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डॉ. मधुकर हुरमाडे का ब्लॉग: अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस- स्वास्थ्य क्षेत्र में आशा की किरण होती हैं परिचारिकाएं

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: May 12, 2022 13:38 IST

आपको बता दें कि आधुनिक नर्सिंग की शुरुआत 1854 के क्रीमिया युद्ध से होती है। हालांकि इस युद्ध से पूर्व भी नर्सिंग सेवाएं थीं लेकिन आधुनिक स्वरूप में नहीं थीं।

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ठळक मुद्देअंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस मनाने का प्रस्ताव पहली बार अमेरिका में प्रस्तावित हुआ था। इसे प्रस्तावित स्वास्थ्य, शिक्षा और कल्याण विभाग के अधिकारी ने किया था। इसके बाद आधुनिक नर्सिंग की शुरुआत हुई थी जो 1854 क्रीमिया युद्ध के दौरान काफी चर्चित हुई थी।

स्वास्थ्य पेशे में नर्सिंग को महत्वपूर्ण माना जाता है. परिचारिकाओं को मानसिक और सामाजिक तौर पर प्रशिक्षित किया जाता है. परिचारिका रोगियों का मनोबल बढ़ाती है और उनकी बीमारी को नियंत्रित करने के लिए मित्रवत, सहायक और स्नेहशील बनकर अपना कर्तव्य निभाती है। 

इसलिए उनके स्वास्थ्य सेवाओं में योगदान और उनकी मेहनत तथा समर्पण की सराहना करने के लिए अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस मनाने का प्रस्ताव पहली बार अमेरिका के स्वास्थ्य, शिक्षा और कल्याण विभाग के अधिकारी ‘डोरोथी सदरलैंड’ ने प्रस्तावित किया था. 

अमेरिकी राष्ट्रपति डी.डी. आइजनहावर ने इसे मनाने की मान्यता प्रदान की. इस दिवस को पहली बार वर्ष 1953 में मनाया गया. अंतरराष्ट्रीय नर्स परिषद ने इस दिवस को पहली बार 1965 में मनाया गया था.

कौन थीं फ्लोरेंस नाइटिंगेल?

आधुनिक नर्सिंग की जन्मदात्री फ्लोरेंस नाइटिंगेल का जन्म 12 मई 1820 को फ्लोरेंस (इटली) में हुआ था. वे ब्रिटेन के नामी जमींदार मिस्टर विलियम एडवर्ड नाइटिंगेल तथा फ्रांसिस स्मिथ की दूसरी संतान थीं. बचपन से ही मानवता के प्रति हमदर्दी रखने वाली फ्लोरेंस नाइटिंगेल ने दर्शनशास्त्र, राजनीति विज्ञान सहित अनेक विषयों का ज्ञान प्राप्त कर इंग्लैंड, स्कॉटलैंड, आयरलैंड, फ्रांस तथा बेल्जियम के अस्पतालों का अध्ययन किया था.

आधुनिक नर्सिंग की शुरुआत कैसे हुई

आधुनिक नर्सिंग की शुरुआत 1854 के क्रीमिया युद्ध से होती है. हालांकि इस युद्ध से पूर्व भी नर्सिंग सेवाएं थीं लेकिन आधुनिक स्वरूप में नहीं थीं. मार्च 1854 में तुर्की एवं मित्र राष्ट्रों (ब्रिटेन, फ्रांस) ने रूस के खिलाफ युद्ध की घोषणा की थी. युद्ध के दौरान घायल होनेवाले फ्रांसीसी एवं रूसी सैनिकों की सेवा सुश्रूषा स्वैच्छिक संगठनों द्वारा की जा रही थी. लेकिन अंग्रेज सैनिकों की देखभाल करने वाला कोई नहीं था. तभी लंदन टाइम्स ने खबर लिखी जिसमें ब्रिटिश सैनिकों की घायल अवस्था एवं दुर्दशा का मार्मिक वर्णन किया गया था. 

फ्लोरेंस नाइटिंगेल ने ऐसे की सैनिकों की देखभाल

उस समय ब्रिटिश सैनिक सेवाओं में महिलाओं का प्रवेश वर्जित था. ऐसी स्थिति में फ्लोरेंस नाइटिंगेल तमाम अड़चनों एवं विरोध को पार करती हुई अपनी 38 सहयोगी नर्सों को लेकर युद्धस्थल के अस्पताल में पहुंचीं और देखा तो अस्पताल में कुछ भी सुविधा नहीं थी. सुविधाओं के अभाव में सैनिकों की सेवा करने में बाधा उत्पन्न हो रही थी. ऐसी विषम परिस्थिति में अदम्य साहस का परिचय देते हुए दिन-रात सैनिकों की मरहमपट्टी करतीं, उनको सांत्वना देतीं तथा घरवालों को पत्र लिखकर उनके बारे में सूचित करतीं. 

रात में अपने हाथ में लैंप लेकर एक-एक मरीज को संभालतीं. उनको देखकर सैनिक आनंदविभोर हो जाते थे. उसी वक्त से फ्लोरेंस नाइटिंगेल को ‘लेडी विद द लैंप’ का नाम मिला. इसी दौरान उन्होंने नोट्स ऑन नर्सिंग तथा नोट्स ऑन हॉस्पिटल नामक पुस्तक लिखी.

लंदन में सेंट थॉमस अस्पताल में खोला नर्सिंग प्रशिक्षण केंद्र

युद्ध समाप्ति के बाद नाइटिंगेल बीमार अवस्था में स्वदेश पहुंचीं. देश की जनता ने उस वक्त 50 हजार पौंड की राशि इकट्ठा कर उन्हें दी, लेकिन स्वाभिमानी तथा परमार्थी स्वभाव की उस महिला ने इस फंड का निजी उपयोग नहीं किया. उस फंड से सेंट थॉमस अस्पताल लंदन में नर्सिंग प्रशिक्षण केंद्र खोला और इस माध्यम से नर्सिंग सेवा पूरे विश्व की आधारभूत आवश्यकता बन गई. फ्लोरेंस नाइटिंगेल के सम्मान में उनका जन्मदिन ‘विश्व नर्स दिवस’ के रूप में मनाया जाता है.

क्या है अंतरराष्ट्रीय नर्सिंग दिन 2022 का थीम

अंतरराष्ट्रीय नर्सिंग दिन 2022 की थीम ‘नर्सिंग में निवेश करें और वैश्विक स्वास्थ्य को सुरक्षित करने के अधिकारों का सम्मान करें’ है. वैश्विक कोविड महामारी की आपदा के समय परिचारिकाओं ने जान पर खेलकर अपने कर्तव्य का पालन किया. कई परिचारिकाओं ने अपनी जान गंवाई लेकिन अपनी ड्य़ू‌टी पूरी निष्ठा और ईमानदारी से की. उन्हें अच्छी तरह से मालूम है कि अस्पताल में रोगी सबसे ज्यादा परिचारिकाओं की देखरेख में रहता है. 

रोगियों को देती थी मानसिक बल

रोगी की सेवा का मतलब सिर्फ दवाई, इंजेक्शन देने एवं रिकॉर्ड मेंटेन करने तक ही सीमित नहीं है अपितु रोगी को मानसिक बल देना भी जरूरी है. आजकल कई नई-नई बीमारियां आ रही हैं. वैसे ही परिचारिकाओं की जिम्मेदारियां भी बढ़ रही हैं. उन्हें कई समस्याओं से जूझना पड़ रहा है. फिर भी वे अपना कर्तव्य अच्छे से निभा रही हैं.

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