the life of famous Urdu writer Saydat Hasan Manto. The story of the film starts with an ominous monsoon. Manto (Nawazuddin Siddiqui) lives in Mumbai (then Bombay) with his wife, Safiya (Rasika Duggal) and daughter.


Web Title: manto movie review, released date, nawazuddin siddiqui starring movie manto biopic movie review

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