'अंग्रेजी में कहते हैं NFDC', ये ना होता तो भारतीय सिनेमा का इतिहास ही कुछ और होता

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: May 20, 2018 04:53 PM2018-05-20T16:53:26+5:302018-05-20T16:53:26+5:30

NFDC ने मिर्च मसाला, सलाम बॉम्‍बे, अलबर्ट पिन्‍टो को गुस्‍सा क्‍यों आता है, सलीम लंगड़े पे मत रो, एक डॉक्‍टर की मौत, दीक्षा, धारावी, सूरज का सातवां घोड़ा, मम्‍मो, गांधी जैसी फिल्‍में बनाई हैं। अब अंग्रेजी में कहते हैं लेकर आई है।

Angrezi Mein Kehte Hain NFDC history and roll in Indian Cinema | 'अंग्रेजी में कहते हैं NFDC', ये ना होता तो भारतीय सिनेमा का इतिहास ही कुछ और होता

'अंग्रेजी में कहते हैं NFDC', ये ना होता तो भारतीय सिनेमा का इतिहास ही कुछ और होता

-यूनूस खान

बरसों बाद कोई ऐसी फिल्‍म आयी है जिसे राष्‍ट्रीय फिल्‍म विकास निगम ने बनाया है—सिनेमाघरों में इस शुक्रवार आई इस फिल्‍म का नाम है—‘अंग्रेजी में कहते हैं’। इसे हरीश व्‍यास ने निर्देशित किया है। इस फिल्‍म के कलाकार हैं संजय मिश्रा, इप्शिता चक्रवर्ती, ब्रजेंद्र काला, अंशुमान झा वग़ैरह। इस फिल्‍म का परिदृश्‍य क्‍या है—ये मैं आपको नहीं बताऊंगा, पर ये फिल्‍म उम्र के एक अलग पड़ाव पर प्रेम की पड़ताल करती है।

राष्‍ट्रीय फिल्‍म विकास निगम का गौरवशाली इतिहास रहा है। शायद ही अब किसी को याद हो कि इस संस्‍थान की स्‍थापना सन 1975 में हुई थी। ये वो साल है जब मुख्‍यधारा का फिल्‍म संसार शोले, दीवार, आंधी, मौसम, सन्‍यासी, खेल खेल में और धरम करम जैसी फिल्‍में लेकर आ रहा था। एनएफडीसी ने जो सबसे बड़ा काम किया, वो था समांतर सिनेमा के लिए एक उपजाऊ ज़मीन तैयार करना। और इस काम में ये संस्‍थान बहुत ज्‍यादा कामयाब रहा। फिर जाने क्‍या हुआ—कि वो युग ही बीत गया और एनएफडीसी की फिल्‍में बीते समय की बात बन गयीं। 

राष्‍ट्रीय फिल्‍म विकास निगम ने कुछ शानदार फिल्‍में बनायीं हैं। शुरुआत में इस संस्‍थान का नाम था FFC यानी फिल्‍म वित्‍त निगम। इसके सहयोग से सबसे पहले मणि कौल ने ‘उसकी रोटी’ जैसी फिल्‍म बनायी थी। फिल्‍म वित्‍त निगम ने तुरंत ही नाम कमा लिया था क्‍योंकि इसके द्वारा बनायी जा रही फिल्‍मों को दुनिया भर में पुरस्‍कार मिलने शुरू हो गये थे। लेकिन आगे चलकर इस संस्‍थान को एक नया रूप दिया गया, इसे राष्‍ट्रीय फिल्‍म विकास निगम का नाम दिया गया और विदेशी फिल्‍म कॉर्पोरेशनों के सहयोग से इसका दायरा भी बढ़ा दिया गया। इस बीच दूरदर्शन भी आ गया और फिल्‍मों को प्रदर्शित करने का एक मंच उपलब्‍ध हो गया। (जरूर पढ़ेंः नगर निगम ने बेचा किशोर कुमार का 100 साल पुराना पुश्तैनी घर, खंडवा के बिजनेसमैन होंगे नये मालिक)

NFDC ने एक तरफ जहां सत्‍यजीत रे की‘घरे बाइरे’ जैसी फिल्‍म बनाई तो दूसरी तरफ मिर्च मसाला, सलाम बॉम्‍बे, अलबर्ट पिन्‍टो को गुस्‍सा क्‍यों आता है, सलीम लंगड़े पे मत रो, एक डॉक्‍टर की मौत, दीक्षा, धारावी, सूरज का सातवां घोड़ा, मम्‍मो, गांधी जैसी फिल्‍में बनायीं और इसके निर्देशकों, लेखकों और कलाकारों दुनिया भर में नाम कमाया। पुरस्‍कार बटोरे। यकीन मानिए कि अगर NFDC उस ज़माने में फिल्‍मों को पोषित नहीं कर रहा होता तो भारतीय सिनेमा का इतिहास ही कुछ और होता। समांतर सिनेमा की वो ताक़त बन नहीं पाती जो अस्‍सी के दशक में बनी और नब्‍बे के मध्‍य तक उसका अवसान ही हो गया। 

बीते कुछ सालों में एनएफडीसी ने क्‍या किया है, इसकी ज्‍यादा जानकारी लोगों को नहीं है। 2013 में इस संस्‍थान ने प्रिया कृष्‍णास्‍वामी के निर्देशन में आई फिल्‍म ‘गंगूबाई’ बनायी थी। 2011 में गुरविंदर सिंह के निर्देशन में ‘अन्‍हे घोड़े दा दान’और 2015 में ‘चौथी कूट’ जैसी फिल्‍में बनायीं, दोनों को ही राष्‍ट्रीय फिल्‍म पुरस्‍कार मिला। ‘अन्‍हे घोड़े दा दान’गुरदयाल सिंह का चर्चित पंजाबी उपन्‍यास रहा है। जबकि ‘चौथी कूट’ मशहूर पंजाबी कहानीकार वरयाम सिंह संधू की दो कहानियों पर बनी थी। 2012 में बनी ज्ञान कोरिया की गुजराती फिल्‍म ‘द गुड रोड’को ऑस्‍कर के लिए भेजा गया था। 2001 में एनएफडीसी ने कश्‍मीरी फिल्‍म ‘बब’ बनायी- जो कश्‍मीरी भाषा की तीसरी फिल्‍म है। तब अड़तीस साल बाद कोई कश्‍मीरी फिल्‍म बनायी गयी थी। इसी तरह NFDC के फिल्‍म बाजार के रास्‍ते ही अशीम अहलूवालिया की ‘मिस लवली’ जैसी फिल्‍म कान फिल्‍म समारोह तक जा सकी थी।

जाहिर है कि कॉर्पोरेट जगत के फिल्‍म निर्माण में उतरने के बाद से NFDC का महत्‍व घटता चला गया है, अब छोटी फिल्‍मों का निर्माण करने के लिए बड़ी कंपनियां मैदान में हैं और ज़रूरत है कि भारत सरकार का ये संस्‍थान नये ज़माने में नये तेवर और आक्रामकता के साथ सामने आई और अपनी काबलियत का पूरा इस्‍तेमाल करे।

-(यूनूस खान, विख्यात रेडियो जॉकी और फ़िल्म क्रिटिक)

Web Title: Angrezi Mein Kehte Hain NFDC history and roll in Indian Cinema

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