राजेश बादल का ब्लॉग: अभी भी इमरान खान की राह आसान नहीं

By राजेश बादल | Published: March 9, 2021 10:33 AM2021-03-09T10:33:24+5:302021-03-09T10:33:24+5:30

पाकिस्तान के संसद में इमरान खान ने विश्वास मत हासिल कर भले ही सरकार बचा ली हो लेकिन उनके लिए मुश्किलें और बढ़ी हुई दिखाई दे रही हैं.

Rajesh Badal's blog: Pakistan Imran Khan path still not easy | राजेश बादल का ब्लॉग: अभी भी इमरान खान की राह आसान नहीं

पाकिस्तान में इमरान खान की बढ़ती मुश्किलें (फाइल फोटो)

Highlightsइमरान खान की अपनी ही पार्टी में असंतुष्ट धड़े सामने आने लगे हैं, भविष्य में और बढ़ेगी मुश्किलइमरान खान के पाकिस्तान चुनाव आयोग पर टिप्पणी से भी बढ़ सकती हैं मुश्किलेंफौज नेतृत्व भी मानने लगा है कि इमरान खान असफल प्रधानमंत्री साबित हुए हैं

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने विश्वास मत हासिल करने के साथ ही अनेक मोर्चे एक साथ खोल लिए हैं. संयुक्त विपक्ष के आंदोलन का मुकाबला तो वे पहले ही कर रहे थे. अब उन्होंने अपनी ही पार्टी में एक असंतुष्ट धड़े को जन्म दे दिया है. 

उनका आरोप है कि इस धड़े ने पैसे लेकर अपनी ही पार्टी के उम्मीदवार हाफिज शेख के खिलाफ वोट दिया. इससे संयुक्त विपक्ष के प्रत्याशी को जीत मिली. यह असंतुष्ट धड़ा आने वाले दिनों में उनकी मुसीबत का सबब बन सकता है. 

इसके अलावा पाकिस्तान चुनाव आयोग से भी प्रधानमंत्री ने रार ठान ली है. संसद में भाषण के दरम्यान उन्होंने जिस तरीके से चुनाव आयोग पर हमला किया, उससे मुल्क के सियासी जानकार भी हैरान हैं. लेकिन इमरान खान के यह सारे मोर्चे तो दिखाई देने वाले हैं. 

पाकिस्तान की फौज बनेगी इमरान के लिए खतरा

नजर नहीं आने वाला असली मोर्चा तो उन्होंने पाकिस्तानी फौज के साथ खोला है. यही उनके लिए सबसे बड़ा राजनीतिक खतरा बन सकता है. कहा जा सकता है कि पाकिस्तान के लिए आने वाले दिन बेहद मुश्किल भरे हैं. लेकिन वहां से आ रही एक कहानी भी चौंकाने वाली है. 

राजनीतिक पंडितों के मुताबिक इस कहानी की पटकथा पर्दे के पीछे लिखी गई थी. इसका मुख्य मकसद मुल्क में जम्हूरियत बचाना था. इस नाते अगर पक्ष और विपक्ष एक प्लेटफॉर्म पर आकर खड़े हो गए तो इसका भी स्वागत किया जाना चाहिए. 

दरअसल विपक्ष ने प्रधानमंत्री इमरान खान के खिलाफ जब अभियान छेड़ा था, तब वह वास्तव में इमरान खान को हटाना चाहता था. 

सीनेट के लिए जब संयुक्त विपक्ष के उम्मीदवार और पूर्व प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी ने इमरान खान के प्रत्याशी हाफिज शेख को शिकस्त दी, तब भी प्रतिपक्षी मोर्चे का मकसद उन्हें सत्ता से बाहर करना ही था. लेकिन बाद में सारी कहानी उलट गई सी लगती है. 

विश्वास मत में यदि इमरान खान हार जाते तो वे विपक्ष में बैठने की योजना बना चुके थे. इसका उन्होंने बाकायदा ऐलान भी कर दिया था. तब संयुक्त विपक्ष के किसी उम्मीदवार को प्रधानमंत्री पद के लिए पेश किया जाता. 

