हेमधर शर्मा ब्लॉग: बारूद के ढेर पर बैठी दुनिया और महाविनाश का इंतजार

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: October 9, 2024 06:42 IST2024-10-09T06:41:54+5:302024-10-09T06:42:02+5:30

अब हम शायद विकास की उस चरम सीमा तक पहुंच गए हैं जहां एक छोटी सी गलतफहमी भी सबकुछ तबाह कर डालने के लिए काफी है। 

russia ukraine The world is sitting on a pile of gunpowder and waiting for the great destruction | हेमधर शर्मा ब्लॉग: बारूद के ढेर पर बैठी दुनिया और महाविनाश का इंतजार

हेमधर शर्मा ब्लॉग: बारूद के ढेर पर बैठी दुनिया और महाविनाश का इंतजार

किसने सोचा था कि रूस-यूक्रेन युद्ध ढाई साल से भी ज्यादा लम्बा खिंच जाएगा और इजराइल के हृदय में लगी हमास से बदला लेने की आग एक साल बाद भी ठंडी नहीं होगी! अब तो इसमें ईरान की एंट्री ने दुनिया को दिल थाम कर बैठने के लिए मजबूर कर दिया है। दुनिया बारूद के ऐसे ढेर पर बैठी है, जहां एक छोटी सी चिंगारी भी सबकुछ खाक कर सकती है। द्वितीय विश्वयुद्ध ने जो विनाशलीला रचाई थी, उसे देखकर ही दुनियाभर के देशों ने संयुक्त राष्ट्र संघ का गठन किया था। एक ऐसी संस्था, जो सभी देशों के बीच विचार-विमर्श का माध्यम बने और विश्वयुद्ध जैसी परिस्थितियों को बनने से रोका जा सके। लेकिन जिन लोगों ने विश्वयुद्ध देखा था, वे अब बचे नहीं हैं और जो तांडव मचाने पर आमादा हैं, उन्होंने विनाशलीला देखी नहीं है।

हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए जाने के बाद विकिरण ने जो दिल दहलाने वाला मंजर पेश किया, उसी ने जापान को यह संकल्प लेने पर मजबूर किया था कि वह परमाणु बम नहीं बनाएगा और दुनिया के विकसित देशों में शामिल होने के बावजृूद आज भी उसके पास परमाणु बम नहीं हैं। 

दुनिया में राजतंत्रों का जमाना लाख बुरा रहा हो, उनमें एक अच्छाई जरूर थी कि लड़ाई के दौरान राजा या राज्य प्रमुख अपनी सेना के आगे-आगे चलते थे। लोकतंत्र में युद्धों के दौरान जनसेवक (शासक) सबसे पीछे अर्थात सबसे सुरक्षित जगह पर रहते हैं।  सपने देखने वाले और बेचने वाले में जितना फर्क होता है, उतना ही शायद युद्ध लड़ने वाले और लड़वाने वाले में होता है।  एक गांधीजी ही थे, जो धधकती सांप्रदायिक आग के बीच भी बेधड़क घुस जाते थे और उसे ठंडी करके ही दम लेते थे।  हालांकि सुरक्षा नहीं लेने के इसी निश्चय ने उनकी जान भी ली, लेकिन सुरक्षा में रहकर शायद वे उस काम का एक-चौथाई भी न कर पाते, जितना उन्होंने निर्भय रहकर किया। 

इसमें दो मत नहीं कि युद्धों से आम आदमी की होने वाली दुर्दशा का वास्तविक अनुभव जिस शासक को हो, वह अपने देश को युद्ध की आग में झोंकने से पहले सौ बार सोचेगा।  शायद एक अच्छा मनुष्य बने बिना, सिर्फ राजनीतिक पैंतरों या धनबल-बाहुबल से किसी भी देश का शासक बनने की योग्यता लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाती है।  राजतंत्र में, राजकुमारों को भावी राजा बनाने के लिए हर तरह की विद्या में पारंगत किया जाता था, जनता के दु:ख-दर्द को महसूस करना सिखाया जाता था। 

ऐसे अनेक राजाओं के किस्से मशहूर हैं जो जनता का मनोभाव जानने के लिए वेश बदल कर उसके बीच जाते थे। अब नेता और जनता दो अलग-अलग दुनियाओं में रहते हैं।  नेता लड़ाते हैं और जनता लड़ती है। 

युद्ध तो दुनिया में हमेशा से होते रहे हैं लेकिन विनाश के संसाधन कभी इतने परिष्कृत नहीं हुए थे कि समूची मानव जाति को ही खत्म कर डालें।  अब हम शायद विकास की उस चरम सीमा तक पहुंच गए हैं जहां एक छोटी सी गलतफहमी भी सबकुछ तबाह कर डालने के लिए काफी है।  क्या दुनिया को तबाह होते देखने के लिए दिल थाम कर बैठे रहने के अलावा हमारे पास कोई उपाय नहीं है?

Web Title: russia ukraine The world is sitting on a pile of gunpowder and waiting for the great destruction

विश्व से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे