बर्थडे स्पेशल: 50 साल के हुए मनोज बाजपेयी, कभी मुंबई छोड़ने को हो गए थे मजबूर

By अजय ब्रह्मात्मज | Published: April 23, 2019 08:46 AM2019-04-23T08:46:30+5:302019-04-23T08:46:30+5:30

 हिंदी फिल्मों में काम करते हुए मनोज बाजपेयी को 25 साल हो गए. इन 25 वर्षों में मनोज ने अपनी प्रतिभा और मेहनत से खास मुकाम हासिल किया है

manoj bajpayee birthday lesser known facts | बर्थडे स्पेशल: 50 साल के हुए मनोज बाजपेयी, कभी मुंबई छोड़ने को हो गए थे मजबूर

बर्थडे स्पेशल: 50 साल के हुए मनोज बाजपेयी, कभी मुंबई छोड़ने को हो गए थे मजबूर

 हिंदी फिल्मों में काम करते हुए मनोज बाजपेयी को 25 साल हो गए. इन 25 वर्षों में मनोज ने अपनी प्रतिभा और मेहनत से खास मुकाम हासिल किया है. बिहार के बेलवा गांव से दिल्ली होते हुए मुंबई पहुंचे इस अभिनेता को लंबे संघर्ष और अपमान से गुजरना पड़ा है. 1994 में उनकी पहली फिल्म 'बैंडिट क्वीन' आ गई थी. इसमें मान सिंह के किरदार से उन्होंने यह तो जाहिर कर दिया था कि वह रंगमंच की तरह पर्दे पर भी प्रभावशाली मौजूदगी रखते हैं.

नाटक और रंगमंच में सक्रिय अधिकतर अभिनेता की इच्छा बड़े पर्दे पर आने की रहती है, लेकिन बहुत कम को ही कैमरा, निर्देशक और दर्शक स्वीकार कर पाते हैं. मनोज बाजपेयी को भी वक्त लगा. 'बैंडिट क्वीन' की सराहना और मुंबई के निमंत्रण से उत्साहित होकर वह मुंबई आ गए थे. मुंबई में एक चर्चित और बड़े निर्देशक ने उन्हें मुंबई में मिलने का न्यौता दिया था. स्वाभाविक रूप से मनोज को लगा था कि मुंबई पहुंचते ही फिल्में मिलने लगेंगी. कुछ कोशिशों के बाद उक्त निर्देशक से मुलाकात हुई तो उन्होंने दुत्कार दिया.

प्रतिक्रिया का भाव था कि मिलने के लिए कहा था, काम यानी कि फिल्म देने की तो बात नहीं हुई थी. यह पहला झटका था. मनोज चेत गए और उन्होंने फिल्मों में काम पाने की रणनीति बदल दी. उन्होंने धैर्य से काम लिया और सही समय की प्रतीक्षा की. इस दौर में उन्हें महेश भट्ट से जरूरी संबल मिला. मनोज ने कभी बताया था कि वह तो बोरिया-बिस्तर समेट कर दिल्ली लौटने को तैयार थे, लेकिन महेश भट्ट ने उन्हें रोका. उन्होंने लगभग भविष्यवाणी-सी कर दी कि कई साल बाद ऐसा प्रतिभाशाली अभिनेता आया है. फिर वक्त और मौका आया. रामगोपाल वर्मा ने मनोज को देखा तो उन्हें अपनी अगली फिल्म का किरदार मिल गया. शेखर कपूर के प्रशंसक रामगोपाल वर्मा को 'बैंडिट क्वीन' में मनोज पसंद आए थे, लेकिन उन्हें खोज पाने का कोई तरीका नहीं था.

'दौड़' फिल्म के समय मुलाकात हुई तो रामगोपाल वर्मा ने मना भी किया कि इस फिल्म की छोटी भूमिका मत करो. वे 'सत्या' में भीखू म्हात्रे की भूमिका मनोज को देने का मन बना चुके थे. आश्वासनों से मनोज का मोहभंग हो चुका था. इसलिए उन्होंने 'दौड़' नहीं छोड़ी. रामगोपाल वर्मा ने अपना वादा पूरा किया. 'सत्या' के भीखू म्हात्रे ने सभी को मोहित किया. हिंदी फिल्मों में ऐसे नेगेटिव किरदार बहुत ही कम हैं, जिन्हें दर्शक सिर-माथे पर बिठाते हों. उसके बाद तो फिल्मों की झड़ी लग गई. यह वही दौर था जब कामयाबी की आस में उनसे फिल्मों और भूमिकाओं के चुनाव में गलतियां भी हुईं. समय के साथ मनोज बाजपेयी संभले. उन्होंने अपने सामर्थ्य के साथ संभावना पर विचार किया. फिल्मों के चुनाव में सजग हुए.

नतीजा यह हुआ कि उन्हें दो बार राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया और इस साल उन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री से नवाजा. गांव से निकले किसी कलाकार के लिए यह उल्लेखनीय यात्रा है. इस यात्रा की धूप-छांव ने मनोज को गढ़ा है. वह हिंदी फिल्मों में प्रचलित किसी होड़ में शामिल नहीं हैं. उनकी जुदा राह है. इस राह में अधिक चमक नहीं है, लेकिन सोच की पुख्तगी है. मनोज बाजपेयी बाद की पीढि़यों के लिए मिसाल बन चुके हैं. वह एक साथ प्रायोगिक और मुख्य धारा की फिल्में कर रहे हैं.

उन्होंने शॉर्ट फिल्म और वेब सीरीज को भी स्वीकार किया है. एक अंतराल के बाद वह रंगमंच पर भी आने का मन बना रहे हैं. 25 वर्षों के इस सफर के बाद भी मनोज बाजपेयी के कदम न तो थके हैं और न ही रुके हैं. वह लगातार आगे बढ़ रहे हैं. कम लोगों को मालूम है कि नई प्रतिभाओं को आगे बढ़ाने में वह कभी पीछे नहीं रहते. मुझे याद है कि 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' की शूटिंग से लौटने के बाद उन्होंने नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी के बारे में कहा था कि उसे खूब सराहना मिलेगी. और यही हुआ. आज मनोज बाजपेयी का जन्मदिन है. जन्मदिन की बधाई के साथ उनके आगामी करियर के लिए शुभकामनाएं.

Web Title: manoj bajpayee birthday lesser known facts

बॉलीवुड चुस्की से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे