अड़चनों के बीच रूस के साथ संतुलन साधने की कवायद

By शोभना जैन | Updated: December 5, 2025 08:14 IST2025-12-05T08:13:02+5:302025-12-05T08:14:11+5:30

एसआईपीआरआई का कहना है कि ‘भारत अब हथियारों की सप्लाई के लिए पश्चिमी देशों, खासकर फ्रांस, इजराइल और अमेरिका की ओर बढ़ रहा है.’

Efforts to strike a balance with Russia amid obstacles | अड़चनों के बीच रूस के साथ संतुलन साधने की कवायद

अड़चनों के बीच रूस के साथ संतुलन साधने की कवायद

विश्व के उलझते समीकरणों और इनके चलते भारत-रूस संबंधों में आई ‘असहजता’ के बीच दोनों ही देशों द्वारा रिश्तों में संतुलन कायम करने की कवायद स्वरूप रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन दो दिवसीय दौरे पर दिल्ली में हैं. पुतिन की भारत यात्रा २०२२ से जारी रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच हो रही है, जो न केवल  द्विपक्षीय संबंधों के लिए अहम है बल्कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा भारत के खिलाफ टैरिफ ठोंके जाने की छाया में हो रही है, जिससे भारत और रूस दोनों के ही आर्थिक हित प्रभावित हो रहे हैं.

दूसरी तरफ यूक्रेन में शांति प्रयासों को लेकर अमेरिका, यूरोप और रूस के बीच जो खींचतान चल रही है, इस माहौल में भारत की रूस के प्रति नीति भी बहुत मायने रखती है. इसी कड़ी से जुड़ा एक और महत्वपूर्ण पहलू ये भी है कि एक तरफ जहां यूरोप और अमेरिका के बीच यूक्रेन युद्ध रोकने के लिए पुतिन के साथ जो रस्साकशी चल रही है, इन सबके बीच फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों रूस के दोस्त चीन की यात्रा पर पहुंचे हैं. एक ही समय हो रही इन शिखर नेताओं की यात्राओं को लेकर वैश्विक राजनीति में खासी उत्सुकता है.

भारत के लिए यह यात्रा रक्षा क्षेत्र में द्विपक्षीय सहयोग को नई गति देने की दृष्टि से खासी अहम है. साथ ही परमाणु ऊर्जा, व्यापार, मोबिलिटी आदि क्षेत्रों में भी सहयोग बढ़ाने की दिशा में महत्वपूर्ण है, लेकिन सबसे पेचीदा मसला रूस से खनिज तेल खरीदने का है. यूक्रेन युद्ध के कारण रूस से तेल नहीं खरीदने की अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की धमकियों के बावजूद भारत ने रूस से राष्ट्रीय हितों के मद्देनजर अपेक्षाकृत सस्ता तेल खरीदना जारी रखा, जिसके चलते भारत-रूस व्यापार 10 अरब डॉलर से 2024 में बढ़ कर 68.07 अरब डॉलर हो गया.

इसकी मुख्य वजह रूस से तेल आयात रहा लेकिन अमेरिका की धमकियों के चलते भारत पर रूस से तेल खरीद में कटौती करने का दबाव है. ऐसे में सवाल है कि अगले कुछ वर्षों में दोनों देश १०० अरब डॉलर के व्यापार तक कैसे पहुंचेंगे? उम्मीद है कि दोनों शिखर नेताओं के बीच इस जटिल मुद्दे पर कोई आशाजनक रास्ता बनेगा.

रक्षा क्षेत्र में सहयोग की बात करें तो स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (एसआईपीआरआई) के आंकड़ों के मुताबिक, भारत के लिए हथियारों का सबसे बड़ा स्रोत अब भी रूस है. साल 2020 से 2024 के बीच भारत के कुल आयात में रूस की हिस्सेदारी 36 प्रतिशत रही. हालांकि, यह साल 2010-2014 की तुलना में काफी कम है. उस वक्त यह 72 प्रतिशत थी. एसआईपीआरआई का कहना है कि ‘भारत अब हथियारों की सप्लाई के लिए पश्चिमी देशों, खासकर फ्रांस, इजराइल और अमेरिका की ओर बढ़ रहा है.’

बहरहाल रक्षा क्षेत्र दोनों देशों के बीच जुड़ाव का एक अहम मुद्दा है. दुनिया के बदलते समीकरणों के बावजूद भारत-रूस संबंध समय की कसौटी पर खरे उतरते रहे हैं, लेकिन आज की हकीकत है कि संबंध चुनौतियों के दौर से गुजर रहे हैं, हालांकि संतुलन बनाने के लिए कोशिश जारी है. सवाल ये भी है कि अमेरिका, चीन जैसे मुल्कों से रिश्ते बनाए रखते हुए हम अपने समीकरण कैसे संतुलित करेंगे? दोनों देश इन चुनौतियों से कैसे पार पाएंगे, यह तो समय ही बताएगा.

Web Title: Efforts to strike a balance with Russia amid obstacles

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