गुरचरण दास का ब्लॉगः आधुनिक मानव एक ही मां की संतान
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: March 1, 2019 02:45 PM2019-03-01T14:45:47+5:302019-03-01T14:45:47+5:30
ईसा पूर्व 9 से 5 हजार साल पहले हमारे पूर्वजों ने दूसरी बार बड़ी संख्या में स्थलांतरण किया. इस बार ईरान के जागरोस इलाके से किसानों का समूह भारत के उत्तर पश्चिम में आकर बस गया. उन्होंने ही मूल भारतीयों के साथ मिलकर संभवत: हड़प्पा तथा सिंधु घाटी सभ्यता की नींव रखी.
गुरचरण दास: चिंतक एवं प्रॉक्टर एंड गैंबल इंडिया के पूर्व सीईओ
हम में से कई लोग यह विश्वास करते हैं कि भारतीय मानव सभ्यता की शुरुआत से ही भारतीय उपमहाद्वीप में रहते हैं. यह सच नहीं है. जनसंख्या आनुवांशिकी पर नए वैज्ञानिक अनुसंधान हजारों साल पुराने मानव अवशेषों पर किए गए हैं जिनसे भारतीय अपनी जड़ों को 65 हजार साल पहले से जोड़ सकते हैं. उस वक्त आधुनिक मानव के पूर्वज अफ्रीका से भारतीय उपमहाद्वीप में आए. अफ्रीका से एशिया होते हुए इन पूर्वजों का एक समूह ऑस्ट्रेलिया पहुंचा. दूसरा समूह मध्य एशिया तथा यूरोप की ओर चला गया. हमारा 50 से 65 प्र.श. डीएनए 65 हजार वर्ष पुराने इन्हीं मानवों का है. अत: ‘शुद्ध भारतीय’ हम कभी रहे ही नहीं. 65 हजार वर्ष पूर्व अफ्रीका से स्थलांतरण के बाद भारत की ओर अफ्रीका तथा अन्य महाद्वीपों से मनुष्य भारत आते गए तथा स्थानीय जनसंख्या में घुलमिल गए.
ईसा पूर्व 9 से 5 हजार साल पहले हमारे पूर्वजों ने दूसरी बार बड़ी संख्या में स्थलांतरण किया. इस बार ईरान के जागरोस इलाके से किसानों का समूह भारत के उत्तर पश्चिम में आकर बस गया. उन्होंने ही मूल भारतीयों के साथ मिलकर संभवत: हड़प्पा तथा सिंधु घाटी सभ्यता की नींव रखी. हड़प्पा के लोग बाद में दक्षिण भारत चले गए और द्रविड़ भाषा तथा संस्कृति में घुलमिल गए. उनके वंशज आज के दक्षिण भारतीय हैं. तीसरा स्थलांतरण ईसा से पूर्व दो हजार साल में चीन से दक्षिण पूर्व एशिया होते हुए भारत की ओर हुआ. चौथा स्थलांतरण आज से तीन से चार हजार साल पूर्व सिंधु घाटी सभ्यता के नष्ट हो जाने के बाद हुआ. ये लोग इंडो-यूरोपियन भाषा बोलते थे और कजाखस्तान से यहां पहुंचे थे.
अब तक हम निर्विवाद रूप से यह निर्धारित नहीं कर सके हैं कि भारतीय जनसंख्या ने कैसे स्वरूप लिया. उपनिवेश काल के इतिहासकारों ने भारतीय जनसंख्या के स्वरूप को आर्यो के आक्रमण से जोड़ दिया है. इसका दूसरे वर्ग ने विरोध किया और दावा किया कि इंडो-यूरोपियन भाषा भारत में जन्मी तथा पश्चिम में फैल गई. इसने भारतीय जनसंख्या के बारे में तमाम धारणाओं को बदल दिया है. कुछ अज्ञात कारणों से करीब दो हजार साल पहले भारत की ओर सामूहिक स्थलांतरण रुक गया.
इसके बाद जाति प्रथा कठोर हुई और जनसंख्या में विविधता तेजी से बढ़ी. एक ही जाति में विवाह के कारण विविधता ज्यादा बढ़ी. डीएनए परीक्षणों से अब यह कहा जा सकता है कि पहले भारतीय अफ्रीका से भारत आए थे. परीक्षण यह भी बताते हैं कि हमारी पहली मां अफ्रीकी ही थी. डीएनए परीक्षणों से महाउपनिषद की ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की अवधारणा साकार होती है. इसका मतलब है पूरा विश्व एक परिवार है. दुनिया के तमाम लोग आनुवांशिकी रूप से एक ही मां की संतान हैं. अत: नस्लीय शुद्धता की बात बेमानी है.