मेहदी हसन पुण्यतिथि: अबके हम बिछड़े तो शायद, कभी ख्वाबों में मिलें...
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: June 13, 2018 07:14 AM2018-06-13T07:14:43+5:302018-06-13T07:14:43+5:30
पाकिस्तानी गजल गायक मेहदी हसन को भारत से काफी लगाव था उन्हें जब भी कभी मौका मिलता वो दौड़े चले आते थे
अबके हम बिछड़े तो शायद, कभी ख्वाबों में मिलें जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें..जैसे कई बेहतरीन गजलों को अपनी मखमली आवाज में पिरोने वाले मेहदी हसन की आज 13 जून 2018 को पुण्यतिथि है। मेहदी हसन का जन्म भारत के में हुआ था लेकिन बंटवारे के बाद वो पाकिस्तान चले गये थे। हालाँकि भारत से उनका लगाव कभी कम नहीं हुआ। उन्हें जब भी कभी मौका मिलता वो दौड़े चले आते थे। उनका जन्म 18 जुलाई 1927 को राजस्थान में झुंझुनू जिले के लूणा गांव में अजीम खां मिरासी के घर हुआ था।
भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के समय पाकिस्तान जाने से पहले उनके बचपन के 20 वर्ष गांव में ही बीते थे। गायकी उन्हें विरासत में मिली थी।
उनके दादा इमाम खान बड़े कलाकार थे जो उस वक्त मंडावा व लखनऊ के राज दरबार में गंधार, ध्रुपद गाते थे। मेहंदी हसन के पिता अजीम खान भी अच्छे कलाकार थे। वह परिवार के पहले ऐसे गायक थे जिन्होंने गजल गाना शुरू किया था।
पाकिस्तान जाने के बाद भी मेहंदी हसन ने गायन जारी रखा तथा वे ध्रुपद की बजाय गजल गाने लगे। वे अपने परिवार के पहले गायक थे, जिसने गजल गाना शुरू किया था। 1952 में वे कराची रेडियो स्टेशन से जुड़कर अपने गायन का सिलसिला जारी रखा तथा 1958 में वे पूर्णतया गजल गाने लगे।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सही मायनों में मेहदी हसन को पहचान फेमस शायर अहमद फराज की गजल- रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ से मिली थी। इस गजल को गाने के बाद उन्होंने कभी पीछे मुडक़र नहीं देखा। उन्होंने इतनी शिद्दत उसे गाया था कि लोग आज भी इसे भी बेहद पसंद करते हैं। ग़जल गाते वक्त एक राग से दूसरे राग में जाने और हर राग को बखूबी निभाने में उन्हें महारथ हासिल थी।
मेहदी हसन की गजलों को सुनकर ही बहुत से लोग गजल गायक बने। इनमें जगजीत सिंह और हरिहरन जैसे गायकों के नाम भी शामिल हैं। उन्हें शहंशाह-ए-गजल भी कहा जाता था।