शोभना जैन का ब्लॉग: अमेरिका-तालिबान समझौता कारगर होगा?

By शोभना जैन | Published: March 1, 2020 07:37 AM2020-03-01T07:37:29+5:302020-03-01T07:37:29+5:30

अमेरिका ने पहली बार तालिबान से जुड़े किसी मामले में बातचीत के लिए भारत को आधिकारिक तौर पर न्यौता दिया. निश्चित तौर पर इस समझौते के भारत पर सामरिक, तथा राजनीतिक परिणाम होंगे.

Shobhana Jain Blog: Will the US-Taliban Agreement Work? | शोभना जैन का ब्लॉग: अमेरिका-तालिबान समझौता कारगर होगा?

शोभना जैन का ब्लॉग: अमेरिका-तालिबान समझौता कारगर होगा?

अब जबकि लगभग दो वर्ष की मंत्नणा और जद्दोजहद के बाद अमेरिका और तालिबान के बीच अहम शांति समझौता हो गया है, भारत ने समझौते से अपने पर पड़ने वाले दूरगामी परिणामों  को लेकर अपनी तमाम चिंताओं, आशंकाओं के बावजूद आधिकारिक रूप से पहली बार तालिबान के साथ सीधे तौर पर संपर्क शुरू किया है. कतर में भारत के राजदूत पी. कुमारन ने इस समारोह में भारत का आधिकारिक प्रतिनिधित्व किया. 

अमेरिका ने पहली बार तालिबान से जुड़े किसी मामले में बातचीत के लिए भारत को आधिकारिक तौर पर न्यौता दिया. निश्चित तौर पर इस समझौते के भारत पर सामरिक, तथा राजनीतिक परिणाम होंगे. भारत ने अफगानिस्तान की नई स्थितियों को समझते हुए साझी संस्कृति और ऐतिहासिक संबंधों वाले अपने पुराने परंपरागत मित्न देश के अतिवादी गुट ‘तालिबान’ के साथ एक नई उम्मीद और अफगान जनता की उम्मीदों को समर्थन देते हुए पहली बार आधिकारिक संपर्क शुरू किया. अफगानिस्तान में शांति और सुलह प्रक्रि या का भारत एक अहम पक्षकार रहा है. 

इस समझौते को लेकर अनेक सवाल हैं- क्या समझौता समय की कसौटी पर खरा उतरेगा? क्या वहां अफगान नीत और  अफगान वर्चस्व वाली शांति सुलह प्रक्रि या बन सकेगी, जो वहां की जनता की इच्छा के अनुरूप हो जिससे अफगानिस्तान में स्थायी शांति हो सकेगी? क्या इस समझौते के बाद वहां आतंक के अड्डे खत्म हो सकेंगे? हाल ही में वहां दोबारा निर्वाचित राष्ट्रपति अशरफ गनी की सरकार का क्या भविष्य होगा?  

क्या अमेरिका पिछले 19 वर्ष से वहां तैनात अपनी फौजों को हटाने की प्रक्रिया शुरू करेगा, जो कि इस समझौते का असली अमेरिकी मकसद है? समझौते के फौरन बाद वह एकाएक अपनी फौजें तो वहां से नहीं हटा लेगा, जिससे वहां अव्यवस्था और बढ़ जाए? और  भारत के लिए समझौते से जुड़ा सबसे बड़ा सवाल इस समझौते को लेकर उसकी जो चिंताएं और आशंकाएं हैं, क्या उनका समाधान हो सकेगा?

वस्तुत: पाकिस्तान जिस तरह से  तालिबान को दशकों से अपनी जमीन पर पालता-पोसता रहा है और  भारत जिस तरह से पाक समर्थित सीमा पार आतंकवाद का शिकार बना हुआ है, उसमें भारत की चिंताएं बहुत स्वाभाविक हैं. समझौते के बाद तालिबानी आतंकियों के पाकिस्तान की सीमा के जरिए भारत में घुसपैठ करने की आशंका कई एजेंसियां जता चुकी हैं. भारत  चाहता है कि समझौते से अफगानिस्तान में स्थायी शांति के साथ-साथ ऐसी प्रक्रिया बने जिससे अफगानिस्तान में कहीं भी ऐसी जगह दोबारा नहीं बन पाए जिससे आतंकी/उन्हें शह देने वाली ताकतें फिर से सक्रिय हो जाएं. अगर वहां आतंकी  हक्कानी नेटवर्क, अलकायदा, पाकिस्तान स्थित लश्करे तैयबा, आईएस, जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी गुट फिर से अधिक सक्रिय होते हैं तो आतंक बढ़ेगा और  व्यवस्था कायम करने के प्रयासों की बजाय अव्यवस्था बढ़ेगी. 

पिछले अनुभव देखते हुए भारत को इस बात की आशंका है कि अगर समझौते के बाद तालिबान की सरकार वहां बनती है, तो इससे भारत पर प्रतिकूल असर पड़ेगा. तालिबान की पूरी कोशिश है कि वह समझौते से सत्ता में आए. पाकिस्तान भी चाहता है कि वहां उसके सांठगांठ वाली तालिबान की सरकार बने. भारत नहीं चाहेगा कि तालिबान जैसा कोई भी आतंकी संगठन अफगानिस्तान में अपनी सरकार बनाए. जबकि हकीकत यही है कि इस समझौते के पीछे तालिबान का पूरा मकसद अफगानिस्तान में दोबारा सरकार कायम करना है. 

इसमें उसकी मदद पाकिस्तान भी कर रहा है. पाकिस्तान चाहता है कि अफगानिस्तान में तालिबान की हुकूमत कायम हो. तालिबान और पाकिस्तान के बीच नजदीकियां इसी बात से पता चलती हैं कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्नी इमरान खान भी समझौते के दौरान दोहा में मौजूद थे. गौरतलब है कि  इससे पहले जब अफगानिस्तान में तालिबान ने अपनी सरकार बनाई थी तब केवल पाकिस्तान ने ही उसको मान्यता दी थी. तालिबान ने 1996 से 2001 तक अफगानिस्तान पर शासन किया था, लेकिन भारत ने कभी उसकी सरकार को मान्यता नहीं दी थी. भारत-अफगानिस्तान संबंधों की बात करें तो वह वहां बहुत विकास कार्यक्र म चला रहा है, दशकों के गृह युद्ध से ध्वस्त अफगानिस्तान में भारत पुनर्निर्माण परियोजनाएं चला रहा है. इसके अलावा विकास से जुड़ी कई परियोजनाएं अफगानिस्तान में चल रही हैं, समझौते के बाद उन सब पर पड़ने वाले असर को लेकर भी भारत आशंकित है.

काबुल में विदेश मंत्नी एस. जयशंकर और अफगानिस्तान के विदेश मंत्नी की समझौते पर दस्तखत से ठीक पहले मुलाकात भी इस तमाम संदर्भ में अहम है. वर्तमान अफगान सरकार के साथ-साथ अफगान जनता के साथ भी भारत की जनता के बेहद सौहाद्र्रपूर्ण निकट संपर्क हैं. पूर्व राजदूत अनिल त्रिगुणायत के अनुसार भारत को समझौते के बाद के घटनाक्र म में अपनी भूमिका खासी मुस्तैदी से निभानी होगी, यह तय है कि पाकिस्तान  अफगानिस्तान में शांति स्थापित होने की स्थित में भी भारत की कोई  भूमिका  बनने  नहीं देगा लेकिन अफगानिस्तान में भले ही किसी की भी सरकार हो, भारत की गैर-हस्तक्षेपकारी नीति के चलते अफगानिस्तान से उस के सौहार्द्रपूर्ण संबंध बने रहेंगे.

Web Title: Shobhana Jain Blog: Will the US-Taliban Agreement Work?

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