ब्लॉग: पाक के भीतर बिखराव का बढ़ता संकट
By राजेश बादल | Published: November 29, 2023 01:35 PM2023-11-29T13:35:40+5:302023-11-29T13:35:49+5:30
अंतरराष्ट्रीय जानकार कहते हैं कि असल में पाकिस्तान ऐसा मुल्क है, जिसे परदेसी भीख पर जिंदा रहने की लत लग गई है। वह अपने देश के नागरिकों के लिए कार्य संस्कृति नहीं बना सका है।

फाइल फोटो
एक बार फिर पाकिस्तान बिखराव के मुहाने पर है। कमोबेश सारे सूबों में यह लहर है। बलूचिस्तान हो अथवा पाक अधिकृत कश्मीर, पख्तूनिस्तान हो या सिंध, पंजाब को छोड़कर सारे प्रांतों में बिखराव के घने बादल मंडरा रहे हैं। ऐसे में पाकिस्तानी हुकूमत आंखें मूंदकर एक बार फिर अमेरिका की गोद में बैठने की कोशिश कर रही है।
उसे अवाम के असंतोष की परवाह नहीं है। चीन की तरह अब पाकिस्तान भी अपने सारे पड़ोसियों से बैर ठान बैठा है चाहे हिंदुस्तान हो या अफगानिस्तान, ईरान हो या फिर चीन हालांकि चीन के अभी भी कुछ कारोबारी हित जुड़े हैं और पाकिस्तान उसके कर्ज-जाल में फंसा हुआ है इसलिए वह समय-समय पर गुर्राता तो रहता है, लेकिन स्थायी तौर पर नाता नहीं तोड़ पाता। इसकी बड़ी वजह भारत भी है।
मगर चीन पाकिस्तान के अमेरिकी झुकाव को लेकर बहुत प्रसन्न नहीं है। सवाल है कि भारत के इस जिद्दी पड़ोसी ने हम नहीं सुधरेंगे की तर्ज पर ऐसी कसम क्यों खा रखी है, जो उसे विनाश की ओर ले जा रही है। इस कथन के पीछे औसत भारतीय की पाकिस्तान विरोधी भावना मत समझिए. यह हकीकत की पथरीली जमीन पर उग रहे तथ्यों की फसल पर आधारित है।
बलूचिस्तान से आ रही खबरें सरकार की चिंता बढ़ाने का पर्याप्त आधार हैं। इस प्रांत को पृथक देश बनाने के लिए पाकिस्तान के जन्म से ही आंदोलन चल रहा है। लगभग आधा दर्जन अलगाववादी संगठन इन दिनों अपने स्तर पर पाकिस्तान सरकार से मोर्चा ले रहे हैं। इनमें खास हैं -बलोच लिबरेशन फ्रंट, बलोच लिबरेशन आर्मी, यूनाइटेड बलोच आर्मी, बलोच रिपब्लिकन गार्ड, बलोच लिबरेशन टाइगर्स और बलोच नेशनलिस्ट आर्मी इनके अलावा छोटे-छोटे समूह हैं, जो स्थानीय प्रशासन की किरकिरी बन गए हैं।
इन समूहों में एकता की बातें चल रही हैं, जिससे निर्णायक संघर्ष छेड़ा जा सके। सबसे बड़े दो संगठनों बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट और बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी तो आपस में विलय का फैसला कर चुके हैं। अब निर्णय दो बातों पर बाकी है। एक तो यह कि नेतृत्व का ढांचा किस तरह का होगा और क्या उस संघर्ष में बाहरी देशों की सहायता भी ली जाएगी। इसके अलावा अन्य चार अलगाववादी संगठनों के भी विलय के बाद उनकी भागीदारी का फॉर्मूला क्या होगा।
सूत्रों का कहना है कि सभी गुटों के एकीकरण के बाद हमलों की संख्या और तीव्रता कई गुना बढ़ जाएगी। प्रसंग के तौर पर बता दें कि पाकिस्तान के अस्तित्व में आने के बाद सबसे बड़ी आक्रामक कार्रवाई बलूचिस्तान को कब्जे में करने की थी। बलूचिस्तान को भारत विभाजन के दौरान अंग्रेजों ने पाकिस्तान को नहीं सौंपा था।
बलूचिस्तान के साथ अंग्रेजों की रक्षा, विदेश नीति और व्यापार की संधि थी। गोरे गए तो यह संधि खत्म हो गई और पाकिस्तान ने बलूचिस्तान को धोखे से हड़प लिया. तब से वहां के सबसे बड़े सियासी बुग्ती परिवार की अगुआई में बलोच आजादी का आंदोलन चलाते रहे हैं। इंदिरा गांधी बलोचों के बीच सर्वाधिक लोकप्रिय थीं। जब बांग्लादेश बना तो बलोचों की आशाएं भारत से जगी थीं. पाकिस्तान बांग्लादेश के अलग होने के दर्द से दुखी था तो बलूचिस्तान में खुशियां मनाई जा रही थीं।
इंदिरा गांधी और जनरल मानेक शॉ के पोस्टर लेकर जिंदाबाद के नारे लगाते हुए नागरिक रैलियां निकाल रहे थे। इसके बाद जनरल परवेज मुशर्रफ के कार्यकाल में बुग्ती खानदान के सबसे बड़े नेता नवाब अकबर बुग्ती को सेना ने मार डाला था। तब से बलूचिस्तान अशांत है। यदि अलगाववादी समूच एकजुट होकर संघर्ष करेंगे तो पाकिस्तान के लिए बड़ा सिरदर्द बन जाएगा।
पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के भी बुरे हाल हैं। वहां करीब एक महीने पहले पाकिस्तान सरकार के खिलाफ अवाम ने खुलकर विद्रोह कर दिया है। लोग रोज सड़कों पर आकर प्रदर्शन कर रहे हैं। प्रदर्शनों की शुरुआत फौज के विरोध और वहां चल रहे आतंकवादी कैम्पों के विरोध से हुई थी। इसके अलावा बेरोजगारी, महंगाई, भेदभाव और मानव अधिकारों के हनन के बढ़ते मामलों ने गुस्से को बढ़ा दिया है।
यहां के निवासियों का कहना है कि पाकिस्तान दिवालिया होने के कगार पर है और मुल्क दाने-दाने के लिए तरस रहा है। ऐसे में पाकिस्तानी सेना तथा सरकार कश्मीर में दहशतगर्दी को बढ़ावा देने के लिए आतंकवादी कैंप चला रहे हैं। मुजफ्फराबाद, डायमर, चिनारी, कोटली, नीलम और गिलगित के लोग इन प्रशिक्षण शिविरों से परेशान हैं।
अनेक स्थानों पर तो इन प्रदर्शनों में मांग की जाती है कि पाकिस्तान इन नागरिकों की उपेक्षा कर रहा है इसलिए वे मांग करते हैं कि उन्हें निर्णय लेने का हक दिया जाए क्योंकि वे हिंदुस्तान के साथ मिलना चाहते हैं।
हालिया दौर में पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा पर और समूचे पख्तूनिस्तान में हिंसक वारदातें बढ़ गई हैं। लगातार आत्मघाती हमले हो रहे हैं। सिंध में सरकार विरोधी आंदोलन पहले से ही चल रहे हैं। इससे अंतरराष्ट्रीय कंपनियां घबराई हुई हैं। तेल, गैस और प्राकृतिक संसाधनों की तलाश करने वाली दस से अधिक बहुराष्ट्रीय कम्पनियां दुकान बंद करके अपने ठिकानों पर लौट गई हैं। इससे देश के तेल उत्पादन में पचास फीसदी की कमी आई है।
अंतरराष्ट्रीय जानकार कहते हैं कि असल में पाकिस्तान ऐसा मुल्क है, जिसे परदेसी भीख पर जिंदा रहने की लत लग गई है। वह अपने देश के नागरिकों के लिए कार्य संस्कृति नहीं बना सका है। कदम-कदम पर उसे इसी वजह से समस्या आ रही है। यह एक ऐसी समस्या है, जिसका कोई इलाज नहीं है। यानी पाकिस्तान के लिए शनैः शनैः बिखरना ही नियति बनकर रह गया है।