विजय दर्डा का ब्लॉग: इतनी बुरी तरह क्यों जल रहा है फ्रांस...?
By विजय दर्डा | Published: July 10, 2023 07:33 AM2023-07-10T07:33:46+5:302023-07-10T07:33:46+5:30
बाहर से आए गैर-फ्रांसीसी दंगाई चाहते हैं कि फ्रांस की तहजीब को नष्ट कर दें. वहां के समाज को अपनी धौंस के कब्जे में ले लें. यह खतरनाक प्रवृति है.
आप सबके मन में यह सवाल जरूर पैदा हो रहा होगा कि जो फ्रांस अपनी शानदार संस्कृति, बेहतरीन कलात्मकता, उम्दा कलाकृतियों और लाजवाब साहित्य के लिए जाना जाता रहा है वह एक युवक की मौत के बाद इतना आगबबूला क्यों है? फ्रांस के शहरों में आगजनी की इतनी घटनाएं क्यों हो रही हैं? सरकारी संपत्ति क्यों जलाई जा रही है? इन हमलों को रोक पाने में पुलिस को सफलता नहीं मिल रही है. सैकड़ों की संख्या में पुलिस वाले घायल हुए हैं. यहां तक कि पेरिस जैसे महत्वपूर्ण शहर के बाहरी इलाके भी दंगाइयों के हमलों से अछूते नहीं हैं.
पेरिस की पहचान सदियों से ‘दुनिया की कला राजधानी’ के रूप में रही है. क्रांति के दौर की बात छोड़ दें तो इस शहर को शालीन शहर के रूप में जाना जाता है. इसे इसकी तहजीब के लिए पहचाना जाता है. मैं कई बार फ्रांस गया हूं. न केवल पेरिस बल्कि विभिन्न शहरों को करीब से देखा है. वहां के जनजीवन से मैं वाकिफ हूं इसलिए मुझे यह लगता है कि फ्रांसीसी मूल के लोग इस तरह के दंगे नहीं कर सकते. और यही सच्चाई भी है.
ज्यादातर आग फ्रांस के उन उपनगरीय इलाकों में लगी है जहां तंग बस्तियां हैं और बाहर के लोग आकर बसे हैं. बहुत से लोग दो पीढ़ियों से रह रहे हैं लेकिन हकीकत यह है कि उन्होंने फ्रांस की संस्कृति को अपनाया नहीं है और वहां के समाज पर अपनी धाक जमाना चाहते हैं. इनमें वो लोग भी शामिल हैं जिन्हें फ्रांस ने मानवाधिकार के नाम पर अपनी जमीन पर आश्रय दिया है. ऐसे लोग फ्रांस का ऋणी होने के बजाय उसकी संस्कृति पर ही हमला बोल रहे हैं. फ्रांस अपनी ही दिलदारी का खामियाजा भुगत रहा है.
जरा सोचिए कि किसी देश में एक युवक की मौत या हत्या हो जाए तो क्या अचानक इतना बड़ा दंगा भड़क जाएगा? पिछले महीने की 27 तारीख को अल्जीरियाई मूल के 17 साल के नाहेल को पुलिस ने ट्रैफिक सिग्नल पर रोका. पुलिस का कहना है कि वह नहीं रुका तो उसकी कार पर गोली चलानी पड़ी और वह मारा गया.
दरअसल 2017 में बना एक कानून फ्रांस की पुलिस को इस बात की इजाजत देता है कि कोई कार चालक रुकने का आदेश नहीं मानता तो उस पर गोली दागी जा सकती है. एक वायरल वीडियो के आधार पर पुलिस पर आरोप लगाया जा रहा है कि नाहेल को जानबूझ कर गोली मारी गई क्योंकि वह फ्रांसीसी मूल का नहीं था.