वह आसिफ अली जरदारी के बेटे बिलावल भुट्टो जरदारी या पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की बेटी मरियम नवाज हो सकती थीं. दोनों नौजवान हैं और सियासत में सेना की सक्रिय भूमिका के खिलाफ हैं. ऐसी स्थिति में उनकी लंबी पारी खेलने की संभावना नकारी नहीं जा सकती थी. 

यही बात पाकिस्तानी सेना को नागवार थी. वह ऐसा कोई मुखिया देश में नहीं चाहती, जो सेना को उसके दड़बे में बंद कर दे. सूत्रों की मानें तो फौज और आईएसआई ने इसी वजह से एक बार फिर सत्ता संभालने की योजना बना ली थी. 

पाक फौज भी मानने लगी है- इमरान खान असफल प्रधानमंत्री

इमरान खान असफल प्रधानमंत्री साबित हुए हैं. फौजी नेतृत्व भी अब यह मानने लगा है. सेना उन पर अधिक दांव नहीं लगा सकती थी. वह तो प्रसन्न थी कि बिना उसके कुछ किए ही विपक्ष का आंदोलन इमरान को गद्दी से उतार सकता है. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. 

हारते-हारते इमरान जीत गए. अगर इमरान हार जाते तो सेना का खुफिया मिशन तैयार था. इसके तहत इमरान खान के विश्वास मत हारते ही जनरल बाजवा को सत्ता हथियानी थी. जनरल बाजवा को देश के नाम संदेश में अवाम को भरोसा दिलाना था कि शीघ्र ही देश में नए चुनाव कराए जाएंगे. तब तक पाकिस्तान सेना के शासन में रहेगा. 

पाकिस्तानी जानकारों के विश्लेषण पर भरोसा करें तो सेना के इस मिशन की भनक विपक्ष को लग गई थी और उसने संसद में विश्वास मत के दरम्यान गैरहाजिर रहकर इमरान खान की सरकार को बचाने की गुप्त रणनीति बनाई. 

विपक्ष के नेताओं, खासकर नवाज शरीफ की पार्टी को आशंका थी कि इमरान के हटते ही सेना फिर आ गई तो इतिहास अपने को दोहरा सकता है. फिर जनरल बाजवा न तो चुनाव होने देंगे और न ही नवाज शरीफ कभी भी लंदन से स्वदेश लौट सकेंगे. इसके अलावा गणतंत्र बचेगा या नहीं? चुनाव कब होंगे? कैसे होंगे? ये सवाल भी विपक्ष को परेशान करने लगे थे. 

इसलिए देश में किसी भी हाल में लोकतंत्र बचाने के लिए विपक्ष ने इमरान की अल्पमत सरकार को बचाने का निर्णय लिया. यह सूचना बाकायदा इमरान खान तक पहुंचा दी गई. इस जवाबी योजना को भी गुप्त रखा गया था. संसद के बाहर विपक्षी नेताओं के साथ दुर्व्यवहार भी इस समानांतर पटकथा का हिस्सा था. 

इसका मकसद फौज को भ्रम में रखना था. फौज इस अप्रत्याशित नाटकीय परिवर्तन के लिए तैयार नहीं थी. उसने सोचा भी नहीं था कि विपक्ष संपूर्ण यूटर्न ले लेगा. विपक्ष को सेना के इस खुफिया मिशन में चुनाव आयोग के भी शामिल होने की भनक लगी थी. 

यही कारण था कि प्रधानमंत्री इमरान ने अपने भाषण में चुनाव आयोग को आड़े हाथों लिया. आप कह सकते हैं कि देश को फौजी तानाशाही से बचाने के लिए दो अलग-अलग छोर पर खड़े पक्ष-प्रतिपक्ष ने हाथ मिलाया और देश में लोकतंत्र को बचा लिया.

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