Birthday Special: के. आसिफ एक ऐसा डायरेक्टर जिसने 'मुगले ए आजम' को बना दिया अमर
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: June 14, 2018 09:33 IST2018-06-14T09:13:06+5:302018-06-14T09:33:18+5:30
K Asif Birth Anniversary: अपने फ़िल्मी करियर में उन्होंने सिर्फ 3-4 फिल्मों का ही निर्माण व निर्देशन किया लेकिन जो भी काम किया, उसे पूरी लगन और जुनून के साथ किया।

K Asif Bollywood Director of Mughal E Azam birth anniversary | K Asif Bollywood birth anniversary
बॉलीवुड के इतिहास में ऐसा कोई डायरेक्टर नहीं है जिसने किसी फिल्म को बनाने में अपने जीवन के 14 साल लगा दिए हों। इससे पहले की आप सोच में पड़ जाए हम आपको उनका नाम बता देते हैं जी हां हम बात कर रहे हैं फिल्मकार के. आसिफ के बारे में जिन्होंने फेमस फिल्म 'मुगल ए आजम' को बनाया था। जिसे बनने में 14 साल का समय लगा था। ये अपने दौर की सबसे महंगी फिल्मों में शुमार थी। इस फिल्म की लागत तक़रीबन 1.5 करोड़ रुपए बताई जाती है। वैसे ये फिल्म आज भी लोगों द्वारा काफी पसंद की जाती है।
के. आसिफ का पूरा नाम कमरुद्दीन आसिफ था जिन्हें एक ऐसी शख्सियत के रूप में याद किया जाता है जिन्होंने 3 दशक लंबे फ़िल्मी करियर में अपनी फिल्मों के जरिए फैन्स के दिलों पर राज किया।
अपने फ़िल्मी करियर में उन्होंने सिर्फ 3-4 फिल्मों का ही निर्माण व निर्देशन किया लेकिन जो भी काम किया, उसे पूरी लगन और जुनून के साथ किया। यही वजह है कि उनकी फिल्में बनाने की रफ्तार काफी धीमी रहती थी।
के. आसिफ का जन्म 14 जून 1922 को उत्तरप्रदेश के इटावा में एक मध्यमवर्गीय मुस्लिम परिवार में हुआ था। 40 के दशक में जीवन-यापन के लिए वे अपने मामा नजीर के पास मुंबई आ गए, जहां उनकी दर्जी की दुकान थी। उनके मामा फिल्मों में कपड़े सप्लाई किया करते थे, साथ ही उन्होंने छोटे बजट की 1-2 फिल्मों का निर्माण भी किया था। शायद यहीं से उनका मन फिल्मों की तरफ गया।
साल 1945 में बतौर निर्देशक उन्होंने फिल्म 'फूल' से सिने करियर की शुरुआत की। पृथ्वीराज कपूर, सुरैया और दुर्गा खोटे जैसे बड़े सितारों वाली यह फिल्म टिकट खिड़की पर सुपरहिट साबित हुई। इस फिल्म की सफलता के बाद के. आसिफ ने अपनी महत्वाकांक्षी फिल्म 'मुगल-ए-आजम' बनाने का निश्चय किया।
फिल्म के एक गाने ‘प्यार किया तो डरना क्या’ को फिल्माने में 10 लाख रुपये खर्च किए गए, ये काफी बड़ी रकम थी जिसमें उस दौर की एक पूरी फिल्म बन सकती थी। 105 गानों को रिजेक्ट करने के बाद नौशाद साहब ने ये गाना चुना था। इस गाने को लता मंगेशकर ने स्टूडियो के बाथरूम में जाकर गाया था, क्योंकि रिकॉर्डिंग स्टूडियो में उन्हें वो धुन या गूंज नहीं मिल पा रही थी जो उन्हें उस गाने के लिए चाहिए थी। उस गाने को आज तक उसके बेहतरीन फिल्मांकन के लिए याद किया जाता है। उसी फिल्म के एक और गाने ‘ऐ मोहब्बत जिंदाबाद’ के लिए मोहम्मद रफ़ी के साथ 100 गायकों से कोरस गवाया गया था। इस फिल्म को बड़ा बनाने के लिए हर छोटी चीज़ पर गौर किया गया था।
9 मार्च 1971 को दिल का दौरा पड़ने से वे इस दुनिया को अलविदा कह गए।