ऐसा आरोप लगाने वाले लोग तर्क देते हैं कि पिछले साल ऐसी ही घटनाओं में जो 13 लोग मारे गए वे सब गैर-फ्रांसीसी मूल के लोग थे. यहां तक कि जिन 138 कारों पर पुलिस ने फायरिंग की, उनमें से ज्यादातर लोग फ्रांसीसी मूल के नहीं थे. मैं किसी भी रूप में गोली चलाने का समर्थन नहीं करता लेकिन यह सवाल तो उठता ही है कि बाहर से आने वाले लोग फ्रांस के कानून क्यों तोड़ते हैं?
फिलहाल फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने इसे हत्या माना है और संबंधित पुलिस वाले को गिरफ्तार भी कर लिया गया है, इसके बावजूद दंगे नहीं रुक रहे हैं तो इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि वहां के अपराधियों के गैंग और छोटे अपराधियों के साथ वो लोग भी शामिल हो गए हैं जो फ्रांस को तबाह करने की नीयत रखते हैं. वैसे अलायंस पुलिस यूनियन ने राष्ट्रपति मैक्रों की आलोचना भी की है कि उन्होंने नाहेल को गोली मारने वाले पुलिस अधिकारी को कोर्ट का निर्णय होने के पहले ही कैसे हत्यारा मान लिया?
यदि आप फ्रांस के शहरों के आसपास की बसाहट का अध्ययन करें तो एक बात साफ उभर कर आती है कि इन इलाकों में शिक्षा के प्रति कोई रुझान नहीं है. इन इलाकों में करीब 50 लाख लोग रहते हैं. कुछ कई पीढ़ियों से रह रहे हैं तो कुछ हाल के वर्षों में आए हैं. इन इलाकों में अपराधियों के साथ पुलिस की मुठभेड़ होती रहती है.
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि हर साल सुरक्षा बल के पांच हजार से ज्यादा जवान घायल हो जाते हैं. दर्जनों सुरक्षाकर्मियों की मौतें भी हुई हैं. 2015 में भी इस तरह की घटना हुई थी. दो युवकों की मौत करंट लगने से हुई लेकिन उसके लिए भी पुलिस को दोषी मान लिया गया कि वह पीछा कर रही थी! उस समय निकोलस सरकोजी राष्ट्रपति थे और उन्होंने उन युवाओं को अपराधी कह दिया और चेतावनी दी थी कि अपराधियों को समाप्त कर दिया जाएगा. इसके बाद दंगे भड़क उठे थे.
इस बार मैक्रों की सरकार बैक फुट पर है और पुलिस पर ही कार्रवाई होने के बावजूद हालात बेकाबू हैं. फ्रांस के गृह मंत्री गेराल्ड डारमनिन ने ट्विटर पर जानकारी दी है कि प्रदर्शनकारियों ने देशभर के स्कूलों, टाउन हॉल और पुलिस स्टेशनों को निशाना बनाया है. कई कारें, सरकारी इमारतें नष्ट हो गई हैं. यह सब तब हो रहा है जब सुरक्षाबल के पैंतालीस हजार से ज्यादा जवान दंगे रोकने की कोशिश में लगे हैं.
अपराधी डर नहीं रहे बल्कि सुरक्षाकर्मियों पर हमले कर रहे हैं. पेरिस के उपनगरीय क्षेत्र लयले होज में मेयर के घर हमला किया. उनकी कार जला दी. मेयर की पत्नी और बच्चों ने भागने की कोशिश तो उन पर भी हमला किया.
फ्रांस की आग बेल्जियम में भी पहुंची लेकिन वहां की सरकार उस पर काबू पाने में सफल रही है. मैं यह मानता हूं कि मानवाधिकार के आधार पर दूसरे देशों के नागरिकों को कुछ हद तक अपने यहां जगह दी जानी चाहिए लेकिन यह जरूर खयाल रखना चाहिए कि जिन्हें बसाया जा रहा है, उनकी मानसिकता क्या है? फ्रांस ने इसी बात का ध्यान नहीं रखा जिसका खामियाजा उसे भुगतना पड़ा है. फ्रांस की स्थिति ऐसे सभी देशों के लिए एक सबक है! सतर्कता बहुत जरूरी है.