जी20 शिखर सम्मेलन से दुनिया को क्या मिला? जवाब- कुछ नहीं, सभी अंतरराष्ट्रीय संगठनों के लिए ये विचार की घड़ी

By राजेश बादल | Published: November 18, 2022 09:20 AM2022-11-18T09:20:09+5:302022-11-18T09:20:09+5:30

इंडोनेशिया के बाली में जी20 शिखर सम्मेलन समाप्त हो गया। इससे लेकिन हासिल क्या हुआ, इस बारे में विचार करने पर यही लगता है कि आज केदौर में अंतरराष्ट्रीय मंचों से सामूहिक हित नहीं सध रहे हैं.

What world get from the G20 summit, Nothing, moment of thought now for all international organizations | जी20 शिखर सम्मेलन से दुनिया को क्या मिला? जवाब- कुछ नहीं, सभी अंतरराष्ट्रीय संगठनों के लिए ये विचार की घड़ी

जी20: अंतरराष्ट्रीय मंचों से नहीं सध रहे सामूहिक हित (फाइल फोटो)

इंडोनेशिया के छोटे से सुंदर द्वीप बाली में संसार के बड़े सरपंचों की चौपाल ने साल भर के लिए भारत को चौधरी चुन लिया. इस शिखर संवाद का हासिल यही है. इसके अलावा इस पंचाट में किसी खास मुद्दे पर कोई बड़ा निष्कर्ष अभी तक तो सामने नहीं आया. चंद झलकियां ही बाली समागम की सुर्खियां हैं. वैसे देखा जाए तो इस सम्मेलन में गंभीर मसलों पर कोई निर्णायक राय उभर कर सामने नहीं आने वाली थी. 

प्रेक्षक, जानकार और अंतरराष्ट्रीय बिरादरी भले ही उम्मीद लगाए रहे हों कि रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग समाप्त करने के लिए बड़े राष्ट्र सम्मेलन में कोई फॉर्मूला प्रस्तुत करेंगे या उत्तर कोरिया के परमाणु परीक्षण कार्यक्रम पर निर्णायक दबाव बनाया जाएगा अथवा कोविडकाल के बाद वैश्विक आर्थिक चुनौतियों पर कोई साझा घोषणापत्र सामने आएगा लेकिन ऐसा कुछ भी न हुआ. 

अलबत्ता दुनिया ने कैमरों की आंख से देखा कि चीनी और अमेरिकी राष्ट्रपति आमने-सामने आए तो कैसे दिखाई दिए. यह भी नजर में आया कि कुछ पलों के लिए चीनी राष्ट्रपति और भारतीय प्रधानमंत्री का आमना-सामना कैसे हुआ और ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक भारतीय प्रधानमंत्री से किस प्रकार मिले.

वैसे तो मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में कोई भी देश अपनी ओर से बहुत बड़ी उद्घोषणा करने की स्थिति में नहीं था, अलबत्ता जो काम संसार की पचासी फीसदी अर्थव्यवस्था को अपने नियंत्रण में रखने वाला संगठन कर सकता था, वह भी नहीं किया गया. इन दिनों अनेक राष्ट्रों के अपने और द्विपक्षीय रिश्ते विकट रूप ले चुके हैं. वे सवालों की शक्ल में विश्व बिरादरी के सामने हैं. समूह बीस ने इनका सामना खोजने की दिशा में रत्ती भर दिलचस्पी नहीं दिखाई. 

सबसे बड़ी बात तो रूस और यूक्रेन के बीच जंग रोकने का मसला था. महीनों से चल रही जंग पर समूह के सभी देशों की नजरें टिकी थीं. शिखर संवाद में यह मसला निश्चित रूप से उठना चाहिए था. देखना दिलचस्प होता कि जो बाइडेन की सरकार बाली में रूस के लिए क्या संदेश लेकर आई थी. यूरोपीय यूनियन इस जंग के कारण कारोबारी मोर्चे पर सदस्य देशों की चिंताएं कैसे उठाती. रूस अपना पक्ष किस तरह रखता और जी-20 उस पर क्या प्रतिक्रिया व्यक्त करता. पर उसमें तो रूस के सर्वेसर्वा व्लादिमीर पुतिन शामिल नहीं हुए. उनके विदेश मंत्री ने रूस का प्रतिनिधित्व किया. 

