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रहीस सिंह का ब्लॉगः आखिर इतना आक्रामक क्यों हो रहा है चीन ?

By रहीस सिंह | Updated: August 6, 2022 13:30 IST

अब सवाल यह उठता है कि नैंसी की इस यात्रा से क्या एशियाई भू-राजनीति में नई चुनौतियों और टकरावों का दौर आरंभ होगा? क्या इस एशियाई द्वीप को लेकर यूक्रेनी पटकथा दोहराई जा सकती है?

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चीन की कम्युनिस्ट सरकार लंबे समय से इस प्रतीक्षा में थी कि कोई वैसा ही अवसर हाथ लगे जैसा कि रूस को यूक्रेन में लगा था। शायद शी जिनपिंग और उनका कम्युनिस्ट कुनबा नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा को वैसे ही अवसर के रूप में देख रहा है। ध्यान रहे कि विगत 25 वर्षों में अमेरिकी स्पीकर ऑफ द हाउस की यह पहली यात्रा है जिसे ताइवान-अमेरिका संबंधों की दृष्टि से तो महत्वपूर्ण माना ही जा सकता है साथ ही चीन-ताइवान-अमेरिका संबंधों में आने वाले विसंयोजनों की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण माना जाना चाहिए। इसकी झलक दिख भीरही है।

अब सवाल यह उठता है कि नैंसी की इस यात्रा से क्या एशियाई भू-राजनीति में नई चुनौतियों और टकरावों का दौर आरंभ होगा? क्या इस एशियाई द्वीप को लेकर यूक्रेनी पटकथा दोहराई जा सकती है? क्या यूक्रेन मुद्दे पर जिस प्रकार की बॉन्डिंग मॉस्को और बीजिंग के बीच दिखी और वॉशिंगटन अपने मित्रों के साथ अपेक्षाकृत कमजोर दिखा, वैसा ही कुछ ताइवान के मामले में भी दिख सकता है? अथवा वॉशिंगटन-ताइपे धुरी कम्युनिस्ट चीन के इतिहास में कोई नया अध्याय जोड़ेगी ?

नैंसी पेलोसी का ताइवान में स्वागत और उन्हें ताइवान के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘ऑर्डर ऑफ प्रॉपिटियस क्लाउड्स विद स्पेशल ग्रैंड कॉर्डन’ से सम्मानित करना, वैश्विक कूटनीति में एक नया आयाम जुड़ने का संकेत है। इसलिए और भी, कि नैंसी पेलोसी ने ताइवान की दोस्ती पर गर्व जताया। उनका कहना था कि अमेरिका हर स्तर पर ताइवान का साथ देगा। अमेरिका ताइवान के लोकतंत्र का समर्थन जारी रखेगा। ताइवान के 2.30 करोड़ नागरिकों के साथ अमेरिका की एकजुटता आज पहले से कहीं अधिक अहम है क्योंकि दुनिया निरंकुशता और लोकतंत्र के बीच एक विकल्प का सामना कर रही है।

 जाहिर सी बात है कि यह विकल्प अलोकतांत्रिक चीन के विरुद्ध होगा, इसलिए चीन का चिढ़ना भी तय था। वह चिढ़ा भी। इसी क्रम में उसने रविवार तक ताइवान की हवाई और समुद्री सीमा पर लक्षित फायर करने की धमकी दे डाली। सवाल यह उठता है कि शी जिनपिंग शासन नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा से इतना उतावला अथवा असहज क्यों दिख रहा है? क्या यूक्रेन में रूस जिस तरह से कामयाब हो रहा है, चीन को उससे बल मिल रहा है? वैसे रूस द्वारा यूक्रेन पर किए गए हमले के समय के साथ ही चीन को ताइवान मामले में एक रास्ता मिल गया था। हालांकि रूस-यूक्रेन के मुकाबले चीन-ताइवान मसला थोड़ा भिन्न है। दूसरी बात यह कि रूस के सामने अमेरिकी नेतृत्व में पश्चिमी एकता और ताकत बेपर्दा हो चुकी है।

ऐसी स्थिति में ताइवान के मामले में चीन स्वयं को चुनौतीविहीन मानने की मंशा का प्रदर्शन कर रहा है। चीन के लक्षित फायर की धमकी को ताइवान में आपूर्ति रोकने के लिए बंदरगाहों पर आवाजाही रोकने संबंधी प्रयास का हिस्सा माना जा सकता है। इसमें कोई संशय नहीं कि चीन ताकतवर है इसलिए उसकी धमकियां चिंता पैदा करती हैं लेकिन कभी-कभी उसका व्यवहार ऐसा भी लगने लगता है जैसा कि एक सड़क छाप गुंडा करता है। पेलोसी की ताइवान यात्रा के ठीक पहले पूरे ताइवान पर साइबर अटैक, फिर ताईपेई एयरपोर्ट को बम से उड़ाने की धमकी, तत्पश्चात ताइवान की सीमा के ऊपर चीन के फाइटर्स की उड़ान और ताइवान के चारों ओर चीनी नौसैनिक युद्धपोत तैनात करके युद्ध अभ्यास करना, यह सब कुछ ऐसा ही दर्शाता है। हालांकि इसके दो अर्थ हो सकते हैं। पहला- चीन चुनौतीविहीन होने के कारण उद्दंड हो चुका है और उसे लगता है कि वह कुछ भी कर सकता है तथा दूसरा- वह बहुत डरा हुआ है इसलिए वह ‘अटैक फर्स्ट’ की नीति पर काम कर रहा है।

इसके अतिरिक्त कुछ कारण और भी हो सकते हैं। पहला- चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग अब अपने तीसरे कार्यकाल में प्रवेश करने की तैयारी कर रहे हैं। वे चीन के लोगों को कुछ बताना या देना चाहते हैं। हालांकि ऐसा करने में वे असफल रहे हैं। कोविड 19 पर बनी वैश्विक वैचारिकी और चीनी छवि उन्हें कठघरे में खड़ा कर रही है। वैश्विक स्तर पर उन्हें और चीन को लेकर वैश्विक ट्रस्ट डेफिसिट बढ़ा है। कोविड 19 के प्रबंधन के मामले में शी जिनपिंग पूरी तरह से असफल रहे हैं। इसका असर चीन के लोगों पर बेहद नकारात्मक है जिसके चलते चीन में कभी भी विद्रोह की स्थिति बन सकती है।

चीन की लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था आने वाले समय में चीन के लोगों को रोजगार से वंचित तो करेगी ही, जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं से भी दूर कर देगी। कोविड-19 की पुनरावृत्तियों और असफल प्रबंधन के कारण चीन कैदखाने में तब्दील हो चुका है। इससे आंतरिक अशांति अथवा विद्रोह की स्थितियां पनप सकती हैं। यानी शी के पास वैसा कुछ भी दिखाने लायक नहीं है जिसे वे कम्युनिस्ट पार्टी के संविधान संशोधन के जरिये अपने लिए सुनिश्चित करा चुके हैं। ऐसे में शी जिनपिंग के पास एकमात्र विकल्प रह जाएगा 2049 तक देश का ‘महाशक्ति’ का दर्जा बहाल करना। बहरहाल शी जिनपिंग 2049 तक देश को ‘महाशक्ति’ का दर्जा दिलाने के सहारे ही एक बार पुनः राष्ट्रपति बनना चाहते हैं। यदि वे इसमें सफल हो गए तो फिर चीन का पुनर्एकीकरण अनिवार्य रूप से लागू किया जाएगा। इसके केन्द्र में होगा ताइवान।

टॅग्स :चीनTaiwan
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