वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: चीन की टक्कर में नया पैंतरा
By वेद प्रताप वैदिक | Published: May 25, 2022 03:00 PM2022-05-25T15:00:05+5:302022-05-25T15:04:13+5:30
बाइडेन प्रशासन को इस लक्ष्य में कहां तक सफलता मिलेगी, यह इस पर निर्भर करेगा कि वह इन सदस्य-राष्ट्रों को कितनी छूट देगा। अमेरिका ने चीन से सीखा है कि अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए आर्थिक अस्त्र ही सबसे ज्यादा कारगर है लेकिन अमेरिका की समस्या यह है कि वह लोकतांत्रिक देश है, जहां विपक्ष और लोकतंत्र दोनों ही सबल और मुखर हैं जबकि चीन में पार्टी की तानाशाही है।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने दक्षिण-पूर्व एशिया के 12 देशों को अपने साथ जोड़कर एक नया आर्थिक संगठन खड़ा किया है, जिसका नाम है, ‘भारत-प्रशांत आर्थिक मंच (आईपीईएफ)’। टोक्यो में बना यह 13 देशों का संगठन बाइडेन ने जापानी प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ घोषित किया है।
वास्तव में यह उस विशाल क्षेत्रीय आर्थिक भागीदारी संगठन (आरसीईपी) का जवाब है, जिसका नेता चीन है। इस 16 राष्ट्रों के संगठन से अब भारत ने नाता तोड़ लिया है। इसके सदस्य और इस नए संगठन के कई सदस्य एक जैसे हैं। जाहिर है कि अमेरिका और चीन की प्रतिस्पर्धा इतनी तगड़ी है कि अब चीन द्वारा संचालित संगठन अपने आप कमजोर पड़ जाएगा।
बाइडेन ने यह पहल भी इसीलिए की है। इस क्षेत्र के राष्ट्रों को जोड़ने वाले ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप संगठन (टीपीपी) से पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपना हाथ खींच लिया था, क्योंकि अमेरिका की बिगड़ती हुई आर्थिक स्थिति में इन सदस्य राष्ट्रों के साथ मुक्त-व्यापार उसके लिए लाभकर नहीं था। अब इस नए संगठन के राष्ट्रों के बीच फिलहाल कोई मुक्त-व्यापार का समझौता नहीं हो रहा है लेकिन ये 13 राष्ट्र आपस में मिलकर डिजिटल अर्थ-व्यवस्था, विश्वसनीय सप्लाई श्रृंखला, स्वच्छ आर्थिक विकास, भ्रष्टाचार मुक्त उद्योग आदि पर विशेष ध्यान देंगे।
ये लक्ष्य प्राप्त करना आसान नहीं है लेकिन इनके पीछे असली इरादा यही है कि इस क्षेत्र के राष्ट्रों की अर्थव्यवस्थाओं को चीन ने जो जकड़ रखा है, उससे छुटकारा दिलाया जाए। बाइडेन प्रशासन को इस लक्ष्य में कहां तक सफलता मिलेगी, यह इस पर निर्भर करेगा कि वह इन सदस्य-राष्ट्रों को कितनी छूट देगा। अमेरिका ने चीन से सीखा है कि अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए आर्थिक अस्त्र ही सबसे ज्यादा कारगर है लेकिन अमेरिका की समस्या यह है कि वह लोकतांत्रिक देश है, जहां विपक्ष और लोकतंत्र दोनों ही सबल और मुखर हैं जबकि चीन में पार्टी की तानाशाही है।
जो भी हो, इन दोनों महाशक्तियों की प्रतिद्वंद्विता में भारत को तो अपना राष्ट्रहित साधना है इसीलिए उसने बार-बार ऐसे बयान दिए हैं, जिनसे स्पष्ट हो जाता है कि भारत किसी (चीन) के विरुद्ध नहीं है। वह तो केवल आर्थिक सहकार में अमेरिका का साथी है। चीन से विवाद के बावजूद उसका आपसी व्यापार बढ़ता जा रहा है। इस नए संगठन के जरिये उसका व्यापार बढ़े, न बढ़े लेकिन इसके सदस्य-राष्ट्रों के साथ भारत का आपसी व्यापार बढ़ता ही जा रहा है।