सूत्रों की मानें तो रूसी खुफिया एजेंसियों को राष्ट्रपति पुतिन के खिलाफ कुछ साजिशों की भनक लगी थी, इसलिए उनका आना रोक दिया गया. जाहिर था कि रूसी विदेश मंत्री संवाद में सिर्फ प्रतिनिधित्व करने की भूमिका में थे. जितना उनको इशारा रहा होगा, वे उतना ही बोले भी. यानी यूक्रेन के मामले में कोई ठोस बात नहीं बनी. भारत ने शांति की अपील की. इसके अलावा वह क्या कह सकता था. वैसे भी नाटो देशों और अमेरिका ने यूक्रेन को मदद के जाल में ऐसा उलझा दिया है कि यूक्रेन दशकों तक उनके कर्ज से उबर नहीं पाएगा. जेलेंस्की नहीं झुकेंगे तो यूक्रेन को भी कम नुकसान नहीं होगा.

वैसे जेलेंस्की के लिए इस शिखर समागम से एक संदेश भी निकलता है. कनाडा के प्रधानमंत्री ट्रुडो और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच एक मौके पर तल्ख संवाद हुआ. चीनी राष्ट्रपति को शिकायत थी कि दोनों के बीच जो बातचीत होती है, वह मीडिया में सार्वजनिक क्यों हो जाती है? कनाडा के प्रधानमंत्री ने उत्तर दिया कि वे कुछ छिपाते नहीं. कनाडा खुली बातचीत में भरोसा करता है और आगे भी ऐसा करता रहेगा. चीनी सदर के लिए यह तमाचे से कम नहीं था. 

गौरतलब है कि बीते चार साल से चीन और कनाडा के रिश्ते तनाव भरे हैं. कनाडा-अमेरिका पड़ोसी मुल्क हैं. कोई किसी का पिछलग्गू नहीं है, पर उनके रिश्ते स्वस्थ और खुले हैं. यूक्रेन के लिए संदेश यह है कि वह रूस की कोख से निकला है और उसका पड़ोसी है. फिर भी वह नाटो की गोद में बैठा हुआ है. यह पड़ोसी धर्म नहीं है. यकीनन वह एक संप्रभु देश है, लेकिन वह रूस के लिए खतरा क्यों बनना चाहता है? ऐसे में रूस के साथ उसके रिश्ते कभी सामान्य नहीं हो सकते. भारत और पाकिस्तान के संबंध सामान्य नहीं होने की एक बड़ी वजह यह भी है कि भारत को छोड़कर पाकिस्तान उन देशों से हाथ मिला रहा है, जो हिंदुस्तान के हितों के खिलाफ हैं.

एक और मुद्दे पर ग्रुप-20 के देश चिंतित थे. इन दिनों अमेरिका और चीन के संबंधों में कड़वाहट घुली हुई है. अमेरिका ताइवान को पूरी तरह संरक्षण दे रहा है. हालांकि यह अलग बात है कि वह यह दायित्व नि:शुल्क नहीं निभा रहा है. गरीब ताइवान को देर सबेर इसकी कीमत चुकानी होगी. ताइवान के साथ भारत, जापान तथा कुछ यूरोपीय देश भी खड़े हैं. चीन के लिए यह चेतावनी भी है. इस मसले पर क्या चर्चा हुई? कोई नहीं जानता. 

दरअसल कोविड का दौर अभी पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है. बेहतर होता कि सारी बड़ी शक्तियां आर्थिक रूप से इस चुनौती का सामना करने के लिए कोई संयुक्त घोषणापत्र जारी करतीं. इससे वैश्विक स्तर पर सभी देशों को आगे बढ़ने में मदद मिलती. लेकिन जब सब देश अपने-अपने हितों की संधियों में व्यस्त हों, तो सबकी चिंता कौन करता है. यह जी-20 ही नहीं, अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों के लिए भी विचार की घड़ी है.  वसुधैव कुटुंबकम ही अकेला रास्ता है.

Web Title: What world get from the G20 summit, Nothing, moment of thought now for all international organizations

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