विजय दर्डा का ब्लॉग: बेलगाम ड्रैगन की नकेल कसना आसान नहीं
By विजय दर्डा | Published: September 6, 2020 02:53 PM2020-09-06T14:53:55+5:302020-09-06T16:26:49+5:30
दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था होने और सैन्य शक्ति ने चीन को बेलगाम कर दिया है. दैत्य की तरह वह सबको निगल जाने की कोशिश में है. दुनिया में कोरोना फैलाने का आरोप तो वह झेल ही रहा है, अब वहां से विभिन्न देशों को रहस्यमयी बीज भेजे जा रहे हैं. बड़ा सवाल है की चीन की नकेल आखिर कसी कैसे जाए?
पौराणिक कथाओं में आपने कालिया नाग के बारे में पढ़ा होगा. जिस कुंड में वह रहता था वह इतना विषैला हो गया था कि उसके ऊपर से गुजरने वाले पशु-पक्षी भी मर जाया करते थे. उसके विष से यमुना भी विषैली हो गई तो भगवान कृष्ण उस कुंड में कूदे. कालिया नाग के सौ सिर थे. कृष्ण ने उसे कुचल दिया तब जाकर कालिया नाग को अपनी गलतियों का एहसास हुआ. आज के संदर्भ में देखें तो चीन बिल्कुल कालिया नाग की तरह पूरी दुनिया को गुलाम बनाना चाहता है.
दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था के साथ ही वह परमाणु बम और जैविक हथियार जैसे नरसंहार के सभी संसाधनों से लैस है. उसके यहां इंसानी जीवन या इंसानी अधिकारों का कोई वजूद ही नहीं है. 1989 में लोकतंत्र की मांग करने वाले हजारों युवाओं को उसने तोपों से उड़ा दिया था और टैंक से कुचल डाला था. ऐसा देश यदि अपनी मगरूरी में अपने एक लाख सैनिकों की जान भी गंवा दे तो उसे क्या फर्क पड़ेगा? लेकिन क्या अमेरिका, जापान या भारत जैसे लोकतांत्रिक देश ऐसा सोच भी सकते हैं? नहीं सोच सकते क्योंकि हम मानवीय जीवन और मानवीय मूल्यों की कदर जानते हैं. चीन ठीक उल्टा है. जियो और जीने दो में तो उसका कोई विश्वास ही नहीं है. मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघर पर उसने बैन लगा रखा है. भगवान बुद्ध को भी उसने अपने यहां से विदा कर दिया है. छल और कपट उसकी रग-रग में भरा हुआ है.
चीन खुले रूप से दे रहा है आतंकवादियों का साथ
भारत के साथ एक ओर बातचीत का ढोंग करता है तो दूसरी ओर सीमा पर हमारी जमीन हड़पने का खूनी खेल खेलता है. रूस में हमारे रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से बातचीत करता है तो अगले ही दिन धौंस देता है कि एक इंच भी जमीन नहीं छोडूंगा. उसकी प्रवृत्ति चालाक और कुटिल राक्षस जैसी है. सवाल है कि ऐसे देश पर कैसे काबू पाया जाए.यहां मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि चीन के नागरिकों से हमारा कोई विरोध नहीं है. वे तो मेरे मित्र हैं. मैं तो उनके लिए चिंतित रहता हूं कि पीपुल्स पार्टी ऑफ चाइना की तानाशाही ने वहां के लोगों की जिंदगी को नरक बना दिया है. टेलीविजन और अखबार का दमन कर दिया है ताकि सच्ची खबरें चीनी नागरिकों तक पहुंचें ही नहीं. मेरा विरोध तो उस राक्षसी प्रवृत्ति वाली सरकार से है जिसने दस लाख से ज्यादा वीगर मुसलमानों को जेल में कैद करके रखा है. जिसने दुनिया के छोटे देशों को बेतहाशा कर्ज बांट कर अपनी चपेट में ले लिया है.
