मजबूत इरादों से ही मिलती है सुनीता जैसी सफलता
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: March 24, 2025 08:38 IST2025-03-24T08:37:17+5:302025-03-24T08:38:53+5:30
हमारी कल्पना शक्ति बहुत विशाल होती है और इसी के दम पर हम बहुत उम्मीदें भी रख लेते हैं.

मजबूत इरादों से ही मिलती है सुनीता जैसी सफलता
किरण चोपड़ा
इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत की बेटियों ने देश और विदेश में हमारा नाम रोशन किया है लेकिन कुछ उपलब्धियां ऐसी हैं जो पूरी दुनिया के लिए एक उदाहरण बन चुकी हैं. एक ऐसी ही हमारी बेटी है सुनीता विलियम्स, जिसने अंतरिक्ष की दुनिया में ऐसा रिकॉर्ड स्थापित किया है कि पूरी दुनिया उससे कुछ सीखने के लिए उतावली है. एक बार नहीं तीन बार अंतरिक्ष जाना और सुरक्षित लौटकर आना और वह भी तब जबकि हमारे देश की पहली बेटी कल्पना चावला अंतरिक्ष से लौटते समय हादसे का शिकार हो गई हों.
महज 8 दिन के लिए अंतरिक्ष जाना और फिर वहां 286 दिन परिस्थितियों में फंसने के बाद वापस लौटना काम आसान नहीं है. भारत की बेटी अंतरिक्ष परी बन चुकी है. उपलब्धि हासिल करने के साथ-साथ बड़ी चुनौतियां झेलना और आगे भी झेलने के लिए तैयार रहना आसान काम नहीं है.
मजबूत जज्बा चाहिए. किसी रेलवे स्टेशन या एयरपोर्ट पर या अपनी यात्रा के दौरान 10-12 घंटे फंसने पर हम लोग कितना असहज हो जाते हैं लेकिन नौ महीने से ज्यादा समय तक अंतरिक्ष की दुनिया में रहना! कितनी मजबूत शक्ति सुनीता ने दिखाई होगी, यह एक आम बात नहीं. देश की बेटियां इस जुझारू और चट्टान जैसे दिल वाली सुनीता से सीख सकती हैं.
जब नासा ने अंतरिक्ष यात्रा के लिए अपनी तैयारियों को अंजाम देना शुरू किया तो सुनीता विलियम्स की कल्पना शक्ति कितनी मजबूत रही होगी कि उसने इसे व्यवहार में उतारते हुए खुद को एक दावेदार बताया. कितने लंबे-चौड़े इंटरव्यू और टेस्ट हुए होंगे जिसके दम पर उसका चयन हुआ. जीवन में कुछ करना है तो मजबूत इरादों के दम पर एक इंसान सब कुछ पा सकता है, अगर वह सुनीता विलियम्स को आदर्श मान ले तो. हमारी कल्पना शक्ति बहुत विशाल होती है और इसी के दम पर हम बहुत उम्मीदें भी रख लेते हैं.
हमारा इसरो यानी कि इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाइजेशन चंद्रमा तक पहुंच चुका है, 1984 में हमारे राकेश शर्मा अंतरिक्ष तक पहुंच चुके हैं, अब हमारे देशवासियों को अंतरिक्ष ले जाने की दिशा में नासा की तर्ज पर और भी बहुत कुछ किया जाए तो देश के लिए यह एक अच्छी संभावनाओं के द्वार खोलेगा. सुनीता विलियम्स की अंतरिक्ष यात्रा, जो कि बहुत ही कठिन और चुनौतीपूर्ण रही है, के बारे में सब जान चुके हैं लेकिन मानव की अंतरिक्ष के लिए सोच और एक दूसरी दुनिया में रहकर पृथ्वी की तरह खुद को कठिन ढांचे में डालकर जीना आसान नहीं है.
सुनीता जहां गौरव का केंद्र है वहीं वैज्ञानिकों के लिए एक खोज का विषय भी है कि उसने यह कठिनतम यात्रा किस फौलादी जज्बे के दम पर पाई. मैं इसे देश की उपलब्धि भी मानती हूं और पूरी नारी जाति के लिए सम्मान और गौरव का केंद्र बनने पर सुनीता विलियम्स को अपनी लेखनी समर्पित करती हूं और यही कहती हूं कि सुनीता तुम्हारी जय हो.