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जयंतीलाल भंडारी का ब्लॉगः श्रीलंका से सबक लेकर लोक लुभावन योजनाओं से बचिए

By डॉ जयंती लाल भण्डारी | Updated: April 8, 2022 14:28 IST

नि:संदेह विभिन्न लोकलुभावन योजनाओं और विभिन्न कर छूटों के कारण श्रीलंका आर्थिक बर्बादी का सामना कर रहा है, ऐसे में हमारे देश में उन विभिन्न राज्यों की सरकारों के द्वारा श्रीलंका के उदाहरण को सामने रखना होगा, जिन राज्यों ने लोकलुभावन योजनाओं और ढेर सारे प्रलोभन व छूटों का ढेर लगा दिया है...

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हाल ही में 3 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ वरिष्ठ नौकरशाहों की बैठक में शामिल उच्च अधिकारियों ने देश में कई राज्यों द्वारा घोषित अति लोकलुभावन योजनाओं और ढेर सारी मुफ्त रियायतों पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि ऐसी योजनाएं और रियायतें आर्थिक रूप से व्यावहारिक नहीं हैं। ये लोकलुभावन योजनाएं और रियायतें कई राज्यों को श्रीलंका की तरह आर्थिक मुश्किलों के रास्ते पर ले जा सकती हैं।

गौरतलब है कि श्रीलंका में पिछले कुछ समय से लागू की गई लोकलुभावन योजनाओं, करों में भारी कटौती और बढ़ते कर्ज ने श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को सबसे बुरे दौर में पहुंचा दिया है। 2018 में वैट की दर 15 फीसदी से घटाकर 8 फीसदी की गई और विभिन्न वर्गो को दी गई अभूतपूर्व सुविधाओं व छूटों के कारण श्रीलंका दर्दनाक मंदी के जाल में फंस गया है। श्रीलंका में इस साल महंगाई दर एक दशक में अपने सर्वाधिक स्तर पर पहुंच चुकी है। आर्थिक तंगी के खिलाफ तेज होते विरोध प्रदर्शनों के बीच सरकार ने एक अप्रैल को श्रीलंका में आपातकाल लागू किया है। वित्त मंत्री बेसिल राजपक्षे को बर्खास्त कर दिया गया है। इतना ही नहीं, श्रीलंका के द्वारा मौजूदा विदेशी मुद्रा संकट से निपटने में मदद करने के लिए भारत से आर्थिक राहत पैकेज का आग्रह किया गया है।

नि:संदेह विभिन्न लोकलुभावन योजनाओं और विभिन्न कर छूटों के कारण श्रीलंका आर्थिक बर्बादी का सामना कर रहा है, ऐसे में हमारे देश में उन विभिन्न राज्यों की सरकारों के द्वारा श्रीलंका के उदाहरण को सामने रखना होगा, जिन राज्यों ने लोकलुभावन योजनाओं और ढेर सारे प्रलोभन व छूटों का ढेर लगा दिया है तथा उससे उन प्रदेशों की अर्थव्यवस्थाएं ध्वस्त होते हुए दिखाई दे रही हैं। इतना ही नहीं, विभिन्न वर्गो के लिए मुफ्त यात्रा, मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी या फिर नाम मात्रा की दर पर ढेर सारी सुविधाएं देने वाले विभिन्न राज्यों में लोगों की कार्यशीलता और उद्यमिता में भी कमी आई है। साथ ही ऐसे प्रदेश चुनौतीपूर्ण राजकोषीय घाटे की स्थिति में आ गए हैं और वहां बुनियादी ढांचा और विकास बहुत पीछे हो गया है।

यहां यह उल्लेखनीय है कि जहां देश में विभिन्न राज्यों के द्वारा अपनाई गई मुफ्त सुविधाओं और लोकलुभावन योजनाओं के कारण कई राज्य श्रीलंका जैसे बुरे आर्थिक संकट के हालात में पहुंच गए हैं, वहीं दूसरी ओर केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार ने आर्थिक कल्याण के साथ विकास के लिए कठोर फैसलों की जो रणनीति अपनाई हुई है, उससे आर्थिक मुश्किलों का सामना करते हुए देश विकास के रास्ते पर आगे बढ़ रहा है। स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि केंद्र सरकार ने कोविड-19 के बाद अब रूस-यूक्रे न युद्ध के बीच बढ़ती महंगाई मद्देनजर जहां आम आदमी के आर्थिक-सामाजिक कल्याण से संबंधित योजनाओं से लोगों की आर्थिक मुश्किलें कम करके उनके सशक्तिकरण का लक्ष्य रखा है, वहीं सरकार जीएसटी और आयकर में भारी रियायतों से दूर रही है। परिणामस्वरूप कोविड-19 के बाद लगातार टैक्स कलेक्शन बढ़ रहा है।

 इसमें कोई दो मत नहीं है कि देश में आर्थिक और सामाजिक कल्याण की विशाल योजनाओं के लागू होने के बाद भी भारतीय अर्थव्यवस्था एक बड़े आर्थिक पुनरुद्धार के ‘मुहाने’ पर है। जीएसटी संग्रह मार्च 2022 में 1।42 लाख करोड़ रु पए रहा, जो रिकॉर्ड है। ज्यादा जीएसटी संग्रह के साथ ही सीमा शुल्क और प्रत्यक्ष कर संग्रह में इजाफा होने से सरकार का सकल कर राजस्व वित्त वर्ष 2021-22 के संशोधित अनुमान से अधिक दिखाई दे रहा है। भारत की अर्थव्यवस्था एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और 2021-22 में करीब 9 प्रतिशत की दर से बढ़ी है। भारतीय रिजर्व बैंक ने 2022-23 में आर्थिक वृद्धि दर 7।8 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है।

हम उम्मीद करें कि हमारे ऐसे राज्य जो लोकलुभावन योजनाओं व ढेर सारी रियायतों के प्रतीक बन गए हैं, वे सबसे बुरे आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहे श्रीलंका से सबक लेंगे। हम उम्मीद करें कि केंद्र सरकार भी किसी नई लोकलुभावन व मुफ्त की सौगातों की योजनाओं पर ध्यान नहीं देगी। साथ ही केंद्र सरकार आर्थिक-सामाजिक कल्याण की योजनाओं के साथ-साथ विकास की वर्तमान रणनीति पर आगे बढ़ेगी।

टॅग्स :श्रीलंकाGotabaya Rajapaksaइकॉनोमी
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