सवाल यह है कि इन देशों को उसकी चपेट से कौन बचाएगा? कर्ज में डूबे इन देशों की मजबूरी है कि वे उसका साथ दें. ऐसी स्थिति में चीन से बड़े देश कैसे लड़ पाएंगे? इस वक्त दुनिया के कम से कम 100 देशों में लोकतंत्र का चोला पहनकर तानाशाह बैठे हैं जो चीन की गोद में खेल रहे हैं. चीन तो खुले रूप से आतंकवादियों का साथ दे रहा है. हम सिक्योरिटी कौंसिल में हाफिज सईद को आतंकवादी घोषित करवाना चाहते हैं तो चीन वीटो लगा देता है. ऐसे चीन से लड़ना क्या आसान काम है?
चीन ने यूरोप से लिया पंगा
कमाल की बात यह है कि पूरी दुनिया में चीन के खिलाफ माहौल बना हुआ है इसके बावजूद चीन सबको आंखें दिखा रहा है. अमेरिका से उसकी ठनी हुई है. ताइवान को वह तिब्बत की तरह हड़पना चाह रहा है. जापान से लड़ रहा है. साउथ चाइना सी और रेड सी में उत्पात मचा रहा है. इधर भारतीय सरहद पर जंग जैसे हालात पैदा कर दिए हैं. भारत संयम से काम ले रहा है अन्यथा अभी तक जंग तो शुरू हो गई होती. चीन ने यूरोप से पंगा ले रखा है, आॅस्ट्रेलिया के साथ भी यही हाल है. हांगकांग के मुद्दे पर उसने ब्रिटेन के साथ समझौते का सीधे तौर पर उल्लंघन किया लेकिन कोई हांगकांग को बचा नहीं पाया.चीन की हरकतों का एक नया मामला और आया है.
‘चाइना पोस्ट’ नाम की संस्था की तरफ से अमेरिका के विभिन्न राज्यों में बहुत से लोगों को बिन बुलाए पैकेट्स मिले जिसके ऊपर लिखा था ‘ऑर्नामेंट्स ’. लोगों ने जब इसे खोला तो उसमें कई तरह के बीज थे. जैसे ही अमेरिकी सरकार को यह पता चला, उसने इन बीजों का इकट्ठा करना शुरू किया और लोगों से कहा कि वे इसे न बोयें. इसके बाद इसी तरह के पैकेट्स और भी देशों को मिले हैं. बीते सप्ताह भारत ने भी इसे लेकर एडवाइजरी जारी की है. लेकिन यह समझना मुश्किल है कि बीज वाले पैकेट्स दूसरे देशों तक पहुंचे कैसे? क्योंकि एक देश से दूसरे देश में कोई बीज या प्लांट ले जाने की अनुमति होती ही नहीं है. इस मामले में चीन ने चुप्पी साध ली है. केवल इतना कहा है कि वह मामले की जांच कर रहा है.
चीन पर दुनिया लगाम कैसे लगाएगी?
आपको ध्यान होगा कि अमेरिका से जब हमारे यहां भुखमरी के दौर में लाल गेहूं आया था तब उसके साथ गाजर घास के बीज भी आ गए थे. आज हमारी लाखों हेक्टेयर जमीन में हर साल गाजर घास के कारण कोई पैदावार नहीं हो पाती है. चीन की इस हरकत से ऐसा लगता है कि वह दुनिया के दूसरे देशों की उपजाऊ जमीन को नष्ट कर देना चाहता है. यह गुपचुप तरीके से जैविक युद्ध का एक रूप है.
मुझे तो समझ में नहीं आता कि बेलगाम होते जा रहे चीन पर दुनिया लगाम कैसे लगाएगी? मैं बधाई देना चाहता हूं अमेरिका को जिसने उसके साथ काफी हद तक कारोबार बंद कर दिया है. भारत ने भी चीनी एप्स पर पाबंदी के साथ और कुछ कदम उठाए हैं लेकिन क्या इन सबसे चीन सुधरेगा? मुझे तो नहीं लगता कि वह आसानी से सुधरेगा! इसके लिए जरूरी है कि दुनिया के शक्तिशाली राष्ट्र अपने सारे मतभेद भुलाकर एकजुट हों और चीन की नकेल कसें.