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अभिषेक कुमार सिंह का ब्लॉगः कायनात में हमारी जगह खोजने के लिए पुरस्कार

By अभिषेक कुमार सिंह | Updated: October 17, 2019 07:16 IST

पर्यावरण-त्नासदियों से लेकर तेल-खनिजों के अतिशय दोहन के चलते जैसे संकट हम खुद पृथ्वी के सामने खड़े कर रहे हैं, वे अगले दो-तीन सौ वर्षो में ही धरती पर मानव जीवन को असंभव बना देने के लिए काफी हैं.

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ठळक मुद्देसाल 2019 के लिए भौतिकी यानी फिजिक्स में नोबल पुरस्कार हासिल करने वाले तीनों साइंटिस्टों की खोजें असल में इस कायनात में इंसानियत की जगह की खोज पर केंद्रित हैं. जहां पीबल्स एक ओर अपनी थ्योरी से साढ़े 14 अरब साल पहले हुई बिग बैंग यानी महाविस्फोट की घटना के बाद ब्रह्मांड के विकास के बारे में इंसानी समझ में नए अध्याय जोड़ते हैं.

साल 2019 के लिए भौतिकी यानी फिजिक्स में नोबल पुरस्कार हासिल करने वाले तीनों साइंटिस्टों (कनाडाई मूल के अमेरिकी जेम्स पीबल्स और स्विट्जरलैंड के मिशेल मेयर व डिडिएर क्वेलोज) की खोजें असल में इस कायनात में इंसानियत की जगह की खोज पर केंद्रित हैं. जहां पीबल्स एक ओर अपनी थ्योरी से साढ़े 14 अरब साल पहले हुई बिग बैंग यानी महाविस्फोट की घटना के बाद ब्रह्मांड के विकास के बारे में इंसानी समझ में नए अध्याय जोड़ते हैं, तो दूसरी ओर स्विस वैज्ञानिकों मेयर और क्वेलोज ने सूर्य की तरह एक तारे की परिक्रमा करने वाले जिस एक्सोप्लैनेट (परा-ग्रह) को खोजा है, उससे पृथ्वी की तरह माहौल वाले ग्रह पर जीवन की संभावनाओं को बल मिलता है. समग्रता में देखें तो तीनों वैज्ञानिकों की कवायद यूनिवर्स की ऐसी खोजबीन के बारे में है, जो समूचे ब्रह्मांड में मानव के अकेलेपन के जवाब की खोज पर जाकर ठहरती है.

हालांकि अभी तक जिन सुपर-पृथ्वियों का पता चला है, वे हमसे सैकड़ों-हजारों प्रकाशवर्ष दूर हैं. इस मामले में कुछ समय पहले खोजे गए गलीज-667-सीसी (22 प्रकाशवर्ष दूर), वुल्फ 1061-सी (14 प्रकाशवर्ष दूर) और वल्कैन कहलाने वाली 16 प्रकाशवर्ष दूर स्थित नई सुपरअर्थ से ही कुछ उम्मीदें बंधती हैं क्योंकि ये अपेक्षाकृत हमारे काफी नजदीक हैं. हमारी धरती से कई प्रकाश वर्ष दूर पराये सौरमंडलों में सूरज जैसे तारों के इर्दगिर्द पृथ्वी जैसे ग्रह खोजने की जो कसरत पिछले दो-तीन दशकों में शुरू हुई है, हर नई तलाश के साथ यह खोज अब एक मुकाम पर पहुंचती लग रही है. 

वैसे इसके संकेत 90 के दशक में ही मिलने लगे थे कि सुदूर ब्रह्मांड में कहीं और धरती जैसा ग्रह हो सकता है. 1992 में पहली बार एक पल्सर (धड़कन की तरह तरंगें व विकिरण फेंकने वाले तारे) के आसपास ग्रह जैसा कुछ होने का अनुमान लगाया गया और इसके अगले 25-30 सालों में हाल यह है कि अब तक 2,675 स्टार सिस्टम्स में फैले हुए पृथ्वी जैसे करीब 3900 ग्रहों की सूची जारी हो चुकी है, हालांकि इनमें से ज्यादातर ग्रह बहुत अजीब हैं. कोई बहुत ज्यादा ठंडा है तो कोई गर्म. कहीं जहरीली गैसों की भरमार है तो किसी का सूर्य अत्यधिक दूर है, जिससे वहां जीवन की संभावना की कोई सूरत नहीं बनती. फिर भी इनमें करीब 350 ग्रहों को धरती से मिलता-जुलता माना जा सकता है. इनमें से किसी में जीवन हो सकता है.  

पर्यावरण-त्नासदियों से लेकर तेल-खनिजों के अतिशय दोहन के चलते जैसे संकट हम खुद पृथ्वी के सामने खड़े कर रहे हैं, वे अगले दो-तीन सौ वर्षो में ही धरती पर मानव जीवन को असंभव बना देने के लिए काफी हैं. ऐसे में अंतरिक्ष में जीवन के लिए उपयुक्त स्थितियों वाला ग्रह ढूंढ निकालना हमारी दिलचस्पी के केंद्र में आ गया है.

टॅग्स :नोबेल पुरस्कार
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