सामरिक विनाश के पथ पर चलता पाकिस्तान?, विफलता का जश्न मना रहा पड़ोसी देश!
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: May 29, 2025 05:16 IST2025-05-29T05:16:19+5:302025-05-29T05:16:19+5:30
जवाब में पाकिस्तान का ऑपरेशन न केवल प्रभावहीन था, बल्कि उसका अंत उसकी कोशिशों के कारण संघर्षविराम के रूप में सामने आया.

Shahbaz Sharif Asim Munir
सफलता के कई पिता होते हैं. लेकिन विफलता अनाथ होती है. अलबत्ता पाकिस्तान में विफलता का जश्न मनाया जाता है. मूर्खता के विध्वस्त महासंघ पाकिस्तान में, जहां फौजी जनरल शासन करते हैं और असैन्य जनप्रतिनिधि डरते रहते हैं, जनरल सैयद असीम मुनीर को फील्ड मार्शल बनाया जाना उनकी काबिलियत का प्रमाण कम और अव्यवस्था का राजतिलक ही ज्यादा है. इससे न सिर्फ वहां सेना के प्रभावी होने का संकेत मिलता है, बल्कि यह पाकिस्तान में उसके वर्चस्व का भी सबूत है. शहबाज शरीफ की कैबिनेट ने मुनीर को फील्ड मार्शल का तमगा देने का फैसला भारत के उस ऑपरेशन सिंदूर के बाद लिया, जिसके तहत पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर के आतंकी शिविरों और एयरबेस पर सटीक कार्रवाई की गई.
उसके जवाब में पाकिस्तान का ऑपरेशन न केवल प्रभावहीन था, बल्कि उसका अंत उसकी कोशिशों के कारण संघर्षविराम के रूप में सामने आया. इस लिहाज से देखें तो मुनीर को मिली प्रोन्नति का कारण युद्धक्षेत्र में बहादुरी नहीं, बल्कि एक विफल देश द्वारा अपने कथित शौर्य की डुगडुगी पीटना और सेना के झूठे अहंकार को बढ़ावा देना ही ज्यादा लगता है.
मुनीर की यह तरक्की पाकिस्तान के फील्ड मार्शलों की कहानी कहती है. यह मुनीर की ईर्ष्यालु विचारधारा और सेना द्वारा नागरिक शासन को लगातार दबाने की प्रवृत्ति के बारे में भी बताती है. यह भारत के खिलाफ पाक सेना की मोर्चेबंदी के बारे में बताती है. यह मुनीर की तरक्की के राजनीतिक तथा रणनीतिक नतीजे से जुड़े गंभीर सवाल तो खड़े करती ही है.
अमेरिकी सत्ता प्रतिष्ठान से उसके नाजुक रिश्ते के बारे में बताती है और लगातार आगे बढ़ रहे भारत की तुलना में पाकिस्तान की क्रमिक विफलता के फर्क को रेखांकित करती है. पाक सेनाध्यक्ष को फील्ड मार्शल की तरक्की देने का उदाहरण इससे पहले 1959 में देखने को मिला था, जब जनरल अयूब खान ने खुद को यह तमगा दिया था.
अलबत्ता मुनीर को फील्ड मार्शल बनाए जाने का फैसला केवल प्रतीकात्मक नहीं है, यह एक नागरिक शासन द्वारा खुद को सैन्य प्रतिष्ठान के पीछे ले जाने का उदाहरण है. मुनीर सिर्फ एक जनरल नहीं हैं, वह सैन्य वर्दी में जिहादी हैं. वर्ष 1968 में जालंधर से पाकिस्तान गए एक परिवार के घर पैदा हुए मुनीर ने पहले आईएसआई प्रमुख और फिर सेना प्रमुख के रूप में धार्मिक राष्ट्रवाद और सांस्थानिक निरंकुशता के मिले-जुले स्वरूप का परिचय दिया है. उनकी कट्टरता लगातार परवान चढ़ती रही है.
पिछले महीने रावलपिंडी की एक मस्जिद में भाषण देते हुए उन्होंने कश्मीर को पाकिस्तान के ‘गले की नस’ बताया था. उनके भाषण के बाद ही पहलगाम आतंकी हमले को अंजाम दिया गया.सैन्यतंत्र को मजबूत करने की भारी कीमत पाकिस्तान को चुकानी पड़ी है और अब भी पड़ रही है. पाकिस्तान के नागरिक शासन ने सैन्य वर्चस्व के सामने अपनी जमीन जानबूझकर गंवा दी है.
जनरल मुनीर को फील्ड मार्शल बनाया जाना सिर्फ तुष्टिकरण नहीं है, राजनीतिक अर्थ में यह शासन त्याग या अपनी सत्ता को सैन्यतंत्र की तुलना में कमतर बना देना है. मुनीर के भाषण संघर्ष की पटकथा तैयार करते हैं, उनके सिद्धांत कूटनीति को अंधी गली में छोड़ देते हैं और उनकी तरक्की ने भारत के साथ शांति की झीनी-सी उम्मीद भी खत्म कर दी है.
अगर मुनीर अपनी ताकत बढ़ाते हैं तो पाकिस्तान सैन्यतंत्र में तब्दील हो जाएगा. भारत की प्रभावी सैन्य कार्रवाई और प्रधानमंत्री मोदी की कूटनीतिक पहलकदमी ने मुनीर के बड़बोलेपन की हवा निकाल दी है. ऐसे में, फील्ड मार्शल के जिहाद छेड़ने का सपना उन्हें ऐसी स्थिति में ले जा रहा है, जहां उनके डूबते जहाज को बचाने वाला कोई नहीं होगा.