ब्लॉग: चीन-अमेरिका की निकटता में हैं कई रोड़े

By राजेश बादल | Published: November 22, 2023 10:46 AM2023-11-22T10:46:20+5:302023-11-22T10:46:27+5:30

यूरोपियन यूनियन का साथ होते हुए भी वे यूक्रेन और रूस की जंग में रूस को पटखनी नहीं दे पाए हैं। चीन के प्रति उनके आक्रामक होने का यह भी एक कारण है।

There are many obstacles in the proximity of China and America | ब्लॉग: चीन-अमेरिका की निकटता में हैं कई रोड़े

फाइल फोटो

समीकरण बदलते नजर आ रहे थे। दो ध्रुवों के रिश्तों में जमी बर्फ कुछ-कुछ पिघलने का संकेत दे रही थी, जब चीन और अमेरिका के राष्ट्रपति मिले। जो बाइडेन ने दुनिया को बताया कि वे चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ अब तक अड़सठ घंटों तक बतिया चुके हैं।

पहले वे अमेरिका के उपराष्ट्रपति थे तो चीन के साथ संबंधों को लेकर उन पर बड़ी जिम्मेदारी थी लेकिन सेन फ्रांसिस्को की शिखर बैठक के बाद घटनाक्रम कुछ ऐसा बदला कि दोनों देशों के संबंधों में फिर फासला बनता दिखाई देने लगा। कोविड काल और रूस और यूक्रेन के बीच जंग से दोनों देशों के बीच जो दूरी बनी थी, वह कम होने के बजाय और बढ़ती जा रही है।

अमेरिका और चीन वास्तव में अपने रिश्तों में गिरावट के ऐतिहासिक बिंदु पर पहुंच चुके हैं। इसलिए दोनों राष्ट्रपतियों की शिखर वार्ता से भविष्य की संभावनाओं के कई द्वार खुलते तो हैं, लेकिन अभी भी कई अड़चनें सामने हैं. अनेक देशों को भी अपनी विदेश नीति का पुनरीक्षण करना होगा, जो जब भी अमेरिका चाहता है तो चीन के साथ संबंध बिगाड़ लेते हैं और जब अमेरिका चाहता है तो रिश्ते सुधर जाते हैं।

अब इन यूरोपीय देशों को भी महसूस होने लगा है कि वे लंबे समय तक अमेरिका के पिछलग्गू बनकर नहीं रह सकते। दरअसल जो बाइडेन और शी जिनपिंग एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग (एपेक) सम्मेलन में शिरकत करने पहुंचे थे। इसी सम्मेलन के दौरान भाषणबाजी से पहले दोनों नेताओं के बीच चार घंटे अलग से गुफ्तगू होती रही। एपेक इक्कीस देशों का चौंतीस साल पुराना संगठन है। इसका उद्देश्य एशिया प्रशांत क्षेत्र के देशों के बीच आर्थिक सहयोग और विकास को रफ्तार देना है।

हालांकि कूटनीतिक जानकार इससे बहुत उत्साहित नहीं दिखाई देते। वे कह रहे हैं कि शिखर वार्ता के समानांतर दोनों मुल्कों के बीच असहमतियों के तीखे सुर भी सुनाई दे रहे थे। सबसे बड़ा सबूत तो यही है कि इस वार्ता के बाद ही जो बाइडेन ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को तानाशाह बता दिया। इससे अमेरिका में ही बाइडेन के कथन पर सवाल खड़े होने लगे।

विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन को राष्ट्रपति के बचाव में आगे आना पड़ा। ब्लिंकन ने कहा कि यह जरूरी नहीं है कि अमेरिका वही कहे, जो चीन को पसंद आए। वह असहमति के अधिकार को सुरक्षित रखता है और आइंदा भी ऐसा करता रहेगा. ब्लिंकन ने तो यहां तक कहा कि चीन भी चाहे तो ऐसा करे. उससे अमेरिका को कोई परेशानी नहीं होगी।

आपको याद होगा कि जून के महीने में भी बाइडेन ने शी जिनपिंग को तानाशाह कहा था। चीनी विरोध के बावजूद वे अपने बयान पर कायम रहे। चीन ने कहा कि बाइडेन का बयान घोर आपत्तिजनक है। वह कभी भी प्रतिस्पर्धा की भावना नहीं रखता। अमेरिका को भी यही रवैया रखना चाहिए। चीनी राष्ट्रपति ने स्वीकार किया कि अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण चीन के जायज हितों को चोट पहुंची है।
देखने में यह भावना लोकतांत्रिक तो लगती है, मगर उसके संकेत यह भी मिलते हैं कि चार घंटे की बैठक में अनेक बिंदुओं पर गंभीर मतभेद भी हैं।

इनमें एक कारण का खुलासा तो खुद जो बाइडेन ने एपेक शिखर सम्मेलन में अपने संबोधन में ही कर दिया। उन्होंने कहा कि शी जिनपिंग से मुलाकात का मकसद किसी तरह की गलतफहमी को जन्म लेने से पहले ही रोकना है। इस कड़ी में अमेरिका और चीन ने अपने टूटे हुए सैनिक संचार को फिर बहाल करने का फैसला किया है. यह सैनिक संचार पिछले साल अगस्त में चीन ने भंग कर दिया था। ऐसा करने के पीछे अमेरिका के हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव की स्पीकर नेंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा थी।

चीन इसके विरोध में था। उसने अमेरिका के साथ सारे सैनिक संचार समाप्त कर दिए थे। इसके बाद अमेरिका ने दस महीने पहले अपने आकाश में उड़ता हुआ एक गुब्बारा नष्ट कर दिया था और चीन पर जासूसी का आरोप लगाया था।

लेकिन प्रशांत क्षेत्र में प्रभुत्व, तिब्बत हांगकांग में मानव अधिकार के उल्लंघन और शिनजिआंग के उइगर मुसलमानों के साथ यातनापूर्ण व्यवहार और दमन के मुद्दे पर अमेरिका और चीन के बीच मतभेद बने हुए हैं। जो बाइडेन ने कहा कि भले ही चीन ने इस पर खुलकर प्रतिक्रिया प्रकट नहीं की लेकिन उसने स्पष्ट कर दिया है कि प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका अपने राष्ट्रीय हितों के साथ कोई समझौता नहीं करेगा और अपनी ताकतवर हाजिरी बनाए रखेगा।

असल में जो बाइडेन के सामने एक आंतरिक चुनौती भी है। राष्ट्रपति चुनाव की सरगर्मियां अब तेज हो रही हैं और जो बाइडेन अपने मतदाताओं के सामने कमजोर छवि लेकर नहीं जाना चाहते। रिपब्लिकन उन पर आरोप लगा रहे हैं कि राष्ट्रपति चीन के सामने कमजोर पड़ रहे हैं। यह भी कहा जा रहा है कि वे पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की तुलना में चीन के प्रति नरम हैं और ट्रम्प कहीं ज्यादा आक्रामक थे। बाइडेन के लिए चिंता का सबब यह भी है कि डोनाल्ड ट्रम्प इस बार बेहद आक्रामक तैयारी के साथ राष्ट्रपति चुनाव लड़ सकते हैं।

यही वजह है कि बाइडेन तानाशाह वाली अपनी टिप्पणी को वापस नहीं लेना चाहते। इस बार जो बाइडेन की लोकप्रियता अमेरिका में घटी है। जनधारणा यह बनती जा रही है कि वे अमेरिका को दुनिया का चौधरी बनाए रखने में नाकाम रहे हैं। यूरोपियन यूनियन का साथ होते हुए भी वे यूक्रेन और रूस की जंग में रूस को पटखनी नहीं दे पाए हैं। चीन के प्रति उनके आक्रामक होने का यह भी एक कारण है। अब तो यूरोपियन यूनियन के अंदर भी रूस-यूक्रेन की जंग के मामले में मतभेद सामने आने लगे हैं। यह बाइडेन के लिए शुभ संकेत नहीं माना जा सकता।

Web Title: There are many obstacles in the proximity of China and America

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